सुरेंद्र बंसल
इंदौर समेत नगर पालिक निगम के लिए 4 बड़े शहरों के महापौर अभी तक तय नहीं हुए हैं संभव है आज रात्रि तक 4 बड़े शहरों के लिए चार बड़े पार्टी नेता एक मत हो जाने के लिए प्रेरित हो जाए और महापौर प्रत्याशियों की घोषणा कर दें।
लेकिन सवाल यह है कि अभी तक भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि इन शहरों के महापौर के लिए कौन योग्य है और कौन दूसरे पर किस तरह से भारी पड़ता है ताकि महापौर के पद पर पार्टी का उम्मीदवार विजय हो सके।
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विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी की यह दुविधा समझ से परे हैकि ऐन चुनाव के वक्त तक वह अपने योग्य प्रत्याशी का चुनाव नहीं कर पाती है ऐसा आखिर क्यों है? क्यों पार्टी के नेताओं को नहीं पता होता कि आने वाले चुनाव में उनके कार्यकर्ताओं की लंबी फौज में से सक्रिय नेताओं में किनकी पकड़ जनता के बीच ज्यादा है? किस की छवि जनता के बीच ज्यादा स्वच्छ है? और कौन विरोधी उम्मीदवार को टक्कर दे सकता है? अगर पार्टी ऐन वक्त तक यह आकलन नहीं कर पाती है तो समझ लीजिए पार्टी के भीतर ही जो कुछ चल रहा है वह पार्टी के संविधान के अनुकूल नहीं होकर विधान के अनुकूल नहीं होकर और नियमों के अनुकूल नहीं हो कर अपनी-अपनी ढपली और अपने अपने राग की तरह है।
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मतलब यह है कि हर कोई यह चाहता है कि उसकी पसंद का और उसके समर्थन का प्रत्याशी महापौर के लिए हो.. इसके लिए एकमत नहीं बन पाता बल्कि जद्दोजहद पुरजोर होती है। यही बहुत कुछ अनेक दिनों से भारतीय जनता पार्टी के भीतर चल रहा है और कोई भी एकमत नहीं हो पा रहा है कि कौन सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार किस जगह पर हो सकता है। यह सब पार्टी के लिए नहीं अपने अपने वजूद और अपने अपने अहम के लिए किया जा रहा है ।
जो पार्टी सुशासन ,सुप्रशासन और नियमों के अंतर्गत चलने का दावा करती हो उसके लिए सबसे पहले यही होना चाहिए कि वह अपने रिश्तो को संबंधों को और समर्थन को दरकिनार कर पार्टी के लिए पार्टी की जीत के लिए सबसे अधिक योग्य उम्मीदवार का चयन एक मत से कर सके। खैर कुछ ही घंटों में वह परिणाम आ जायेगा तब साफ होगा किसी की अपनी वाली चली या कायदों की। फिर भी यह तो ठीक नहीं किसी कॉडर बेस पार्टी के लिए कि लोग नीतियों से राज के रास्ते बनाने के बजाए अपने स्वार्थ की खादपानी से दम लगा कर खरपतवार बौने का काम करें।