ये अफसर और अमले की जीत है

Pinal Patidar
Published on:
indore news

नितिन शर्मा
याद है न इंदौर नगर निगम का नाम आते ही केसी तस्वीर सामने आती थी? टूटे-फूटे कंडम वाहन। सड़ांध मारती कचरा पेटियां। उबाक ला दे ऐसे बदबू मारते सार्वजनिक शौचालय। गाद-गन्दगी से अटी पड़ी बेक लाइन्स। दुर्गन्ध परसोते नाले। सड़को पर बहता गटर का पानी। आये दिन चोक होती ड्रेनेज लाइने। हवा में उड़ता कचरा-प्लास्टिक की पन्नियां। वातावरण में धूल-धुंए की भरमार ओर नहाए-धोये चेहरे पर जमा होती काली कालिख। रसूखदार कर्मचारियों-सफाई कर्मियों की फ़ौज। बगेर काम किये हर महीने की 4 तारीख को वेतन लेने वालों की कतार। मस्टरकर्मियो की “अलमस्ती” ओर साहब बहादुरों की जैसे तैसे शाम के “5 बजने” की मानसिकता।

ये तस्वीर बदल भी सकती है? “इंदोरी” तो इस दिशा में सोचना तो दूर कल्पना भी नही करते थे। सबसे पहले तो इसी मोर्चे पर ही बहुत बड़े सुधार-बदलाव की जरूरत थी जो लगभग असंभव मान ली गई थी। सफाई के मामले में यूनियनों की दखलंदाजी-धरने-आंदोलन-हड़ताल का ख़ौफ़ ऐसा की कोई भी सरकार-साहब बहादुर सुधार के इस महाअभियान हाथ डालना तो दूर…छूना भी पसन्द नही करते थे। निगम और उसकी कार्यशैली वैसे ही स्थापित हो गई थी और स्वीकार कर ली गई थी जैसे सूरज पूरब से निकलता है।

ये भी पढ़े – Modi Yogi : योगी के कंधे पर मोदी का हाथ, क्या अपने देखी दोनों नेताओं की ऐसी तस्वीरें

किसने सोचा था कि कंडम वाहनों की जगह चमचमाती गाड़िया आएगी?? कचरा उड़ाते हुए जाते डम्पर देखने को नही मिलेंगे? कचरा पेटी नाम की कोई चीज ही नही होगी? बेक लाइंस में खाट-खटिया लगकर आराम होगा??नालो में क्रिकेट खेला जाएगा?? घर का कचरा-घर के दरवाजे से समेटा जाएगा? सड़क का कचरा ही नही, डिवाइडर के कोनो में पड़ी धूल तक समेट ली जाएगी? सार्वजनिक शौचालय बिजली पानी ओर साफ सफाई से लैस होंगे?सफाईकर्मी मुस्तेदी से ही नही, उत्साह से काम करेंगे? रसूखदार कर्मचारी भी वर्दी पहनेंगे ओर साहब बहादुरों को भी सुबह 4 बजे से रात तक पसीना बहाना पड़ेगा। मुफ्त की तनख्वाह बन्द होगी ओर काम करने की प्रवत्ति विकसित होगी??

मनीष सिंह नाम का एक अफसर आया। ये अफसर भी वैसे ही था जैसे निगम में आकर गए दूसरे अफसर थे। उतने ही अधिकार-उतनी ही सीमाएं। लेकिन ये अफसर कुछ हटकर निकला। अपनी जीवटता से उसने सड़ांध मारती इस व्यवस्था की एक सर्जन के मानिंद शल्य क्रिया शुरू की ओर शुरुआत उसी निगम परिसर से की जहा कल ढोल-ताशों की धूम पर जश्न मन रहा था।

कैमरे के सामने सब चिन्हित किये गए। बड़े-छोटे सब कर्मचारी। एक एक सफाईकर्मी। मेहनतकश से लेकर रसूखदार तक। सब कतारबद्ध किये गए। फोटो के साथ परिचय पत्र बने। “मक्कार” अलग से श्रेणीबद्ध हुए और राजनीतिक रसूख वाले भी। कर्तव्यनिष्ठ भी चिन्हित किये गए और ईमानदारी से सफाई करने वाले भी छाटे गए। दबाव प्रभाव दरकिनार किया गया ओर यही से शूरु हुआ इंदौर का स्वच्छता ऑपरेशन।

ये मनीष सिंह जी का ही जज्बा था कि उन्होंने सबसे पहले उस वर्ग का विश्वास जीता…जिससे ये सारा काम लिया जाना था। न केवल विश्वास जीता बल्कि एक नया आत्मविश्वास भी निगम अमले में जगाया। अच्छा काम करने वालो को लीक से हटकर बड़ी जिम्मेदारी से नवाजा गया। कामचोरी करने वालो को लूप लाइन का रास्ता दिखाया गया। ट्रेचिंग ग्राउंड से लेकर कबाड़खाने तक वो लोग भेज दिए गए जिनकी कभी निगम गलियारों में तूती बोलती थी।

” घर की फ़ौज ” चाकचौबंद करने के बाद श्री सिंह निकल पड़े पूरे शहर में पसरी गन्दगी को खत्म करने और उस मानसिकता को खदेड़ने जिसमे ये स्थाई रूप से मान लिया गया था कि निगम में सफाई को लेकर महज रस्म अदायगी ही होती है। ” अच्छे के साथ अच्छा-बुरे के साथ बुरा” वाली श्री सिंह की छवि ने काम करने वाले निगम के अमले में जान फूंक दी कि अब कोई है उनका “धणी-धोरी”। कई सस्पेंड हुए। कई बर्खास्त। श्री सिंह सफाईकर्मी के लिए समरस बने। उनके सुख दुःख में शामिल होने लगें। उनके अधिकारों की रक्षा करने लगें। एक पालक बनकर इस वर्ग का विश्वास अर्जित किया। कर्मचारी यूनियनों को भी विश्वास में लिया गया। उनमें परस्पर सामंजस्य तक श्री सिंह ने बैठाया।

शेष कमी केंद्र सरकार के स्वच्छता महाअभियान ने पूरी कर दी। देश के पंत प्रधान के इस अभियान में निगम की आर्थिक हालत दुरुस्त की। श्री सिंह की निगरानी में केंद्र से आने वाले मोटे फंड का सुव्यवस्थित उपयोग हुआ। इस फंड से निगम के संसाधन बढ़ाने से लेकर निगम के अमले की चिंता शामिल की गई। कर्मचारियों का ड्रेस कोड तय हुआ ओर उनका सम्मान भी तय किया गया। इसके लिए श्री सिंह ने 24 घण्टे काम भी किया। न दिन देखा न रात। न सर्दी-गर्मी-बारिश की फिक्र की। सुबह 4 बजे भी वे सफाई मित्रो के बीच रहे तो देर रात उनके मोहल्लों में होने वाले शादी ब्याह समारोह में भी डटे रहे। परिणाम सामने है।

राजनीति भी इसमें श्रेय ले रही है। कोई बुराई भी नही। लेकिन ये न भूले ये किसी नेता के बूते नही हुआ है न न किसी नेता के बूते की बात थी। नवाचार करने की मंशा जरूर सबकी रही होगी लेकिन मैदानी मशक्कत नही के बराबर। फिर सब दलों के अपने अपने वोट बैंक थे। चाहकर भी कुछ नही कर सकते। हा श्री सिंह को प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान का जबरदस्त साथ मिला। मुख्यमंत्री भी जानते थे इस सबके पीछे की श्री सिंह की मंशा। लिहाजा वे पूरे समय मनीष सिंह जी के पीछे डटे रहे ताकि श्री सिंह फ्रंट फुट पर न केवल खेलते रहे…बल्कि आगे बढ़कर ड्राइव भी करते रहे…बतौर कलेक्टर इंदौर में ही पदस्थापना ने सिंह के बाद आने वाले निगमायुक्तो ओर अन्य अफ़सरो की राह आसान कर दी ओर उन्होंने भी जमकर मेहनत की। इंदोरियो के तो कहने ही क्या। उनके साथ ने अमले की मेहनत पर चार चांद लगा दिए।

परिणाम…..स्वछता का पंच के रूप में सामने है।
( ये कलेक्टर श्री सिंह का स्तुति गान नही है। श्री सिंह से तो कभी भेट भी नही हुई। ये मन की बात है। जन जन कि बात है। ओर सत्य बात है।)