नितिनमोहन शर्मा। राजनीति के “जगत मामा” हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जा रहे है क्या…?? ये सवाल भाजपाई गलियारों में ही नही, प्रदेश की राजनीति में तेजी से चल रहा है। इस सवाल के पीछे भाजपा ही है। पार्टी नेताओ का परस्पर मेल मुलाकातो का दौर ओर प्रदेश मुखिया का भगवान के दर दर जाना इन सवालों को जन्म भी दे रहा है और बल भी। घूर विरोधी नेताओ का आपस मे मिलना और सत्ता की दौड़ में शामिल नेताओ के दिल्ली दौरे ” सरकार” की सांस फुला रहे है।”सरकार” की सांसों का ये उतार-चढ़ाव स्पष्ट नजर आ रहा है। उस पर ” दिल्ली” की दो टूक ने सत्ता की धड़कनें भी धौकनी जैसी चला दी है। “दिल्ली” ने दो टूक कह दिया- प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव किसी सीएम के नही, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे को सामने कर लड़ा जाएगा। क्योंकि सीएम की लोकप्रियता 25 फीसदी ही है, मोदी की अभी भी 70 प्रतिशत से ज्यादा है। दिल्ली की इस दो टूक ने प्रदेश की भाजपाई राजनीति ओर सरकार के आने वाले दिन कठिन कर दिए है। कोई आने वाले 10-20 दिन में बड़े फैसले का दावा कर रहा है तो कोई अभी भी खम ठोक रहा है कि कुछ नही होगा। 15-17 बरस की “शिव सत्ता” न केवल कायम रहेगी बल्कि चुनाव भी मामा के नेतृत्व में ही होगा। सत्ता परिवर्तन के दावा करने वाले भाजपा संगठन में भी फेरबदल बता रहे है।
प्रदेश भाजपा में इन दिनों हलचल तेज है। उपर से सब कुछ शांत नजर आ रहा है। लेकिन सूत्र बताते है कि अंदर ही अंदर कोई बड़ा गेम प्लान चल रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बॉडी लेंग्वेज भी बहुत सी भाषाएं एक साथ बोल रही है। हालांकि वे निर्विकार भाव से देवी देवता मनाने में जुटे हुए है। इसमे तन्त्रोक्त पूजा के केंद्र कामख्या शक्ति पीठ से लेकर पीताम्बरा पीठ, विंध्यवासिनी देवी प्रमुख है। काशी नरेश की शरण मे सीएम पहुंचे। इसके पहले जब भी ऐसे संकट मंडराए, मामा भगवान की शरण मे ही गए। ईश्वर ने उनका हमेशा साथ दिया और बिदा बिदा के शोर के बाद वे फिर टिक जाते रहे है। इस बार भी सीएम ओर उनके समर्थक विधायकों-मंत्रियों को भरोसा है कि “भाईसाहब” का कुछ नही होगा।
दूसरी तरफ पार्टी के अलग अलग इलाके के क्षत्रप है जो इस बार बदलाव की बयार देख रहे हैं। इसमे मालवा से लेकर ग्वालियर चंबल ओर विंध्य-महाकौशल तक के नेता शामिल है। ये नेताओ का परस्पर मेल मुलाकातों का दौर भी चल रहा है। एक दूसरे की चौखट पर जाने का ये सिलसिला इंदौर से ही शुरू हुआ था। बदलाव की बयार में सबसे संभावनाशील दो नेता कैलाश विजयवर्गीय ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया आपस मे मिलते हैं। बहाना डिनर की टेबल तक सीमित रहने का रहता है लेकिन इस डिनर डिप्लोमेसी की गूंज इंदौर से भौपाल होते हुए दिल्ली नागपुर तक जाती है। फिर प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा और विजयवर्गीय के बीच पितृ पर्वत पर मुलाकात होती है। सिंधिया बाद में प्रदेश के कद्दावर नेता प्रहलाद पटेल से भी मिलते है। उधर मंत्री भूपेन्द्र सिंह का भी अलग से मूवमेंट चल रहा है। कुछ दिनों की खामोशी के बाद इन दिनों वे बेहद सक्रिय है और सोशल मीडिया पर किसी न किसी आयोजनों के बहाने बने हुए है। बदलाव के इस दौर में भूपेन्द्र सिंह अपने लिए बेहतर संभावना देख रहे है। सूत्र उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का दावेदार बता रहे है।
इन सबके बीच प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा की आरएसएस के शीर्ष नेताओं से मुलाकात ओर दिल्ली दौरे ने सबके समीकरण उलझाए हुए है। सूत्र बताते है कि इस बार मंत्री जी सीएम के मददगार है। अभी तक वे स्वयम शिवराज सिंह के लिए चुनोती बने हुए थे।
आरएसएस का शिकंजा कसाते ही हलचल हुई तेज
प्रदेश में सत्ता का चेहरा बदलने की हलचल प्रदेश भाजपा पर आरएसएस का शिकंजा कसाने के बाद तेज हुई है। आरएसएस ने भाजपा के संगठन को स्वयम के संगठन ढांचे के अनुरुप गढ़ते हुए मध्यप्रदेश में क्षेत्रीय संगठन मंत्री के रूप में अजय जामवाल की तैनाती कर दी। जामवाल के आने के बाद घटनाक्रम तेजी से घुमा। जामवाल ने अपने स्तर पर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की भाजपा का स्कैन किया। जामवाल के आने के बाद छत्तीसगढ़ में तो अध्यक्ष के साथ साथ नेता प्रतिपक्ष भी बदल गया। इससे एमपी में भी सरगर्मी तेज हो गई। इस पर देश के गृह मंत्री अमित शाह का भोपाल दौरा भी हो गया। हालांकि शाह का राजधानी प्रवास राजनीति से परे रहा लेकिन इस दौरान प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की भाव भंगिमाए साफ इशारा कर रही थी कि सत्ता के साथ कुछ तो परेशानी है?सूत्र बताते है कि अब जामवाल के जरिये संघ प्रदेश भाजपा सन्गठन ओर सरकार में कुछ तब्दीली करने का मन बना चुका है। चुनाव नवम्बर 2023 में है। तब तक वक्त रहेगा नए बदलाव को जमीन पर स्टेब्लिश करने के लिए। लिहाजा प्रदेश की सियासत में आने वाले दिन महीने कठिन रहेंगे।
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बांध फूटा…संयम टूटा..??
धार जिले में बने कोरोमा बांध का फटना क्या सरकार के लिए बड़े संकट का कारण बन गया? ये सवाल प्रदेश की सियासत में चल रही हलचल में रह रहकर सामने आ रहा है। सूत्रों की माने तो बांध के फुट जाने और 20 हजार जिंदगी के दांव पर लग जाने के घटनाक्रम ने ” दिल्ली” के संयम को तोड़ दिया। इधर बांध फूटा-उधर संयम टूटा की तर्ज पर ये मुद्दा प्रदेश में चल रहे ” कथित भृष्टाचार” से जुड़ गया। उस वक्त दिल्ली से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी इस मामले पर नजरें गड़ाए हुए थे। कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के नेताओ ने इस घटनाक्रम को दिल्ली तक सिलसिलेवार पहुँचाया। हालांकि सरकार ने बांध फूटने की घटना को स्वागत सत्कार के जरिये ये साबित करने की कोशिश की कि बेहतर डिजास्टर मैनेजमेंट से हमने हजारों जिंदगियां बचा ली। लेकिन हकीकत दिल्ली से शायद छुप नही सकी। जिसके नतीजे में अब प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की बात चल पड़ी है।
मोदी का ही चेहरा… सीएम का क्या काम?
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने दो टुक कह दिया कि अगले बरस जिन राज्यो में चुनाव होना है, वहां चेहरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही रहेंगे। उनके नाम की आगे रखकर ही राज्यो में वोट मांगे जाएंगे। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व 2023 के इन चुनावों को 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़ते हुए बेहद गम्भीर है और वो किसी भी प्रकार की रिस्क नही लेना चाहता। बीती बार एमपी छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारें बन गई थी। तब भी चुनाव सम्बंधित राज्यों के सीएम के नेतृत्व में ही लड़े गए थे। शिवराज सिंह, वसुंधरा राजे ओर रमन सिंह का नेतृत्व राज्यो में अस्वीकार करना केंद्रीय नेतृत्व भुला नही है। दिल्ली की इस दो टूक ने ये भी साफ कर दिया कि जहा चुनाव होना है, वहां पार्टी ओर संगठन, मुख्यमंत्री के मोहताज नही है। इज़क बाद प्रदेश में सत्ता का चेहरा बदलने की बात प्रबल हुई है।