फिर याद आई धार की भोजशाला

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टीवी समाचार चैनलों में पिछले कुछ सालों में ये दस्तूर हो गया है या तो जो खबर चल रही है उससे जुडी खबर हो या फिर जो चल रहा है उससे बडी खबर हो। वरना शांत रहिये और दूसरी खबरें तलाशिये। ऐसे में हम पुराने रिपोर्टर देखते हैं कि जो चल रहा है उस गाड़ी में कैसे सवार हो जायें या इसे कहें कि जो यज्ञ चल रहा है उसमें कैसे अपनी आहुति लगायी जाये।

इन दिनों जब देश में मंदिरों से जुड़ी मस्जिद या मस्जिद से जुडे मंदिर तलाशे जा रहे हैं तो हमे भी हमारी धार जिले की भोजशाला याद आयी। जिसका विवाद सालों पुराना है और जिसे हम शुक्रवार को आने वाली बसंत पंचमी पर ही याद करते हैं जब प्रशासन के सामने बसंत पंचमी पर होने वाली सरस्वती पूजा और जुमे की नमाज कराने की चुनौती होती है। वो दोपहर बडी भारी होती है जब ये दोनों काम कराना प्रशासन के लिये बडा मुश्किल काम होता है। पिछले कुछ सालों में तीन या चार मौके ऐसे आये और हम सब उस मौके के गवाह बने कि कैसे दोपहर होते तनाव पनपता है और फिर थोडी तनातनी के बाद उसका उफान उतरता है। शाम तक दोनों पक्ष और प्रशासन राहत की सांस लेते हैं कि चलो दोनों काम निपटे।

मंदिर मस्जिद के बीच चल रहे विवादों में जब हमने अपनी भोजशाला की कहानी बतायी तो स्वाभाविक सवाल था तो ये कहानी आज क्यों करें और ऐसा क्या न्यूज पैग है इसमें जो हमें भोजशाला याद आ रही है। मगर जिज्ञासु रिपोर्टर का मन कह रहा था कि देश में चल रही मंदिर, मस्जिद, हनुमान चालीसा, लाउडस्पीकर की हवा से भोजशाला भी अछूती नहीं रहेगी और कुछ दिनों महीनों में ये विवाद गर्मायेगा इसलिये उससे पहले एक बार जाकर किस हाल में है भोजशाला कहानी करनी चाहिये। कुछ ने हां कहा तो कुछ ने मना किया मगर हम सोमवार की शाम को धार में थे मंगलवार की सुबह होने वाले हनुमान चालीसा की कवरेज के लिये।

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भोपाल से ढाई सौ किलोमीटर दूर इंदौर के पास बसा धार ऐतिहासिक शहर है जिसे राजा भोज से जोड़कर देखा जाता है। धार में परमार राजाओं के महल और छतरियां सब एहसास कराते हैं कि आप एक जमाने के खास शहर में हैं। शहर के एक किनारे में बनी है भोजशाला जिसके बारे में कहा जाता है कि उसे दसवीं सदी में राजा भोज ने बनाया था और वो संस्कृत पाठशाला थी जिसमें देवी सरस्वती या वाग्देवी की प्रतिमा भी लगी थी जिसे अंग्रेज अपने साथ लंदन ले गये। इसी परिसर के सटी हुयी है सूफी कमाल मौला की दरगाह जो तेरहवीं सदी के खिलजी वंश की है। चूंकि तेरहवीं सदी के बाद के दस्तावेजों में भोजशाला को कमाल मौला की मस्जिद बताया गया है तो यहां परिसर में नमाज पढी जाती है। कई लंबे सालों तक चले विवादों के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई ने इस परिसर को अपने कब्जे में लिया है और मंगलवार को हिंदुओं को फूलों के साथ पूजा करने और शुक्रवार को मुसलमानों को दोपहर की नमाज पढने की छूट दी है। बाकी दिन वो पुरातत्व विभाग की इमारत है टिकट लेकर कोई भी आ जा सकता है।

धार में सक्रिय हिंदू संगठन भोजशाला को उनको सौंपने के लिये लंबे समय से आंदोलन चलाते आ रहे हैं। 2003 के बाद से चल रहे बीजेपी शासन से उनको उम्मीदें थी कि उनकी सुनी जायेगी मगर 2013 से केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद भी उन नियमों में जरा भी तब्दीली नहीं हुयी है जो पिछले अठारह सालों से चल रहे हैं। मगर हिम्मत हारना इन संगठनों ने सीखा नहीं है नेता बदलते रहे मगर भोजशाला में मंगलवार को नियम से हनुमान चालीसा पढा जा रहा है। उसे वो सत्याग्रह कहते हैं। मंगलवार की सुबह भी गोपाल शर्मा और उनके साथियों ने राष्ट आराधना के कुछ गीतों के बाद हनुमान चालीसा पढा और उम्मीद जाहिर की कि ये परिसर हिंदुओं को आज नहीं तो कल उनको मिलेगा ही। धार मे हमने कुछ मुस्लिम समाज के लोगों से भी बात करनी चाही तो बिना कैमरे के सामने आये उन सबका दावा था कि कागजों पर उनका दावा मजबूत है चाहे धार स्टेट के कागज हों या फिर आजादी के बाद के ये कमाल मौला मस्जिद है इस पर उनका हक है। मगर जब हमने उनसे पूछा कि यदि कोर्ट आस्था के आधार पर फैसला देने लगा तो क्या करोगे तो वो चुप ही रहे।

और हुआ वही हम मंगलवार को भोपाल आये और बुधवार की दोपहर हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में हिंदू फ्रंट फार जस्टिस की ओर से याचिका लगा दी गयी। भोजशाला परिसर हिंदुओं को देने और मुसलमानों को नमाज पढ़ने से रोकने के लिये। हिन्दू पक्ष की याचिका वकील हरिशंकर जैन ने लगायी है जिन्होने ज्ञानवापी मस्जिद और कुतुब मीनार का विवाद भी उठाया था। कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर संबंधित पक्षों को नोटिस देकर अपना पक्ष रखने को कहा है। अचानक आयी इस याचिका और कोर्ट के आदेश के बाद धार का मुस्लिम पक्ष हरकत में हैं और कह रहा है कि भोजशाला पर हक के लिये कानूनी लडाई लडी जायेगी।

मगर अब साफ है कि अयोध्या, काशी के बाद भोजशाला भी हिंदू संगठनों की उसी कड़ी का हिस्सा है जिसे वो इतिहास की भूल कहकर सुधारने निकले हैं। जन आंदोलन से लेकर अदालतों तक इसकी लड़ाई की तैयारी उन सबने कर ली है। जानकार कहते हैं कि इतिहास की गलतियों से सबक लेना चाहिए मगर यहां तो इतिहास की गलतियों को सुधारने की धुन सवार है। देखिये आगे आगे होता है क्या…

ब्रजेश राजपूत,
भोपाल