सूरज-चांद, जमीं-आसमां सब के सब गुलाम है

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आदिल सईद

इस दुनिया के मालिक ने इंसानों को पैदा करके यूँ ही नहीं छोड़ दिया बल्कि इस धरती पर उसके जिंदा रहने के सामान भी मुहैया किये, इस धरती को सजाया और आकाश को सितारों से जगमगाया। बर्फीली हवाओं को दौड़ाया,तो सूरज को भी तपिश देकर नमूदार किया, सूरज को इतनी तपिश दी कि कायनात का हर हिस्सा उससे रोशन हुआ और उससे मिली गरमाहट से उर्ज़ा बनी।

फिर सारे संसार के एक ही मालिक ने उस सूर्य को हुक़्म दिया कि वो धरती पर कभी उत्तर दिशा में झुके तो कभी दक्षिण दिशा में, इसके झुकने से गर्मी और सर्दी का इंतज़ाम हुआ, इसे ठीक ऐसे ही समझें कि एक हीटर को जब हम एक तरफ झुका कर रख दें, तो जिधर झुका है उधर ज्यादा गर्मी होगी, जिधर से झुका है उधर कम गर्मी होगी, या नहीं होगी। बस यही है सूरज का गणित। वो उत्तर की तरह बढ़ने लगता है, तो मकर रेखा के ठीक ऊपर से होकर गुजरता है, यहीं से वो उत्तर भारत की तरफ सीधा सिर पर होने लगता है।

जिससे ठंड कम होने लगती है, जब वह छह महीने चल कर जून में कर्क रेखा के ठीक ऊपर खड़ा होता है तो उज्जैन के ऊपर भी उसका साया होता है, नतीज़ा सारे उत्तर भारत में झुलसा देने वाली गर्मी पड़ती है और इस वक्त कर्क संक्रांति होती है। आज मकर संक्रांति है, यानी सूर्य मकर रेखा के ऊपर है। सूरज की इस आवाजाही में सूरज के खुद का कोई कमाल नहीं है, वो मजबूर है अपने मालिक का, अपने पैदा करने वाले का, उसने जब तक चाहा है, सूरज तब तक ऐसे ही चलता रहेगा और वो जब चाहेगा सूरज मद्धम पड़ कर निकलेगा फिर डूब जाएगा।

और उसे फिर अपनी जगह बदलने का हुक्म मिलेगा तो वो पूरब की जगह पश्चिम से भी निकलेगा, क्योंकि वो हुक़्म का गुलाम है,उसका काम है अपने मालिक के हुक्म से उसकी सबसे खूबसूरत रचना यानी इंसान को प्रकाश और उर्ज़ा देना, जो कि सूरज बिना ना नुकुर, बिना हिले-बहाने, बिना रुके,बिना थके दे रहा है और क़यामत तक देता रहेगा, एक हम ही हैं, जो अपने मालिक के हुक़्म की तामिल में टालमटोल करते हैं।