अजय बोकिल
पंजाब के फिरोजपुर में पार्टी रैली को सम्बोधित करने जा रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काफिले में सुरक्षा चूक और बिना रैली में जाए पीएम की वापसी, जितना राजनीतिक मुद्दा है, उससे भी बड़ा सवाल पीएम की अभेद्य सुरक्षा में सेंध का है। देश के शीर्षस्थ राजनेता की हिफाजत को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार के बीच तालमेल न होने का है। और इस घटना के बाद शुरू हुई सियासत के औचित्य का है। कहां किस पार्टी की सरकार है, उसकी राजनीतिक लाइन क्या है, क्या नहीं है, यह बात गौण है। अगर पीएम की सुरक्षा में तिलमात्र खामी है तो इसका नकारात्मक संदेश पूरी दुनिया में जाता है। खासकर तब कि जब हम इन्हीं सुरक्षागत खामियों और लापरवाही के कारण देश में ही अपने एक प्रधानमंत्री और दूसरे पूर्व प्रधानमंत्री को गंवा चुके हैं।
इस गंभीर घटना के बाद जिस तरह बचाव में बचकाने और आरोपों के रूप में जो ‘ठोकतांत्रिक’ बयान आ रहे हैं, वो दोनो ही घटना की संजीदगी को कम करते हैं। यह सही है कि पंजाब में जल्द विधानसभा चुनाव होने हैं। वहां का राजनीतिक परिदृश्य बहुत धुंधला है। कौन सत्ता में आएगा, इस बारे में अनुमान लगाना भी कठिन है, क्योंकि किसी पार्टी का घर कलहमुक्त नहीं है। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फिरोजपुर में चुनावी रैली को सम्बोधित करने वाले थे। लेकिन रैली की जगह से करीब 8 किलोमीटर दूर एक फ्लाईओवर पर पीएम का काफिला रोकना पड़ा, क्योंकि कुछ किसान संगठनों के कार्यकर्ताअों ने रैली का रास्ता रोक रखा था। पीएम का काफिला रास्ता खाली होने का 20 मिनट तक इंतजार करता रहा, लेकिन जब स्थानीय पुलिस प्रदर्शनकारियों को हटाने में नाकाम रही तो पीएम को लौटना पड़ा। रैली स्थल से कुछ किमी दूर पाकिस्तान से लगी हुसैनीवाला सीमा है, जहां शहीद भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू की समाधि है। पीएम बीच रास्ते से वापस भठिंडा एयरपोर्ट लौट गए। साथ ही पीएम ने एयरपोर्ट पर उन्हें विदाई देने आए पंजाब के आला अफसरों से तल्खी और तंज से भरा कमेंट िकया कि अपने सीएम को बता देना ‘बहुत धन्यवाद कि मैं जिन्दा बचकर आ गया।‘ निश्चय ही पीएम के इस कमेंट में क्रोध, कटाक्ष और सियासत एक साथ थे। अगर वो बिना कुछ कहे वापस लौट जाते तो उनका मौन और ज्यादा समर्थन और सहानुभूति जुटा सकता था।
खैर, पीएम के इस तरह लौटने पर पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी पहले तो ग्लानिभाव से घिरे दिखे और कहा कि वो भी पीएम का सम्मान करते हैं, लेकिन बाद में उन्होंने राजनीतिक लाइन ले ली। चन्नी ने कहा कि विरोध प्रदर्शन करने वाले किसान थे इसलिए मैं उन पर लाठी गोली नहीं चलवा सकता। यह भी कहा कि पीएम पहले हवाई मार्ग से जाने वाले थे, अचानक उनका कार्यक्रम बदला और सड़क मार्ग से जाना तय हुआ, इस कारण भी गफलत हुई। यह भी कहा गया कि िफरोजपुर की रैली में महज पांच- सात सौ की भीड़ जुटी थी ( आशय ये कि इसकी खबर पीएम को मिल गई थी और उन्होंने वहां न जाने का निर्णय लिया) सो मुद्दा सुरक्षा व्यवस्था में चूक को बनाया गया। घटना के दूसरे दिन चन्नी ने यह भी कहा कि एक ‘छोटी सी घटना’ का बतंगड़ बनाया जा रहा है।
ऐसा लगता है कि जो घटा वो कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से जिंदा रखने की कोशिश थी। यह जताने का प्रयास था कि मोदी के प्रति किसानों की नाराजी दफन नहीं हुई है। माना गया कि पीएम काफिले को रोकना इसका धमाकेदार तरीका हो सकता है। यह मालूम होते हुए कि कई स्तरों की सुरक्षा से घिरा पीएम का काफिला कहीं भी नहीं रूकता। हालांकि मोदी कुछ क्षण रूककर नारेबाजी कर रहे लोगों से मुलाकात कर नहले पर दहला मार सकते थे, लेकिन यह बेहद जोखिम भरा होता। उन्होंने लौटना ही बेहतर समझा।
सीएम चन्नी के अनुसार अगर यह ‘छोटी सी’ घटना थी तो वो किस बड़ी घटना का इंतजार कर रहे थे? वो शायद भूल गए कि पूर्व प्रधानमंत्री और उन्ही की पार्टी की नेता श्रीमती इंदिरा गांधी की सुरक्षा में ‘छोटी सी’ लापरवाही देश को कितनी महंगी पड़ी? अगर वो पीएम की रैली रूकवाने को आंदोलनकारी किसानों की जीत मान रहे हैं तो यह तर्क इसलिए गले उतरने वाला नहीं है कि पंजाब में बीजेपी की कोई खास राजनीतिक ताकत है ही नहीं। वो कुछ समय पहले तक शिरोमणि अकाली दल की पूंछ पकड़ कर ही चुनावी वैतरणी पार करती आई है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को महज 3 सीटें और 5.4 फीसदी वोट मिले थे। अगर पीएम की सभा निर्विघ्न हो भी जाती तो भाजपा की ताकत कितनी बढ़ती? लेकिन रैली रूकवाने से कांग्रेस को क्या सियासी लाभ हुआ, समझना मुश्किल है।
इस चिंताजनक घटना के बाद भाजपा ने जिस तरह इसे राजनीतिक मुद्दा बनाकर भुनाने की कोशिश शुरू की है, वह भी अतिरेक है। यह घटना क्षुद्र राजनीतिक लाभ लेने की नहीं है। न तो पंजाब सरकार को कोस कर और न ही परोक्ष रूप से इसे जायज ठहराकर। भाजपा के एक नेता ने तो चन्नी सरकार बर्खास्त करने की भी मांग कर डाली। वो भूल गए कि चरणजीत सिंह चन्नी देश में इकलौते दलित मुख्यमंत्री हैं और उन पर सीधा हमला भाजपा को पंजाब से ज्यादा दूसरे राज्यों में नुकसान पहुंचा सकता है। पंजाब में कांग्रेस खुद ही अपने कर्मों से तार-तार हुई जा रही है, उस पर आरोपों के और बम फोड़ने से क्या हासिल होना है? दूसरे, इस घटना की आड़ में जिन ‘देश के दुश्मनों’ पर शाब्दिक फायरिंग की जा रही है, वो लोग कौन हैं? और ऐसी फायरिंग पराघाती से ज्यादा कितनी आत्मघाती होगी, यह भी किसी ने सोचा है?
जो लोग पीएम के काफिले के बीच प्रदर्शन करना चाह रहे थे, वास्तव में वो कितने किसान थे, यह भी एक सवाल है। जो आम किसान एक हवलदार से डरता हो, वो एसपीजी के सामने छाती खोलकर खड़ा हो जाएगा, यह मान लेना खुद को मुगालते में रखना है। वैसे भी पीएम काफिले का रूट व कार्यक्रम सुरक्षा कारणों से बेहद गोपनीय होता है। यह लीक किसने और कैसे किया, यही जांच का मुख्य मुद्दा है। आम तौर पर स्थानीय पुलिस राज्य की सरकार और सत्तारूढ़ नेताअों की मर्जी से काम करती है, लेकिन पीएम का काफिला कोई लोकल मामला नहीं है। राष्ट्राध्यक्ष की सुरक्षा और देश की प्रतिष्ठा का मामला है।
चिंता का दूसरा मुद्दा यह है कि आज इस तरह की हरकत पंजाब में हुई है, कल को दूसरे किसी गैर भाजपा शासित राज्य में भी हो सकती है। कारण कुछ भी बताया जा सकता है। मसलन लोग महंगाई से नाराज हैं, इसलिए पीएम का काफिला नहीं जाने देंगे वगैरह। यही खेल भाजपा की सरकारें किसी गैर भाजपा पीएम के साथ खेल सकती हैं। अगर यह सिलसिला चल निकला तो देश की सुरक्षा प्रणाली और छवि का क्या होगा? क्योंकि प्रधानमंत्री कोई भी हो, किसी भी पार्टी या विचारधारा का हो, पूरे देश का प्रधानमंत्री है। जनता द्वारा निर्वाचित प्रधानमंत्री है। जनता के विश्वास का वाहक प्रधानमंत्री है। लोगों के अरमानों का प्रतीक प्रधानमंत्री है। सहमतियों के साथ असहमतियों का भी प्रधानमंत्री है।
विवादित कृषि कानूनों को लेकर पीएम मोदी की नीति और राय को लेकर मतभेद और गुस्सा हो सकता है, लेकिन उसे जताने का तो यह सही तरीका नहीं है। पंजाब की ही क्यों, कोई भी सरकार क्षुद्र कारणो की आड़ लेकर इस घटना पर पर्दा नहीं डाल सकती। यू केन्द्र सरकार ने पंजाब सरकार से पूरी रिपोर्ट मांगी है, लेकिन ये रिपोर्ट भी सियासत से परे होगी, कहना मुश्किल है। लापरवाही किसी भी स्तर पर हुई हो, उस पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। वरना आज यह सीमावर्ती और आतंकवाद की आग में झुलस चुके पंजाब में हो रहा है, कल को किसी दूसरे राज्य में भी हो सकता है। उसे हम किस मुंह से जायज ठहराएंगे? सियासी शतरंज में राष्ट्र की प्रतिष्ठा मारी जाए, यह देश कैसे गवारा कर सकता है?