सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में जातिगत भेदभाव को गंभीर और संवेदनशील मुद्दा करार दिया। शीर्ष अदालत ने इसे रोकने के लिए एक प्रभावी व्यवस्था विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को निर्देश दिया कि वह नियमों का एक प्रारूप तैयार करे, जिससे केंद्रीय, राज्य, निजी और डीम्ड विश्वविद्यालयों में छात्रों के साथ जातिगत भेदभाव पर रोक लगाई जा सके।
कितने कॉलेजों में है ‘समान अवसर प्रकोष्ठ’?
कोर्ट ने यूजीसी से यह जानकारी मांगी कि 2012 में बनाए गए नियमों के तहत कितने शिक्षण संस्थानों में ‘समान अवसर प्रकोष्ठ’ स्थापित किए गए हैं। ये नियम उच्च शिक्षा में समानता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लागू किए गए थे और इन्हें ‘यूजीसी समानता नियम’ के नाम से जाना जाता है। बेंच ने कहा कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है, जिसे गंभीरता से लिया जा रहा है। कोर्ट ने कहा, “हम इस विषय पर ठोस कदम उठाएंगे और 2012 के नियमों को प्रभावी बनाने के लिए एक कारगर व्यवस्था और तरीका सुनिश्चित करेंगे।”
यूजीसी को छह हफ्ते में आंकड़े पेश करने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब तलब किया और यूजीसी को निर्देश दिया कि वह सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों में जातिगत भेदभाव से संबंधित शिकायतों और उनके निपटारे की जानकारी छह हफ्ते के भीतर प्रस्तुत करे।
इंदिरा जयसिंह का दावा, 50 से अधिक छात्र आत्महत्या के शिकार
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को जानकारी दी कि 2004 से अब तक आईआईटी और अन्य संस्थानों में 50 से अधिक छात्रों ने जातिगत भेदभाव के चलते आत्महत्या की है। इनमें से अधिकांश छात्र अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों से थे। जयसिंह, छात्र रोहित वेमुला और पायल तड़वी की माताओं की ओर से कोर्ट में पेश हुईं। रोहित वेमुला हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र थे, जिन्होंने 17 जनवरी 2016 को आत्महत्या कर ली। वहीं, पायल तड़वी टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज की छात्रा थीं, जिन्होंने 22 मई 2019 को आत्महत्या की। पायल को कथित तौर पर अपने कॉलेज के तीन डॉक्टरों से जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था।
पीआईएल होगी नियमित सुनवाई के लिए सूचीबद्ध
कोर्ट ने बताया कि 2019 में इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की गई थी, लेकिन अभी तक इस पर कोई ठोस सुनवाई नहीं हुई है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अब इस याचिका को नियमित सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा, ताकि इस मामले का प्रभावी समाधान निकल सके। उन्होंने यह भी कहा कि 2019 से अब तक कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है, इसलिए इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।