सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने रिश्वतखोरी(bribery) के एक मामले की सुनवाई करते हुए सख्त तेवर अपनाए। सुप्रीम कोर्ट ने रिश्वतखोरी को संगीन अपराध मानकर कहा कि अदालतों में कामकाज के उच्च मानदंड सिर्फ जजों के लिए ही नहीं हैं, बल्कि वहां काम करने वाले कर्मचारियों के लिए भी हैं।
दरअसल बिहार की एक जिला कोर्ट में पदस्थ रहे व्यक्ति पर, एक केस में आरोपी को दोषमुक्त कराने के लिए 50 हजार रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप था जिसके बाद उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। अब यहां उसने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि वह सजा में बदलाव कर बर्खास्तगी(dismissal) की बजाए निकालना(Removal) करें, ताकि वह व्यक्ति कहीं और नौकरी कर सके।
आपको बता दे आरोपी व्यक्ति औरंगाबाद की कोर्ट में पीठासीन अधिकारी के पद पर था। और इस व्यक्ति ने पहले हाईकोर्ट की एकल पीठ में अपील की थी, जो खारिज कर दी गई थी। यहां तक कि डबल बेंच ने भी उसकी अपील को खारिज कर दिया था।
और अब सुप्रीम कोर्ट में अपीलकर्ता के वकील ने जस्टिस एएम खानविलकर व जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ के समक्ष हवाला दिया कि आरोपी व्यक्ति के खिलाफ यह पहला आरोप था लेकिन उसने पिछले 24 सालों से बेदाग सेवा की है। इस पर पीठ ने फटकार लगाते हुए कहा कि, अदालत में काम करते हुए भी पैसा मांगते हो, इस पर अपीलकर्ता ने अपनी गलती मंजूर भी की है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने अपना अपराध भी स्वीकार कर लिया है, अब कुछ नहीं किया जा सकता है। आरोपी की सेवा बहाली के सवाल पर पीठ ने कहा कि, इसका तो सवाल ही नहीं उठता।