राजेश राठौर । इंदौर के मेयर का फैसला आखिरी में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान करेंगे। ऐनवक्त पर सांसद शंकर लालवानी मेयर के उम्मीदवार हो सकते हैं।
स्थानीय गुटबाजी को देखते हुए इंदौर का मामला दिल्ली तक जा सकता है, आखिरी फैसला शिवराजसिंह चौहान को ही करना है। भाजपा ने विधायक रहते हुए कैलाश विजयवर्गीय और मालिनी गौड़ को मेयर का चुनाव लड़ाया है, सांसद भी लड़ाया जा सकता है। लालवानी किसी गुट में नहीं हैं, सीधे मुख्यमंत्री से जुड़े हैं। कैलाश विजयवर्गीय गुट के रमेश मेंदोला को रोकने के लिए बाकी नेता काम पर लग गए हैं। विधायक मालिनी गौड़ के साथियों ने कल सोशल मीडिया पर संदेश चलाना शुरू किया कि मालिनी गौड़ को स्वच्छता में नंबर-वन आने के कारण दूसरी बार भी मेयर का चुनाव लड़ाया जाए। ग्वालियर में ऐसा किया जा चुका है। गौड़ भी मुख्यमंत्री से जुड़ी हैं। विजयवर्गीय गुट मानकर चल रहा है कि मेंदोला को मंत्री नहीं बनाया तो मेयर का टिकट दिया जा सकता है। इंदौर के झगड़ों को देखते हुए मुख्यमंत्री किसी एक गुट के नेता को टिकट नहीं देंगे। इसमें सांसद लालवानी के लिए रास्ते खुल जाते हैं। पांच लाख से अधिक वोटों से जीतने के कारण लालवानी मजबूत उम्मीदवार हैं। नगर निगम ने एमआईसी मेंबर से लेकर सभापति तक लालवानी रह चुके हैं।
कांग्रेस की निगाह पटवारी या शुक्ला पर
कांग्रेस के पास मेयर पद के लिए दो ही वजनदार उम्मीदवार हैं, जिसमें एक पूर्व मंत्री जीतू पटवारी और विधायक संजय शुक्ला हैं।
महापौर का पद सामान्य होते ही विधायक संजय शुक्ला ने चुनाव लडऩे के लिए सार्वजनिक रूप से अपनी सहमति दे दी। उसके बाद शुक्ला के यहां शादी समारोह में पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को भी कांग्रेसियों ने कह दिया कि शुक्ला ही मजबूत उम्मीदवार हैं। हालांकि कमलनाथ ने तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उनकी उम्मीदवारी का किसी ने विरोध नहीं किया। पूर्व मंत्री सज्जन वर्मा ने खुलकर संजय शुक्ला की उम्मीदवारी का समर्थन कर दिया है। शुक्ला के अलावा किसी कांग्रेसी ने अभी तक दावेदारी खुलकर नहीं की है। कांग्रेस चाहती है कि ऐसे नेता को उम्मीदवार बनाया जाए, जिसका लाभ पार्षदों का चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को भी मिले। यदि मेयर पद पर कांग्रेस ने कमजोर उम्मीदवार को दिया, तो पार्षदों की जीत पर असर करेगा। इसीलिए पटवारी या शुक्ला में से कोई एक उम्मीदवार होगा, इस बात की संभावना बढ़ गई है। अभी पटवारी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। इन दोनों के अलावा जो नाम दावेदारों के सामने आ रहे हैं, वो इतने दमदार नहीं हैं कि भाजपा का मुकाबला कर सके।