सात दिन सात पुस्तकें : नेपोलियन, उसकी पराजय कहावत बन गई

Share on:

दिलीप गुप्ते

दुनिया को अपनी बहादुरी से प्रभावित करने वाले नेपोलियन बोनापार्ट के जीवन का अधिकांश भाग लड़ाइयों के मैदानों में बीता. उसका जन्म १५ अगस्त १७६९ को कोर्सिका के अजासियो में हुआ था. यह शहर फ्रांस ने १७६८ में इटली का टापू था. इस तरह वह भले ही इटली में पैदा हुआ हो, पर फ़्रांसीसी नागरिक  था. उसके माता पिता अमीर तो नहीं थे लेकिन सभ्य समाज के थे. नेपोलियन अपने वकील पिता कारलो की आठ में से चौथी संतान था. बचपन में नेपोलियन शैतानियाँ किया करता था. नौ साल की उम्र में नेपोलियन स्कूल में भर्ती हुआ.वह गणित में पक्का था. दूसरे विषयों में वह बस पास हो जाता था.

१७८४ में स्नातक होने के बाद उसने दो साल का कोर्स एक साल में ही पूरा कर लिया. सोलह साल की उम्र में वह फ्रांस के तोपख़ाने में सेकंड लेफ़्टिनेंट बना. १७९३ में उसे फ्रांस से निकलना पडा.

धीरे धीरे वह प्रगति करता गया. १७९४ में वह दो सप्ताह के लिये जेल में रहा. छूटने पर बेरोज़गार हो गया. लेकिन उसे अपनी सेना में लेने वाले कम नहीं थे. वह ब्रिगेडियर जनरल के ओहदेदारों तक पहुँच गया. वह अपने सैनिकों से हिलमिल कर रहता था. उसे अपने लगभग सभी सैनिक का नाम याद था. और सेना में सुधार करता रहता था. वह जर्मनी के लागों में स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता लाया, नागरिकों को संपत्ति बनाने का अधिकार दिया और सामंतवाद की कमर तोड़ी.  १७९७ में उसने ऑस्ट्रिया पर हमला किया और दुश्मन को शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने पर मजबूर किया. निदरलैंड जीत कर उसने वेनिस की एक हज़ार साल की आज़ादी समाप्त की. इसके बाद वह राष्ट्रीय नायक बन गया. अगले साल वह इटली की सेना का कमांडर बन गया. उससे बड़े जनरल उसे संदेह की निगाह से देखते थे. नेपोलियन ब्रिटिश सेना से सीधे भिड़ने से डरता था. उसने ब्रिटेन के व्यापारिक रास्ते मिस्त्र पर हमले की योजना बनाई जो असफल हुई.

इससे वह रूस की निगाह में खटकने लगा. कई लड़ाइयाँ लड़ने के बाद उसने कहा कि मैंने साठ लड़ाइयों लड़ीं और उनसे ऐसा कुछ भी नहीं सीखा जो मैं शुरूआत में नहीं जानता था. उसने अपने सैनिकों के लिये पहले दो अख़बार भी निकाले. फिर एक और अख़बार निकाला. उसके समय बनाई गई पेंटिंग में उसे दुनिया की पहली टेलिकम्युनिकेशन सिस्टम का उपयोग करते दिखाया गया.  अपनी सफलताओं से वह अविजित कहलाने लगा. एक के बाद एक देश जीतता जा रहा था. १८०४ में नेपोलियन ने अपनी आचार संहिता जारी की. इसके पहले यह अधिकार स्थानीय स्तर को था. इसी साल फ्रांस पुलिस ने नेपोलियन की हत्या की साज़िश पकड़ी. उसने खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित किया. पोप की बजाय नेपोलियन ने खुद ही अपने हाथों स्वर्ण मुकुट अपने सिर पर रखा. बीथोवन ने अपनी तीसरी सिंफनी नेपोलियन को समर्पित की.

मई १८०९ में वियेना के पास फ़्रेंच और ऑस्ट्रियन सेनाएँ आमने सामने हुईं. फ़्रेंच सेना जीतीऔर संधि पर हस्ताक्षर किये गये. नेपोलियन ने अपनी पहली पत्नी को तलाक़ दिया और दूसरी शादी की. १८११ में रूस और फ्रांस के बीच तनाव बढ़ा. युद्ध में रूस की हार हुई. लेकिन उसने जाते जाते खेतों में खड़ी फ़सलें जला दीं और पशु मार डाले. नेपोलियन की सेना ४५० हज़ार से १३५ हज़ार तक सिमट गई. नेपोलियन की सेना मॉस्को में घुस गई. मॉस्को के गवर्नर ने शहर जला देने का हुक्म दिया. नेपोलियन की सेना पीछे हटने लगी. लेकिन उसकी सेना को और भी नुक़सान हुआ. रूसी सेना ने फ़्रेंच सेना को पोलैंड में ख़ूब छकाया. प्रशिया, युनाइटेड किंगडम, स्पेन और पुर्तगाल रूस के साथ हो गए. बाद में स्वीडन और ऑस्ट्रिया भी आ मिले. नेपोलियन चार दिनों के लिये लापता हो गया.

नेपोलियन के लिये वाटरलू का युद्ध अंतिम युद्ध साबित हुआ. यह १८ जून १८१५ को हुआ था. यूके, रूस, ऑस्ट्रिया और प्रशिया ने मिल कर नेपोलियन को हराने के लिये डेढ़ लाख सैनिकों की सेना तैयार की. नेपोलियन की हरचंद कोशिशों के बावजूद वह संयुक्त सेना को फ्रांस में घुसने से नहीं रोक सका. वह जान गया था कि उसका सत्ता में बने रहने का एकमात्र रास्ता पहले हमला करना है. यदि वह संयुक्त सेना को बेलजियम में ही ख़त्म कर देता है तो वह ब्रिटिश सेना को पीछे हटने में कामयाब होगा. उसने दो सेनाएँ आगे बढ़ाईं. १६ जून १८१५ को प्रशिया पर हमला किया. प्रशिया की सेना पीछे हटी. अगले दिन नेपोलियन के सहयोगी मार्शल ग्राउची तीस हज़ार सैनिकों के साथ प्रशिया पर हमला करने के लिये नेपोलियन के आदेश का इंतज़ार कर रहा था. देर से मिले आदेश के कारण ग्राउची ने क़दम उठाने में देर की. इस देरी ने नेपोलियन की शिकस्त पक्की कर दी. १८ तारीख़ को नेपोलियन अपनी सेना की दाहिनी टुकड़ी को लेफ़्टिनेंट जनरल बैरन जॉन के नेतृत्व में प्रशिया की पिछली टुकड़ी को वार्वे की लड़ाई में उलझा दिया.

पिछले दिन की लड़ाई में वेलिंगटन अपनी सेना के साथ पहले से खोजी गई वाटरलू  मुख्यालय से एक मील दूर दक्षिण में माउंट सेंट ज़्याँ की घाटी तक पीछे हट गया था. इसके बाद उत्तर की फ़्रेंच सेना की बाईं टुकड़ी भी मार्शल नी के नेतृत्व में वहाँ पहुँची. इस लड़ाई में ७३ हज़ार फ़्रेंच सैनिक लगे थे, जबकि मित्र सेना के पास ६७ हज़ार सैनिक थे. नेपोलियन को युद्ध के पहले ही बड़ी समस्या से रूबरू होना पड़ा. उसे प्रशियन सेना की पोज़ीशन के बारे में सही सही जानकारी नहीं थी. युद्ध तो दस बजे ही शुरू हो गया था, लेकिन मुख्य हमला करने में देर हो गई, क्योंकि पिछली रात को हुई बारिश के कारण मैदान गीला हो गया था. कीचड़ के कारण पैदल सेना और घुडसवारों को घिसट कर चलने में बाधा आई. ११.३५ पर फ़्रेंच तोपख़ाने ने वेलिंगटन की पर्वत श्रेणी पर गोलीबारी शुरू की. लेकिन गीली सतह होने के कारण तोप के गोले बेकार सिद्ध हुए. इसके अलावा मित्र सेना ने खुद को पर्वत श्रेणी के पीछे सुरक्षित छुपा लिया था. एक बार तो फ़्रेंच सेना काफ़ी  आगे आ गई थी, लेकिन उसके खेत पर हमले नाकाम साबित हुए. वेलिंगटन को अपनी रिज़र्व

सेना की ज़रूरत नहीं पड़ी. युद्ध के अंदर युद्ध होता रहा. डेढ बजे जब नेपोलियन को पता चला कि प्रशिया सेना उसके दाहिनी ओर बढ़ रही है तो उसने मार्शल नी को पैदल सेना वेलिंगटन के विरुद्ध खेत की दाहिनी ओर बढ़ने को कहा. बमबारी और दोनों ओर से गोलीबारी के कारण सेना को पीछे हटना पडा. ब्रिटिश सेना को भी काफ़ी नुक़सान उठाना पडा. पैदल सेना को साथ देने के लिए तोपख़ाने को लाया गया. फ़्रेंच हमले को ब्रिटिश तोपख़ाने ने नाकाम कर दिया. प्रशिया के सैनिक मैदान में आए. नेपोलियन ने अपनी १५ हज़ार की रिज़र्व फ़ोर्स उतारी. अब तक उसने अपनी पूरी रिज़र्व फ़ोर्स झोंक दी. फ्रेंच घुड़सवार दस्तों के हमले मित्र सेना की पैदल सेना ने निष्फल कर दिये. नेपोलियन की सेनाबुरी तरह थक गई थी. नेपोलियन की भेजी नई कुमुक पिट कर लौटी. नेपोलियन ने पुरानी कुमुक भेजी. दिन भर की लड़ाई के बाद फ्रेंच सेना के भारी नुक़सान उठाना पडा. उसकी हालत लगातार बिगड़ती गई.

उसकी सेना को बहुत नुक़सान उठाना पड़ा. यह नुक़सान प्रशिया और मित्र सेना के संयुक्त नुक़सान से भी ज्यादा था. आख़िर १५ जुलाई १८१५ को उसकी सेना ने हथियार डाल दिये. नेपोलियन को सेंट हेनरी में क़ैद कर दिया गया जहाँ ५ मई १८२१ को उसकी मौत हो गई. उसकी धरोहर उसके नजदीकी अनुयाइयों को दे दी गई. उसने अपनी वसीयत में लिखा था कि उसे सेन नदी के किनारे दफ़नाया जाए. लेकिन दफ़नाया गया सेन्ट हेलेना में. १८४० में उसके अवशेष फ्रिज में रख कर फ्रांस लाए गए और पेरिस में दफ़नाए गए. तब से अब तक लाखों लोग उसकी क़ब्र देख चुके हैं. नेपोलियन मौत के बाद भी भी चर्चा में रहा. उसकी मौत पर भी सवाल उठे. उसके निजी डॉक्टर का कहना था कि मौत का कारण पेट का कैंसर था. १९५५ में मिली लुइस मरचैंड की डायरियों  से पता चला कि नेपोलियन की मौत आरसेनिक यानी संखिया ज़हर से हुई. उस समय संखिया ज़हर किसी को मारने के काम आता था.

लंबे समय तक देते रहने से शरीर में उसका पता नहीं चलता था. इसे लाश को सड़ने से बचाने के काम में भी लिया जाता है. २००१ में फ्रांस के फ़ोरेंसिक संस्थान ने नेपोलियन के बालों के गुच्छे में संखिया होने की बात कही. विष की मात्रा साधारण से आठ गुना ज्यादा पाई गई. पेरिस पुलिस के विष विशेषज्ञ का कहना सबसे अलग था. उसका कहना है कि यदि संखिया नेपोलियन की मौत का कारण होता तो वह बहुत पहले ही मर चुका होता. संखिया का उपयोग उपदंश नामक बीमारी में किया जाता है. अब बहस इस बात की थी कि क्या नेपोलियन। को सिफ़लिस की बीमारी थी? आंतडियों की सफ़ाई के लिये उसे ६०० मिलिग्राम मरक्युरी क्लोराइड का एनिमेशन दिया जाता था. पोटेशियम की कमी भी उसकी मौत का कारण हो सकता था.