नगरी निकाय चुनाव में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की नहीं चली। जी हां बात यही सामने आ रही है कि नगरी निकाय चुनाव से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी से जो भी मांगा था उन्हें वह सब कुछ मिला। मंत्रिमंडल में उनके खास समर्थकों को मनचाही जगह भी दी गई। समर्थकों को निगम मंडलों में भी सेट कर दिया। लेकिन अब नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी खुद का वर्चस्व दिखाना चाहती है। शायद यही वजह रही जिसकी वजह से इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया की नहीं चल पाई। यही वजह बताई जा रही है कि 16 निगमों में सिंधिया के करीबी में से किसी को भी महापौर प्रत्याशी नहीं बनाया गया।
ग्वालियर महापौर प्रत्याशी का ऐलान भी करीब 4 दिन की माथापच्ची के बाद ही हो पाया। लेकिन इस दौरान बीजेपी का खाना था कि भोपाल इंदौर और सागर में स्थानीय विधायकों की सहमति से नाम तय किया है और उसी रणनीति के तहत ग्वालियर में भी काम किया गया।
ग्वालियर चंबल में सिंधिया अपना दबदबा कायम रखना चाहते थे और इसी वजह से बताई जा रहा है कि पहले माया सिंह का नाम सामने रखा। लेकिन फिर बाद में समीक्षा गुप्ता का नाम रख दिया। उसके बावजूद भी पार्टी में उन्हे भी नकार दिया। भोपाल से विलासराव घाटगे वार्ड नंबर 34, गिरीश शर्मा वार्ड नंबर 66, ललित चतुर्वेदी वार्ड नंबर 83 को पार्टी ने टिकट नहीं दिया। तो वहीं दूसरी और ग्वालियर में 35 सिंधिया समर्थकों में से सिर्फ 12 को ही टिकट दिया गया।
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नगरी निकाय चुनाव में इस बार बाजी पलट ती हुई दिखाई दी। क्योंकि इस बार के चुनाव में बाजी नरेंद्र सिंह तोमर ले गए हैं। ग्वालियर महापौर उम्मीदवार के लिए तोमर के करीबी को टिकट दिया गया। जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया बिल्कुल भी सहमत नहीं थे। लेकिन पार्टी के बाकी सदस्य तोमर के समर्थन में आ गए। सिंधिया को मनाने के लिए केंद्रीय संगठन को भी आगे आना पड़ा और उनकी भी सहमति लेकर सुमन शर्मा को ग्वालियर महापौर के लिए प्रत्याशी बनाया गया।