सावन का पावन महीना भगवान शिव की भक्ति के लिए सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इस दौरान भक्तगण उपवास, विशेष पूजा-पाठ और मंत्रों के माध्यम से शिव को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। इन्हीं मंत्रों में एक अत्यंत प्रभावशाली और दिव्य मंत्र है, “कर्पूरगौरं करुणावतारं…”, जिसे शिव स्तुति का सर्वोत्तम रूप माना जाता है।
कहा जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु ने इस मंत्र के माध्यम से भोलेनाथ को प्रसन्न किया था। इस मंत्र का उच्चारण करने से आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
शिव का उज्ज्वल स्वरूप: मंत्र का अर्थ और भावार्थ
“कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेंद्रहारं
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।”
यह मंत्र भगवान शिव के दिव्य गुणों और स्वरूप का बखान करता है:
- कर्पूरगौरं: शिव का वर्ण कपूर के समान उज्ज्वल और पवित्र है, जो उनके निष्कलंक स्वरूप और शुद्धता को दर्शाता है।
- करुणावतारं: वे करुणा की प्रतिमूर्ति हैं। सभी प्राणियों पर उनका स्नेह और दया असीम है।
- संसारसारं: वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सार हैं। शिव न केवल संहार के देवता हैं, बल्कि जीवन के मूल तत्व भी वही हैं।
- भुजगेंद्रहारं: उनके गले में नागराज वासुकि विराजमान हैं, जो उनके वैराग्य, संयम और निर्भयता का प्रतीक है।
- सदा वसन्तं हृदयारविन्दे: वे भक्तों के हृदय कमल में सदा वास करते हैं।
- भवं भवानीसहितं नमामि: मैं उस शिव को माता पार्वती सहित नमन करता हूं, जो जीवन और मोक्ष दोनों के आधार हैं।
भगवान विष्णु ने क्यों किया इस मंत्र का जाप?
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच गहरा सम्मान और प्रेम है। जब भी भगवान विष्णु किसी विशेष कार्य के लिए शिवजी की सहायता चाहते थे या किसी समस्या में होते थे, तो वे उनकी स्तुति करते थे। ऐसा माना जाता है कि इसी मंत्र का जाप करके भगवान विष्णु ने शिव को प्रसन्न किया और उनकी कृपा प्राप्त की। इस प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि यह मंत्र केवल साधारण स्तुति नहीं, बल्कि एक गूढ़ आध्यात्मिक साधना का माध्यम है।
इस मंत्र का जाप क्यों है प्रभावशाली?
यह मंत्र न केवल शिव की महिमा का वर्णन करता है, बल्कि उनके साथ देवी पार्वती की उपस्थिति को भी सम्मान देता है। यह युगल रूप, शिव-शक्ति के संतुलन का प्रतीक है, जो जीवन के हर पहलू में सामंजस्य स्थापित करता है। इस मंत्र का नित्य जाप साधक के मन, वाणी और कर्म को शुद्ध करता है। इससे साधक को मानसिक शांति, आध्यात्मिक जागरण और ईश्वर से गहरा संबंध अनुभव होता है।
सावन में करें इस मंत्र का विशेष जाप
सावन में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके इस मंत्र का जाप करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसे रुद्राक्ष की माला से कम से कम 108 बार जपना चाहिए। इस मंत्र का उच्चारण जितनी श्रद्धा और विश्वास से किया जाए, उतना ही शीघ्र इसका प्रभाव देखा जा सकता है।
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