संवत्सरी के एक दिन पहले भी अगर आप संवत्सरी संबंधी मिच्छामिदुक्कडं करते हो वो मिथ्यात्व ही है, ‘सांवत्सरिक मिच्छामिदुक्कडं’ जिसे आप ‘क्षमापना’ के नाम से पुकारते है वो संवत्सरी के दिन ही करना चाहिए, इसका शास्त्रीय कारण ये है-
1- संवत्सरी-पर्व की आराधना भगवंत ने इसलिए बताई है की एक साल से ज्यादा हमारे क्रोध, मान, माया, लोभ होते है तो उसे अनंतानुबंधि कषाय कहते है, इसके उदय से सम्यक्त्व की प्राप्ति नही होती, सम्यक्त्व के अभाव से देशविरति से लेकर मोक्ष तक कुछ भी प्राप्त नही होता, अगर आप इतना समझते तो कभी इतने दिन पहले संवत्सरी संबंधी मिच्छामिदुक्कडं कर के मिथ्यात्व आचरण नही करते।
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2- निशीथसूत्र नामक आगमशास्त्र मे ये बात स्पष्टत: बताइ है। पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री आनन्दसागर सूरीश्वरजी ने भी अष्टाह्निका पर्व के व्याख्यान मे कहा है कि ‘क्षमापना याने होली बुझाने का दिन’ वो दिन मुकरर ही है, और वो दिन है संवत्सरी। संवत्सरी के दिन ही ये वार्षिक कृत्य होता है। अगर आप आगे- पीछे करेंगे तो अगले साल अनंतानुबंधि कषाय में चले जाओगे और आपकी इच्छानुसार करोगे तो मुकरर किये हुए दिन का भंग करने से तिर्थंकर कि आज्ञा के उल्लंघनकर्ता बनोगे।
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सारांश यह है सांवत्सरिक मिच्छामिदुक्कडं संवत्सरी के दिन ही करना चाहिए एक दिन पहले भी हो नही सकता।