लखनऊ : उत्तर प्रदेश और बिहार के उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा को अंदर तक हिला दिया है, खासकर गोरखपुर में मिली हार ने. एक साल पहले मिली प्रचंड बहुतम की जीत के बाद राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की ही लोकसभा साथ सीट पर भाजपा हार जाएगी यह तो समाजवादी पार्टी ने भी नहीं सोचा होगा. गोरखपुर लोकसभा सीट पर सपा के प्रवीन निषाद ने बीजेपी के उपेंद्र शुक्ला को 21, 881 वोटों से हराकर 28 साल के गोरखपुर में बीजेपी के किले को ढहा दिया. आइये एक नजर बीजेपी को मिली हार के कारणों पर डाल लेते हैं.गोरखपुर में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण है भाजपा कार्यकर्ताओं में असंतोष. खबर है कि अधिकारी वर्ग की मनमानी से कार्यकर्ताओं में नाराजगी थी, जिस कारण कार्यकर्ताओं ने भाजपा को सबक सिखाने की ठानी. यहीं कारण है कि कार्यकर्ताओं ने मतदाताओं को बूथ तक लाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.
दूसरा बड़ा कारण उम्मीदवार का चयन है. सूत्रों के अनुसार योगी आदित्यनाथ ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को कह दिया था कि गोरखपुर से सिर्फ गोरखपुर पीठ का कोई व्यक्ति ही चुनाव जीत सकता है, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उपेन्द्र शुक्ला को टिकट दे दिया.
आपसी गुटबाजी भी भाजपा को चुनाव में भारी पड़ी. दरअसल गोरखपुर सीट पर ब्राह्मण और ठाकुर वोटों में बनती नहीं है. योगी सरकार पर ठाकुरवाद को बढ़ावा का आरोप लगता रहा है. ऐसे में ब्राह्मण वर्ग के लोग वोट देने के लिए नहीं निकले. वहीँ भाजपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार को खड़ा किया, जबकि गोरखपुर के आसपास के इलाक़े में पहले से ही ब्राह्मण सांसदों ज्यादा है. ऐसे में अन्य समुदाय में भाजपा के प्रति नाराजगी बड़ी.
सपा ने गोरखपुर में भाजपा को हराने के लिए जातीय समीकरण का अच्छी तरह इस्तेमाल किया. अखिलेश यादव ने पहले पीस पार्टी फिर निषाद पार्टी से गठबंधन किया. इसके बाद निषाद मतदाताओं को को आकर्षित करने के लिए निषाद पार्टी अध्यक्ष के बेटे प्रवीण निषाद को समाजवादी पार्टी का टिकट दे दिया.
जातीय समीकरण अपने पक्ष में करने के बाद बसपा ने चुनाव से कुछ समय पहले ही सपा को समर्थन देकर मास्टर स्ट्रोक खेला और भाजपा को चित कर दिया. भाजपा को सपा-बसपा का काट निकालने का समय ही नहीं मिला.