लोक सूचना अधिकारियों को आयोग ने लगाई जमकर फटकार, एक ही सुनवाई में खारिज की 55 अपील

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MP: राज्य के सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने हाल ही में सूचना के अधिकार के अंतर्गत उचित मूल्य की दुकानों से संबंधित 55 अपीलों को एक ही समय में खारिज कर दिया है. आयोग की ओर से अनुविभागीय अधिकारियों द्वारा जानकारी उपलब्ध कराने के फैसले को स्थगित करते हुए कहा गया है कि एक जैसे आवेदनों की छायाप्रतियां शासकीय विभागों संस्थाओं में सूचना के अधिकार के तहत वितरित कर देना लोक हित में नहीं है. यह सूचना के अधिकार के महत्वपूर्ण कानून का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग नहीं है.

सूचना के अधिकार का थोक आवेदनों में इस्तेमाल करने वालों के लिए सूचना आयोग का यह फैसला बहुत ही सही साबित होने वाला है. आयोग की ओर से सभी मामलों को अलग-अलग सुना गया जिसके बाद इन्हें निरस्त करने का फैसला लिया गया. बड़वानी के जहूर खान ने 55 उचित मूल्य की दुकानों पर 10 बिंदु में जानकारी मांगी थी. इसमें स्टॉक रजिस्टर, खाता रजिस्टर, वितरण रजिस्टर, पंजी. रजिस्टर, कैश बुक, निरीक्षण पंजी, सतर्कता समितियों का रिकॉर्ड, मासिक और वार्षिक पत्रक के साथ उपभोक्ताओं के नाम और उनकी पहचान के संबंधित दस्तावेज मांगे गए थे. यह सारी जानकारी अलग-अलग मामलों को लेकर मांगी गई थी.

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सारे आवेदन एक जैसे थे जिन की फोटो कॉपी दुकानों पर भेजी गई थी. इनके जवाब नहीं मिलने पर अनुविभागीय अधिकारियों को अपील की गई थी. जिसके बाद अनुविभागीय अधिकारियों ने जानकारी उपलब्ध कराने के आदेश दिए. इसके बाद भी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई जिसके चलते यह मामले आयोग में पहुंचे. सारे मामले एक ही विभाग के होकर एक जैसे थे इसलिए आयोग ने एक ही बार में सुनवाई करने का फैसला लिया.

सुनवाई के दौरान लोक सूचना अधिकारियों ने यह जानकारी दी कि उन्हें डाक से आवेदन नहीं मिले थे और दुकानों का प्रबंधन भी इस दौरान बदला गया है. जो जानकारी मांगी गई है वह काफी ज्यादा है जिसके चलते जुटाने में समय लगा है. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि सूचना के अधिकार में अपनी भूमिका का समुचित ज्ञान नहीं होने से भी लापरवाही हुई है. अधिकारियों ने यह भी बताया कि जो जानकारी मांगी गई है उसमें से लगभग आधी जानकारी पोर्टल पर सार्वजनिक रूप से रहती है. खाता रजिस्टर और सामान्य पंजी का रिकॉर्ड दुकान पर नहीं रखा जाता.

आयोग ने इन सभी आवेदनों को सूचना के अधिकार कानून की धारा 6 (1) के अनुरूप नहीं होने पर एक ही आवेदन में अलग-अलग जानकारी की मांग और एक जैसे अनगिनत आवेदन शासकीय कार्यालय में लगाने के चलते मामला सही नहीं पाया.

लोक सूचना के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए आयोग ने 30 दिन के अंदर ऐसे आवेदनों का निराकरण करने के आदेश दिए हैं. आयोग ने कहा है कि सारी जानकारी वह नहीं दे सकते लेकिन अपनी भूमिका के बारे में उन्हें पता होना चाहिए. जानकारी उपलब्ध कराने के लिए अधिकारियों ने जो निर्देश दिए थे वह भी आयोग ने गलत बताए हैं. आयोग का कहना है कि प्रथम अपीलीय अधिकारियों की ड्यूटी है कि वह यह देखें कि पोर्टल पर कितनी जानकारी सार्वजनिक की जा रही है और कितनी जानकारी सार्वजनिक नहीं है. जो जानकारी सार्वजनिक है आरटीआई में उसका जवाब पर्याप्त माना जाता है.

इस मामले को लेकर राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि सूचना का अधिकार बेलगाम नहीं है लेकिन बेहिसाब जानकारियों के जो आवेदन सामने आए हैं उससे लगता है कि 16 साल बाद भी लोग यही मान रहे हैं कि आरटीआई झटके में पूरी सृष्टि को नाप सकता है. सूचना अधिकारियों की कानून को लेकर जो अनभिज्ञता है वह काफी चिंताजनक है. अधिकारी यही नहीं जानते कि उनकी भूमिका क्या है. साथ ही अनुभवी आवेदक उनकी इस कमजोरी को अच्छे से पहचानते हैं.