छत्तीसगढ़ के रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च से जुड़ी मेडिकल कॉलेज की मान्यता दिलाने की साजिश का पर्दाफाश अब सीबीआई ने कर दिया है। इस घोटाले में रावतपुरा सरकार उर्फ रविशंकर महाराज समेत कुल 35 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। इन आरोपियों में इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, इंदौर के चेयरमैन सुरेश भदौरिया का नाम भी शामिल है, जो आरोपी नंबर 25 है। फिलहाल भदौरिया सीबीआई की गिरफ्त से बाहर है और फरार बताया जा रहा है।
‘एजुकेशनल रैकेट’ कैसे करता था काम?
सीबीआई की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के चंदन कुमार (जिनके खिलाफ भी इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई है) और मध्य प्रदेश स्थित इंडेक्स ग्रुप के चेयरमैन सुरेश भदौरिया के बीच गहरी मिलीभगत थी।

सूत्रों के मुताबिक, चंदन कुमार सुरेश भदौरिया को मान्यता से जुड़ी तमाम गोपनीय जानकारियां भेजते थे। इनमें निरीक्षण टीम की संरचना, सदस्यों की सूची, दौरे की तिथियां और संबंधित रिपोर्टों की जानकारी शामिल होती थी। इन्हीं सूचनाओं के आधार पर भदौरिया सौदे तय किया करते थे।
फर्जी हाजिरी के लिए भदौरिया का क्लोन फिंगरप्रिंट स्कैम
सीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, भदौरिया के इंडेक्स ग्रुप के तहत चिकित्सा, दंत चिकित्सा, नर्सिंग, फार्मेसी, पैरामेडिकल साइंसेज और प्रबंधन से जुड़े शैक्षणिक संस्थान संचालित किए जा रहे हैं, जो शैक्षणिक सत्र 2015-16 से मालवांचल विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं।
भदौरिया मयंक वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष भी हैं, जो मालवांचल विश्वविद्यालय का संचालन करती है। उन्होंने इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र, इंदौर में डॉक्टरों और कर्मचारियों की नियुक्ति अस्थायी आधार पर की थी। हालांकि, कॉलेज की मान्यता प्राप्त करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) की न्यूनतम मानक आवश्यकताओं (MSR) को पूरा दिखाने के लिए इन अस्थायी नियुक्तियों को गलत तरीके से स्थायी फैकल्टी के रूप में प्रस्तुत किया गया।
इस उद्देश्य के लिए, आधार सक्षम बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली (AEBAS) में हेरफेर करने हेतु इन व्यक्तियों के कृत्रिम क्लोन फिंगरप्रिंट तैयार किए गए, ताकि बायोमेट्रिक उपस्थिति को गलत तरीके से दर्शाया जा सके।
भदौरिया बना फर्जी डिग्री सप्लायर
सीबीआई ने अपनी जांच में यहीं तक सीमित न रहते हुए यह भी उजागर किया है कि भदौरिया अपने विश्वस्त सहयोगियों की मदद से मालवांचल विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध संस्थानों के जरिए विभिन्न प्रकार की अवैध गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।
इन अवैध गतिविधियों में अयोग्य उम्मीदवारों को फर्जी स्नातक, परास्नातक और पीएचडी की डिग्रियां जारी करना प्रमुख रूप से शामिल था। साथ ही, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार से जुड़े अधिकारी—राहुल श्रीवास्तव और चंदन कुमार—पर भी आरोप है कि उन्होंने रिश्वत के बदले विभिन्न मेडिकल कॉलेजों के निरीक्षण, नवीनीकरण और अनुमोदन (10A) से संबंधित प्रक्रियाओं में अनियमितताएं कीं।
ऐसे खुलीं घोटाले की परतें
सीबीआई को मिली जानकारी के अनुसार, स्वास्थ्य मंत्रालय और राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (NMC) से जुड़े कुछ सरकारी अधिकारी और बिचौलिए आपसी मिलीभगत से भ्रष्टाचार में लिप्त थे। ये लोग देशभर के निजी मेडिकल कॉलेजों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर अनैतिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे। उन्होंने अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए जानबूझकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया।
इन व्यक्तियों पर यह भी आरोप है कि उन्होंने मंत्रालय के भीतर मेडिकल कॉलेजों की नियामकीय स्थिति और आंतरिक प्रक्रियाओं से जुड़ी गोपनीय फाइलों और संवेदनशील जानकारियों की अवैध रूप से पहुंच, नकल और वितरण में सहयोग किया। इसके साथ ही, उन्होंने आधिकारिक संचार जारी होने से पहले ही संबंधित मेडिकल संस्थानों को निरीक्षण की तारीखों और नामित मूल्यांकनकर्ताओं की जानकारी लीक कर दी, जिससे NMC द्वारा निर्धारित वैज्ञानिक निरीक्षण प्रक्रिया में गंभीर हस्तक्षेप और हेरफेरी की गई।