अन्ना दुराई
कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम देश के सामने हैं। आगे कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है। लोकसभा चुनाव भी नज़दीक आ रहे हैं। तमाम परिप्रेक्ष्य में आज मतदाताओं के मन में एक नई सोच विकसित होती नज़र आ रही है। ऐसे में एक बार फिर नफ़रत के खिलाफ़ लिखने को मन करता है। मन कचोटता है जब सोशल मीडिया पर दिन भर झूठ परोसा जाता है। वाक़ई अब मुद्दों की राजनीति पर आगे बढ़ने का समय आ गया है। भटकाव की राह पर चलती जनता को राह दिखाने का समय आ गया है।
सही को सही ग़लत को ग़लत कहने का समय आ गया है। देश को ऊल जुलूल वाद विवादों से बचाने का समय आ गया है। दिन भर नफ़रत नफ़रत खेलने वालों को हँसी में उड़ाने का समय आ गया है। अब देश के सियासतदारों को सोचने पर मजबूर होने का समय आ गया है। नफ़रत की दुकान को बंद कर प्यार का शटर खोलने का समय आ गया है। केरल स्टोरी के बाद अब कर्नाटक फाइल्स को बनने से रोकने का समय आ गया है।
यदि हम मंथन करें तो पाएंगे कि हम कहाँ से कहाँ आ गए हैं। पूरा देश 99 और 1 के फेर में पड़ा हुआ है। 1 प्रतिशत वे लोग हैं जो स्लीपर सेल के रूप में सियासतदारों द्वारा गढ़े गए नफरती संदेशों को आगे बढ़ाते हैं। ऐसा करके वे स्वयं को देश भक्त समझने की भूल कर बैठते हैं। 99 प्रतिशत वे नादान लोग हैं जो दिन भर इस कचरे को झेलते हैं। वे कई बार झूठ को भी सच समझ लेते हैं। जब प्रचारित होता हैं कि क्या बजरंग बली लगाएंगे नैया पार तो हँसी आती है। आप ध्यान देंगे तो पायेंगे कि हमेशा ऐसा ही कोई न कोई शगूफ़ा आपके सामने छोड़ दिया जाता है। सरकारें जनता की मूलभूत सुविधाओं रोटी, कपड़ा और मकान के लिए बनती हैं।
लेकिन आज न रोटी की बात होती है, न कपड़े की न मकान की। न महँगाई की बात होती है न रोज़गार की बात होती है और न ही आम जनता की परेशानियों की। सभी हिंदू मुस्लिम में उलझे रहते हैं। अच्छे अच्छे समझदार लोग भी इसके शिकार हो जाते हैं। कहावत है एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। इसलिए ऐसे लोगों को सूचीबद्ध करना आवश्यक हैं जो नफ़रत फैलाने वाले संदेशों को बगैर सोचे समझे आगे बढ़ाते हैं। प्रशासन के लिए तो यह कार्य बांए हाथ का खेल मात्र है। जनता को भी यह समझना होगा कि जब देश में मुद्दों की राजनीति होगी तो अंत में भला उनका ही होगा।
बचा के रखिएगा नफ़रत से
दिल की बस्ती को….
ये आग ख़ुद नहीं लगती
लगायी जाती है….