इन जख्मों को कोई भी सिस्टम नहीं भर पाएगा ?

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अर्जुन राठौर

इंदौर में बिलेश्वर मंदिर में हुए दर्दनाक हादसे में जिन परिवारों ने अपनों को खोया है उनके जख्मों को कोई भी सिस्टम नहीं भर सकता इस हादसे ने उन परिवारों को एक ऐसा दर्द दिया है जिसका कोई अंत नहीं है । लेकिन सवाल इस बात का है कि इस हादसे के लिए आखिर जिम्मेदार है कौन ?क्या मंदिर के पदाधिकारी जिन्होंने बावड़ी को बंद करने में लापरवाही बरती और जिसका परिणाम इतने खतरनाक हादसे के रूप में सामने आया या फिर नगर निगम जिसने इस अवैध निर्माण को लेकर नोटिस भी जारी किया लेकिन नोटिस देने के बाद कोई ठोस कार्यवाही नहीं की क्या नोटिस देना और कार्रवाई करना दो अलग-अलग प्रक्रिया होती है? जहां कार्रवाई करना होती है वहां नोटिस देने के बाद तुरंत कार्रवाई हो जाती है लेकिन ऐसी जगह जहां पर बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं वहां पर इस तरह की आपराधिक लापरवाही को कैसे माफ किया जा सकता है ?

ऐसा लगता है कि नगर निगम में भी ऐसे अधिकारियों की बेहद कमी हो गई है जो हादसों को दूर से ही भाप लेते थे एक समय ऐसा भी था जब इंदौर नगर निगम में इतना अधिक सेवाभावी और जिम्मेदार अधिकारी होते थे जिनका हाथ शहर की नब्ज पर रहता था जिन्हें शहर के हर एक एक हिस्से की जानकारी रहती थी लेकिन अब तो ऐसा अधिकारी आ गए हैं जिन्हें शहर के बारे में कोई जानकारी होना तो दूर अपने इलाके की जानकारी भी नहीं रहती वह इंदौर को चरागाह की तरह इस्तेमाल करके चल देते हैं ।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि धार्मिक स्थल लगातार बड़े हादसों का केंद्र बनते जा रहे हैं पिछले दिनों प्रदीप मिश्रा के कथा स्थल पर भी भगदड़ मची थी और कई लोगों की जानें गई इसी तरह के अन्य हादसे भी रामनवमी के दिन देश के अन्य शहरों में सामने आए लेकिन इंदौर में जो हादसा हुआ है उससे यही सबक मिलता है कि तमाम धार्मिक स्थलों पर भीड़ इकट्ठा होने की स्थिति में क्या-क्या खतरे उत्पन्न हो सकते हैं इन सब की बारीकी से जांच की जानी चाहिए।

आज भी शहर में कई ऐसे धार्मिक स्थल है जो बड़े हादसों का केंद्र बन सकते हैं कई मंदिर जर्जर स्थिति में है और कई मंदिरों पर कुओं और बावड़ीयों को ढक दिया गया है उनकी भी जांच की जानी चाहिए । धार्मिक स्थलों पर बढ़ती हुई भीड़ और खासकर त्योहारों पर लोगों की आस्था का जो हुजूम इकट्ठा होता है उसे लेकर सरकार और प्रशासन को एक ठोस नीति बनाना चाहिए।

हाल ही में चार धाम यात्रा के लिए जब उत्तराखंड सरकार द्वारा 5 हजार तीर्थ यात्रियों को ही अनुमति देने की बात कही गई तो वहां पर होटल वालों द्वारा जुलूस निकाल कर सरकार के इस कदम का विरोध किया गया ,क्या होटल वाले केदारनाथ हादसे को भूल गए और पिछले दिनों जोशीमठ में जमीन धंसने की जो घटनाएं हुई उनको भी भूल गए ?यदि सरकार होटल वालों के दबाव में आकर अपना निर्णय वापस ले लेती है तो वहां पर भी किसी बड़े हादसे की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता ।

बताया जाता है कि मंदिर से जुड़े पदाधिकारियों द्वारा नगर निगम इंदौर का नोटिस मिलने के बाद राजनैतिक प्रभाव का उपयोग करके कार्रवाई को रोक दिया गया था क्या उनकी इस हरकत के लिए उन पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलना चाहिए ? हालात इतने बदतर हो चुके हैं की पुलिस प्रशासन नगर निगम से लेकर किसी भी सरकारी एजेंसी को इस बात का अंदाजा है ही नहीं रहता किसी भी धार्मिक स्थल पर विशेष पर्व के दौरान कितने लोग इकट्ठा होंगे और उनके लिए क्या व्यवस्था की गई है ।