आरकेपीटी से लेकर केबीटी तक एमपी का नाम बदलो अभियान..

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भोपाल का ऐतिहासिक मिंटो हॉल, भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक, मंच पर प्रदेश बीजेपी के सारे बडे नेता, दिन भर के बाद अब बारी थी मुख्यमंत्री शिवराज सिहं चौहान के भाषण की। पिछले कुछ दिनों से लगातार चल रही संगठन की बैठकों में उनकी सरकार पर विधायक लगातार मुखर थे, सरकार की शिकायत और संगठन की नसीहत सुन रहे शिवराज ने मौका देखा तो शुरू हो गये अपने अंदाज में। हमारे विधायक जी आते हैं कागज लेकर, बिना कागज के आते नहीं और कागज काहे के रहते, आप जानते हैं, अगर वो सब कर दो पता चला कि अस्पताल में डॉक्टर और स्कूल में मास्टर ही नहीं बचे।

अब तबादलों की सिफारिशों की पोल खोलने पर सामने बैठे विधायकों की सिटटी पिटटी गुम। मगर शिवराज जानते थे कि उनके भाषण में अभी हेडलाइन नहीं बनी है तो सत्ता संगठन विचारधारा की बात करते करते वो आ गये उसी मिंटो हाल पर जहां बैठक चल रही थी। शिवराज बोले हम यहां बैठे हैं इसका नाम है मिंटो हाल, अब आप बताओ ये धरती अपनी ये मिट्टी अपनी ये चूना अपना ये गारा अपना ये भवन अपना बनाने वाले मजदूर अपने ये पसीना अपना और नाम मिंटो का।

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इसलिये जिसने पूरे मध्यप्रदेश में बीजेपी को खडा किया उन कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर होगा अब ये मिंटो हाल। बस फिर क्या था तालियां। सामने बैठे बीजेपी नेता खुश कवरेज कर रहा मीडिया खुश। थोडी देर बाद ही सोशल मीडिया पर मिंटो हाल के नये नामकरण की खबरें ट्रेंड करने लगीं।  तो मध्यप्रदेश में नाम बदलो अभियान के तहत पिछले दस दिनों में ये सातवां नामकरण संस्कार हुआ।

नाम बदलो की इस बसंती बयार की शुरुआत हुयी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भोपाल दौरे से जिनके सामने भोपाल के कई साल पुराने हबीबगंज स्टेशन के नये रंग रूप में आते ही नया नाम रानी कमलापति रख दिया गया। जिसे रेलवे की भाषा में आरकेपीटी के नाम से लिखा जा रहा है। अखबारों और नये जमाने की एसएमएस की भाषा में भी इसे आरकेपीटी ही बोला जा रहा है। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे भोपाल में तात्या टोपे नगर को टीटी नगर और महाराणा प्रताप नगर को एमपी नगर लिखा और बोला जाता है।

मजे की बात ये है कि इस रेलवे स्टेशन के विश्व स्तरीय बनते ही बीजेपी के सारे नेताओं ने एक सुर में इसका नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर करने के लिये सोशल मीडिया में मुहिम चलाई थी। मगर जब अचानक मध्य प्रदेश बीजेपी ने अपना गियर चेंज कर आदिवासी और जनजातीय पर फोकस किया तो भुला दिये गये वाजपेयी ओर आ गई रानी कमलापति। जिनको भोपाल की आखिरी हिंदू शासक के तौर पर पुनर्स्थापित कराने की मुहिम भी छेड दी गयी है। खैर राजनीतिक दलों के मुद्दे वक्त वक्त पर मिलने वाले वोटों के नफे नुकसान के हिसाब किताब से जुडे होते हैं इससे आम जनता अब जानती है।

दिल्ली का कनॉट प्लेस आज भी कनॉट प्लेस है राजीव चौक तो बस कागजों में दर्ज है। आरकेपीटी क्षमा करिये रानी कमलापति से शुरू हुयी ये मुहिम हमारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐसी तेज़ी से बढाई कि इंदौर के पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम टंट्या मामा के नाम पर करने की सिफारिश हो गयी है। इंदौर के भंवरकुआं चौराहा भी अब टंट्या मामा के नाम से जाना जायेगा। इंदौर एमआर टेन बस अड्डा भी वही टंट्या मामा के नाम हो जायेगा। मंडला के महिला पॉलिटेक्निक का नाम रानी फूलकुंवर के नाम पर होगा तो मंडला की कंप्यूटर सेंटर और लाइब्रेरी भी अब शंकर शाह ओर रघुनाथ शाह के नाम पर जानी जायेगी। और मिंटो हाल तो कुशाभाऊ ठाकरे हाल हो ही गया है।

नाम बदलने की इस बहती गंगा में हाथ धोने के लिये उतावले लोग इंदौर का नाम रानी अहिल्या बाई करवाना चाहते हैं और भोपाल को भोजपाल कराने पर जोर लगा रहे हैं। हालांकि मुख्यमंत्री ने फिलहाल इन शहरों के नाम बदलने की सहमति नहीं दी है मगर कब तक अब तो कभी भी कुछ भी बदल सकता है। हम ये मान कर बैठे हैं। नाम बदलने की कवायद पहले उत्तर प्रदेश से होती हुयी मध्यप्रदेश आयी है। राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि नाम बदलने से किसी को कुछ हासिल नहीं होता मगर सभी सरकारें ये हथकंडा अपनाती हैं आम जनता से जुडे असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिये।

रोटी कपड़ा और रोजगार देना अब सरकार के लिये मुश्किल होता है इसलिये अतीत के गौरव का अहसास कराइये और जनता को खुश रखिये। ये नया फंडा सारी राज्य सरकारें सीख गयीं हैं। तो तैयार रहिये कभी भी कुछ भी बदल सकता है। वैसे भी हमारे गुलजार साब ने तो 1977 में ही लिख दिया था नाम गुम जायेगा चेहरा ये बदल जायेगा। तो हबीबगंज स्टेशन का चेहरा बदला और नाम भी। यूं तो शेक्सपियर ने भी लिखा है नाम में क्या रक्खा। मगर कोई हमारे एमपी के नेताओं से पूछे जो नाम बदलते ही वो वोटों की बारिश के सपने देखने लगते हैं।

ब्रजेश राजपूत