मध्यप्रदेश स्वास्थ्य विभाग में दवा खरीदी के मामले में लोकायुक्त ने 2009 में तत्कालीन स्वास्थ्य आयुक्त डॉ राजेश राजौरा, संचालक डॉक्टर योगीराज शर्मा एवं डॉ अशोक विरांग और प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। इस पूरे मामले में लोकायुक्त संगठन ने जांच के बाद प्रमाण के अभाव में वर्ष 2013 को खात्मा प्रस्तुत किया था। इस दौरान भोपाल विशेष न्यायालय ने वर्ष 2021 को खात्मा अस्वीकार कर दिया। विशेष न्यायालय ने खात्मा अस्वीकार करते हुए 5 बिंदुओं पर जांच करने के निर्देश दिए थे।यह जांच मुख्य पांच बिंदुओं पर की गई थी।
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पूरा मामला कुछ इस प्रकार है कि लोकायुक्त ने इस पूरे मामले में आधार पर प्रकरण दर्ज किया कि 0.75 ग्राम स्ट्रेप्टोमाईसिन इंजेक्शन जब भारत सरकार उपलब्ध कराती है तो आखिरकार मध्य प्रदेश स्वास्थ्य विभाग ने क्यों खरीदें इस दौरान जांच में यह पता चला कि स्वास्थ्य विभाग ने 0.75 ग्राम की स्ट्रेप्टोमाईसिन को नहीं बल्कि 1.00 ग्राम स्ट्रेप्टोमाईसिन के इंजेक्शन खरीदे थे। यह इंजेक्शन प्रसव के बाद इन्फेक्शन को रोकने के लिए दिए जाते है। प्रसव के बाद इंफेक्शन को रोकने में ये काम आते हैं। तो वही भारत सरकार से मिलने वाले इंजेक्शन टीबी इंफेक्शन रोकने के लिए दिया जाता है। भारत सरकार से मिलने वाले 0.75 इंजेक्शन टीबी को रोकने में मदद करते हैं।
भोपाल विशेष न्यायालय ने वर्ष 2021 में खात्मा अस्वीकार करते हुए मुख्य पांच बिंदुओं पर पुनः जांच करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद लोकायुक्त संगठन ने पुन: गहन जांच कर खात्मा प्रस्तुत किया। जिसे लोकायुक्त विशेष न्यायालय ने 10 जून को स्वीकार कर लिया। न्यायालय ने खात्मा स्वीकार करते हुए अधिकारियों को क्लीन चिट दी है।