अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)
4 जून भारतीय राजनीतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण दिन रहा जब 18वीं लोकसभा के परिणाम घोषित हुए। एक तरफ तो यह दिन बीजेपी को धरातल पर लाने और कांग्रेस व सहयोगी दलों को हवा में उड़ाने वाला रहा, वहीं दूसरी ओर मेरे व्यक्तिगत विश्लेषण को सही ठहराने वाला भी साबित हुआ। जहां देशभर के न्यूज़ चैनलों पर चलने वाले एग्जिट पोल भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के लिए 400 पार का आंकड़ा दिखा रहे थे, वहां मैंने पिछले कुछ महीनों के विश्लेषण के आधार पर 294 की संख्या सामने रखी थी।
अंत में बीजेपी (एनडीए) 292 सीटों के साथ सरकार बनाने की स्थिति में आ गई। हालाँकि 2024 लोकसभा के परिणाम खासकर बीजेपी के लिए झटका देने वाले भी रहे, क्योंकि 2019 में 303 सीटें जीत कर अकेले दम पर पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली पार्टी, पांच सालों में तथाकथित ऐतिहासिक कामों के बावजूद 63 सीटों के नुकसान के साथ 240 सीटों पर सिमट गई। इसका एक प्रमुख कारण वोट शेयर में भी एक फीसदी का नुकसान रहा।
लेकिन अब सवाल ये है कि सीटों और वोटों की संख्या में आई इस कमी के प्रमुख कारण क्या रहे? मेरा मानना है बीजेपी और नरेंद्र मोदी का ओवर कॉन्फिडेंस, जिसने मतदाताओं को पोलिंग स्टेशन तक पहुंचने ही नहीं दिया। दूसरा ईडी-सीबीआई का भय, जो एक पान की दुकान वाला भी सोशल मीडिया मीम्स के माध्यम से समझ रहा था। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण खरीद फरोख्त की राजनीति।
ओवर कॉन्फिडेंस से सीधा तात्पर्य 400 पार के नारे से है। यह नारा मतदाताओं के विश्वास में तब्दील होने के बजाए उन्हें घरों से बाहर निकालने में भी कामयाब नहीं हुआ। रैलियों में सिर्फ विपक्ष को कमतर बताना और हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति को फिर से दोहराने की गलती ने मतदाताओं को न केवल बिखेर दिया, बल्कि मतदान के लिए भी उदासीन बना दिया। बीजेपी को मिले वोट प्रतिशत में आई कमी दर्शाती है कि मोदी या भाजपा समर्थक हिन्दू वोटर्स ने भी या तो मतदान केंद्रों तक पहुंचने की जहमत नहीं उठाई या फिर ईवीएम का बटन किसी दूसरे दल के लिए दबा दिया।
दूसरा, बड़े उद्योगपतियों से लेकर परचून की दुकान वाले तक को ईडी-सीबीआई वाला चक्कर गलत दिशा से समझ आने लगा था। आप सरकार के साथ हो तो ठीक, नहीं तो अंदर जाने के लिए तैयार रहिये वाला नरेशन भी बीजेपी के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। विपक्ष ने सोशल मीडिया के माध्यम से इन मुद्दों को इतना बड़ा बना दिया जिसकी लम्बाई और गहराई आंकने में बीजेपी चूक गई और खामियाजा लोअर मिडिल क्लास से लेकर उच्च वर्ग तक के मतदाताओं की तरफ से झेलना पड़ा।
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण खरीद फरोख्त की राजनीति जिससे आम जनता खासा नाराज थी। उदाहरण के लिए इंदौर आदर्श बना जहां, लगभग बीजेपी उम्मीदवार के जीतने की पूरी सम्भावना के बाद भी नामांकन वापस लेने वाले दिन कांग्रेस प्रत्याशी को बीजेपी में शामिल कर लिया गया। इस खबर ने देशभर में जगह बनाई और लगभग सभी ने पार्टी के इस मूव को गलत बताया। हालाँकि सिर्फ कांग्रेस से बीजेपी में जाने का ही मामला प्रकाश में नहीं रहा, बल्कि बसपा, सपा से आये उम्मीदवारों को टिकट देना और अपने नेताओं को किनारे करना भी बीजेपी पर उल्टा दाव साबित हुआ।