मोदी ने छह महीने पहले ही बना ली थी आदिवासी दिवस की योजना

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राजेश राठौर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की हर काम की योजना कितने महीने पहले बन जाती है, इसका ताजा उदाहरण कल भोपाल (Bhopal) में हुए जनजातिय गौरव दिवस (Janjatiya Gaurav Divas) का कार्यक्रम था। इसकी स्क्रिप्ट पहले ही लिखी जा चुकी थी। मध्यप्रदेश (MP) में बड़ी संख्या में रहने वाले आदिवासियों (tribal people) को भाजपा (BJP) से जोडऩे के लिए प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी, अमित शाह (Amit Shah) ने सबसे पहले यहां का राज्यपाल आदिवासी वर्ग के मंगूभाई पटेल को बनाया। पटेल ने राज्यपाल बनने के बाद लगातार आदिवासी जिलों के दौरे शुरू किए, ताकि उस वर्ग के हालात जान सकें। इसके आधार पर उनसे जुड़ी योजनाएं बनें।

इसके बाद मोदी-शाह ने बिरसा मुंडा (birsa munda) की जयंती पर 15 नवंबर को भोपाल में राष्ट्रीय जनजातिय गौरव दिवस मनाने का फैसला किया। मध्यप्रदेश के बहुत कम नेताओं को यह बात पता थी कि यह कार्यक्रम वास्तव में मध्यप्रदेश सरकार का नहीं, बल्कि केंद्र सरकार का था। दिल्ली से मिले आदेश के बाद राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) से ये कार्यक्रम बनवाया। पूरे कार्यक्रम की तैयारियों से लेकर कार्यक्रम होने तक जो घटनाक्रम हुए उस पर गौर से ध्यान दें, तो पता चलेगा कि सब कुछ दिल्ली से हो रहा था।

गुजरात पैटर्न पर इस कार्यक्रम की तैयारियां की गईं। किस तरह से बसें, किन जिलों से आएंगी, दूरस्थ इलाके के आदिवासियों को भोपाल के पहले वाले जिलों में ठहराया जाएगा, आदिवासियों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो, इसलिए बस में जितनी सीटें थीं, उतने ही आदिवासी बैठे। जम्बूरी मैदान में उम्मीद के अनुसार पहुंचे आदिवासियों को वापसी में भी वो सारी सुविधाएं दी गईं। आदिवासी नृत्य से लेकर आदिवासी नेताओं को मंच पर जगह देने की सारी रणनीति दिल्ली से मंजूर हुई। राज्यपाल पटेल भी पूरे कार्यक्रम की समीक्षा कर रहे थे।

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मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान खुद इतने ज्यादा अलर्ट थे कि पहली बार वे प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के पहले न केवल सिर्फ तैयारियां ही नहीं देखने गए, बल्कि माइक तक चेक किया। सरकार को बाद में पता चला कि दिल्ली से तय हुआ स्टेशन का नाम इस पूरे आयोजन की जो सबसे बड़ी गोपनीय रणनीति थी, उसका खुलासा कल कुछ इस तरह से हुआ कि मध्यप्रदेश सरकार को ये पता ही नहीं था कि हबीबगंज स्टेशन का नाम गौंड जाति की महारानी कमलापति के नाम पर होगा।

दिल्ली से रेलवे अफसरों ने मध्यप्रदेश सरकार के एक अफसर को स्टेशन का नाम बदलने का प्रस्ताव तत्काल दिल्ली भेजने के लिए कहा। आयोजन के तीन दिन पहले ताबड़तोड़ प्रस्ताव दिल्ली पहुंचा। पीएमओ ने रेलवे मंत्रालय को औपचारिक रूप से कहा। हालांकि रेल मंत्रालय को पहले से पता था। केंद्रीय अश्विनी वैष्णव ने तत्काल नोटशीट तैयार करवा कर तीन घंटे में पीएमओ भेज दी। उसके बाद इसकी अधिकृत घोषणा हुई, तब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को पता चला। कमलापति (Kamlapati) के नाम पर स्टेशन करने की योजना भी पहले बन गई थी।

यही कारण था कि स्टेशन पर कमलापति के नाम के कई बोर्ड तत्काल लग गए। एक दिन में ही बोर्ड लगने के साथ ही रेलवे के सॉफ्टवेयर में तत्काल बदलाव कर दिया गया। यही कारण था कि रेलवे की वेबसाइट से लेकर टिकट तक पर कमलापति का नाम तत्काल आ गया। मोदी ने मध्यप्रदेश के आदिवासियों को पार्टी के पक्ष में करने के लिए कल मंच से राष्ट्रीय जनजातिय गौरव दिवस मनाने की घोषणा भी की। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की तारीफ तो एक बार जरूर की, लेकिन राज्यपाल मंगूभाई पटेल की तारीफ ज्यादा की।

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ये बताने की कोशिश की कि हमने आदिवासी राज्यपाल बनाया है। दोनों आयोजनों में राज्यपाल की तारीफ करना चर्चा का विषय बना हुआ है। दिल्ली से आए संदेश के कारण ही आदिवासियों को लाने-ले जाने वाली बसों पर सिर्फ भाजपा का झंडा लगा था। किसी नेता का पोस्टर या नाम नहीं लिखा हुआ था, नहीं तो सरकारी आयोजनों में भी जब भीड़ ले जाई जाती है, तो विधायक, सांसद अपने नाम के पोस्टर और बैनर बसों पर लगा देते हैं। आने वाले समय में मध्यप्रदेश के राज भवन से आदिवासियों के विकास के लिए कई योजनाओं को अंतिम रूप देने की खबरें मिलेंगी।