-श्रवण गर्ग
हैं परेशान इन दिनों बहुत सारी चीजों को लेकर हम !
मसलन ,क्या करना चाहिए हमें-
नहीं बचे जब अपना ही देश हमारे पास !
कहाँ पहुँचना चाहिए तब हमें ?
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मसलन कि खड़े हुए हैं हम जिस जगह
इस बदहवास शाम के वक्त
हामिद करजाई हवाई अड्डे के बाहर
मुल्क का होते हुए भी जो हमारा
छूट गई है ज़मीन जिसकी अब जिस्म से हमारे
क्या करना चाहिए ऐसे हालातों में हमें ?
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या मान लीजिए दिख रहा वह जो नन्हा-सा बच्चा
उछाला गया है जिसे दीवार पर कसे कँटीले तारों के पास
पहुँचने के लिए एक अनजान सैनिक के हाथों की पकड़ में
और वह खून आपका है जो बस उड़ने ही वाला है
छोड़कर आपको किसी ग़ैर मुल्क के लिए
और देख पा रहे हैं आप उसे बस लटके हुए हवा में ही
भरी हुई आँखों और भारी साँसों के साथ, आख़िरी बार
क्या करना चाहिए फिर ऐसे में आपको ?
या कि मसलन ,खूबसूरत सा दिखता वह फ़ुटबाल खिलाड़ी
नज़र आ रहा था लटका हुआ जो कुछ देर पहले तक
उड़ते हुए अमेरिकी जहाज़ के पंखों के साथ आसमान में
दिखे फिर वही अचानक से टपकता हुआ
आँसू की किसी ख़ूब मोटी बूँद की तरह
छत पर किसी अफ़ग़ान के ही टूटे हुए मकान की
लहू-लुहान और चिथड़े-चिथड़े बिखरा हुआ
चले पता फिर कि वह बेटा तो था आपका ही
कैसा महसूस करना चाहिए उस क्षण आपको ?
सोचा है क्या आपने या मैंने ही कभी !
भागना चाह रहा हो उड़कर जब
अपने ही पैरों पर खड़ा होता पूरा का पूरा मुल्क कोई
उन अजनबी मुल्कों में जो थे ही नहीं मुल्क उसके कभी
कैसा लगना चाहिए तब अंदर से हमें अपने ?
हैं परेशान सोच-सोचकर हम यह भी कि
लगती होंगी कितनी साँसें और वक्त बनने में एक मुल्क के
और किया जाता होगा जब उसे तबाह !
कैसे हो जाता होगा सब कुछ इतनी जल्दी, एक साँस में ?
कैसे हो जाता होगा ख़त्म पलक झपकते ही एक मुल्क !
सवाल तो इस समय सता रहा है यह भी कि
किस मुल्क में जाएगा वह अब लौटकर—
कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर की मिनी का ‘काबुलीवाला’ ?