अपनी विचारधारा से समझौता कभी नहीं करने वाले कल्याण दादा के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए

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By Mohit DevkarPublished On: August 13, 2020
Indore News in Hindi

रामस्वरूप मंत्री

आज पूर्व सांसद कल्याण जैन का जन्मदिन है। इंदौर के पूर्व सांसद जुझारू समाजवादी नेता तथा देश में पहली बार छोटे दुकानदारों को संगठित कर कानूनी जंजाल से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले कल्याण जैन 13 अगस्त को अपनी 86 वी वर्षगांठ मना रहे हैं समाजवाद में अटूट निष्ठा गैर बराबरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ असीम गुस्सा और अत्यंत गरीब को भी न्याय दिलाने की भरसक कोशिश के गुण कल्याण जैन को एक अलग राजनेता के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं ।

अपनी विचारधारा से समझौता कभी नहीं करने वाले कल्याण दादा के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए

87 साल की उम्र के करीब पहुंच रहे कल्याण दादा के राजनीतिक जीवन की आधी सदी से ज्यादा बीत चुकी है सतत धारावाहिक ता के चलते उन्होने अपने संघर्षों में ना कभी साधनों की चिंता की और ना संख्या बल की । गांधी जी के इस वाक्य को कि समाज परिवर्तन की लड़ाई लड़ने वालों को मान अपमान और तिरस्कार की चिंता किए बगैर अपनी राह पर चलते रहना चाहिए । इसी को उन्होंने अपना ध्येय वाक्य बनाकर 1960 में संघर्ष की जो राह पकड़ी तो वह आज भी जारी है । इस दौरान पार्षद विधायक और सांसद रहते हुए उन्होंने तीनों सदनों में गरीबों की आवाज को बुलंद किया ।

वित्तीय मामलों में दादा की गहरी पकड़ है बजट के पूर्व और बजट के बाद होने वाली चर्चाओं में उनकी व्याख्या विश्लेषण तार्किकता और आर्थिक मामलों में उनकी सोच को सराहा जाता है । आजादी बचाओ आंदोलन हो या प्राथमिक शिक्षा एक जैसी हो इस पर होने वाले आंदोलनों में दादा को लगातार नेतृत्व करते हुए देखा जाता है । अन्याय कहीं भी हो दादा पीड़ितोंक के हक में खड़े हो जाते हैं । संघर्ष के साथ ही दादा लेखन के जरिए भी सरकार को सुझाव देते रहे हैं । इस संबंध में उनकी कुछ किताबें भी प्रकाशित हो चुकी है , जिनमें प्रमुख है अभी भी समय है, 10 नहीं सौ करोड़ का भारत , मेरे सपनों का भारत, यदि में वित्त मंत्री होता, कार्य संस्कृति सुधार पथ बढ़ाने होंगे तथा सब्सिडी का विकल्प ।

अपनी विचारधारा से समझौता कभी नहीं करने वाले दादा के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए राजनीतिक रूप से भी कई मौके आए लेकिन उन्होंने कभी विचारधारा से समझौता नही किया । 1984 के चुनाव का वाकिया मुझे याद है जब भाजपा ने गुना से माधवराव सिंधिया के खिलाफ कल्याण दादा को संयुक्त उम्मीदवार बनाने का फैसला किया । सूचना मिलने पर दादा ने गुना से नामांकन भी दाखिल कर दिया लेकिन अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को ग्वालियर भेज दिया ,अटल बिहारी वाजपेई के खिलाफ चुनाव लड़ने को। तो भाजपा अपने वादे से पलट गई और उसने कल्याण जैन को संयुक्त उम्मीदवार बनाने से इनकार कर दिया ।

जब दादा कुशाभाऊ ठाकरे से भोपाल में मिले तो ठाकरे जी ने कहा कि आप भाजपा के उम्मीदवार बनने को तैयार हो तो गुना से पार्टी टिकट देने को तैयार है , लेकिन दादा को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया यदि उस प्रस्ताव को मान लेते तो हो सकता था कि आज उनकी भाजपा के बड़े नेताओं में गिनती होती, लेकिन उन्होंने अपनी विचारधारा से समझौता ना कर अपनी राजनीति को नई चमक दी । आज भी उम्र के 8 दशक पूर्ण करने के बाद दादा संघर्ष का मजबूत इरादा रखते हैं उनके इस जन्मदिन पर हम सब साथी यही आशा करते हैं कि उनका मार्गदर्शन और नेतृत्व हमें हमेशा मिलता रहे ।