आज प्रातः अचानक ही मन को व्यथित करने वाला यह समाचार मिला कि परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य ॠषभचन्द्र सूरेश्वर जी महाराज का देवलोकगमन हो गया । मुझे भी अनेक बार उनके दर्शन का अवसर मिला। भारत में तो संत परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। सारे देश में, हर कोने मे संत विद्यमान रहे जो सारे समाज का मार्गदर्शन करते रहे। इसका प्रभाव भी भारतीय समाज पर दिखाई देता है। ऐसे ही समाज के मार्गदर्शक हमारे आचार्य जी रहे।
वे ना केवल धर्मोपदेशक थे, वे ज्योतिष विज्ञान, मंत्र शास्त्र के ज्ञाता थे, श्रेष्ठ लेखक भी थे, उन्होंने अनेक पुस्तकों का लेखन व संपादन भी किया। मोहनखेडा तीर्थ के विकास में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। आपके द्वारा धर्म-प्रभावना के अनेक कार्य किये गये। मंदिर निर्माण, जीर्णोद्धार, गुरु मंदिरो की प्रतिस्थापना में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आपके द्वारा गौशाला, चिकित्सालय व विद्यालयों की भी स्थापना की गई। सेवा एवं जीव दया के प्रति आप सदैव संकल्पित रहे ।ऐसे महात्मा का प्रत्यक्ष सान्निध्य आगे से हमें नहीं मिल सकेगा , इसकी पीड़ा तो रहेगी।
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फिर भी आपको भूलना संभव नही होगा। यद्यपि हमें पता है कि संसार में हर व्यक्ति का आना और पश्चात जाना यह क्रम निरंतर है और इसे कोई रोक नहीं सकता। आचार्य जी तो शरीर के रहते भी समाज में विलीन रहते थे, वे शरीर को छोडने के बाद पंचतत्व में विलीन हो गये। किंतु अपने श्रेष्ठ कार्य के रूप में वे हमारे बीच में सदैव विद्यमान रहेंगे और हमारा मार्गदर्शन भी करते रहेंगे। यद्यपि यह पीड़ा की बात है, फिर भी इसे सहना यह हम सब के लिए आवश्यक है,उसका और कोई रास्ता भी नही है।
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इस कठिन अवसर पर इस व्यथा को सहते हुए भी अपने मन को हम सभी शांत करने का प्रयास करेंगे। उनके कार्य के रूप में उनका स्मरण भी करते रहेंगे, उसमें से मार्गदर्शन भी प्राप्त करते रहेंगे। इस दुखद प्रसंग पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से मैं भावपूर्ण श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूँ, श्रृद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।
ऊँ शान्तिः ।।