बात तब की है जब वे पहली बार शादी के बाद शंकर भैया के साथ हमारे घर आयी थी। शंकर भैया के कहने पर उन्होंने चाय बनाई। चाय बनाते वक़्त वे सहमी हुई थी वे जानती थी कि हमारी मम्मी सफ़ाई पसंद हैं, इसलिए उनके मन में डर था कि कहीं कुछ गलती न हो जाए। ये बात ख़ुद उन्होंने यानी अमिता भाभी ने बाद में सुनाई थी।
बड़ों का सम्मान उनकी खासियत थी तो अपने से छोटों पर उनका प्यार भी उमड़ता था। परिवार में जब भी छोटों से मिलती, वे अपनी व्यवहार कुशलता की गहरी छाप सभी के मन पर छोड़ती थी। हरदम खुशियां बिखेरना हँसते मुस्कुराते सबसे मिलना उनकी जीवनशैली में शामिल रहा। खुशमिजाजी और खिलखिलाहट भरी हँसी का उनका अंदाज़ ही निराला था।
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बड़ों के प्रति उनमें अदब का भाव भी वाक़ई प्रेरक था। समय के साथ सब कुछ बदल जाता है, ये युक्ति अमिता भाभी से कोसों दूर थी। शंकर भैया एक के बाद एक इतने पदों पर रहे लेकिन उनके स्वभाव में कभी परिवर्तन नहीं देखा। वे जैसी पहले थी अपने आख़िरी वक़्त तक वैसी ही रही।
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बीमारी से पहले परिवार की एक शादी में शरीक हुई। शायद ये उनका आख़िरी समारोह था जिसमें वे पूरी शिद्दत से शामिल हुईं। ख़ूब याद आएंगी अमिता भाभी। कहने को दो परिवार हैं लेकिन हमेशा एक रहे हैं।शंकर भैया को परिवार मैं बड़े भाई का दर्जा है। वे पापा को पापा बोलते हैं इसलिए एक बहू की बिदाई सदा खलेगी।
लेखक- अन्ना दुराई