अर्जुन राठौर
इंदौर के मोती बंगला में औधोगिक स्वास्थ्य तथा सुरक्षा विभाग का हेडक्वार्टर है यहां पर संचालक के पास पूरे प्रदेश के कारखानों तथा फैक्ट्रियों में सुरक्षा के जो मापदंड तय हैं उनका पालन हो रहा है या नहीं इसको देखने की जिम्मेदारी है यहां पर इंस्पेक्टरों का भी भारी भरकम अमला है लेकिन इसके बावजूद कारखानों में होने वाली दुर्घटनाएं इस बात की ओर इशारा करती है कि यह विभाग सुरक्षा के नियमों तथा उपकरणों की पूरी तरह से जांच करने की बजाय औपचारिकता ज्यादा निभाता है । अभी परसों ही खबर आई थी कि पीथमपुर की एक फैक्ट्री में तीन श्रमिकों की मौत हो गई इसके पहले भी पीथमपुर में कई मामले हुए हैं जिसमें मजदूरों की जान गई लेकिन लापरवाही के चलते इस विभाग के किसी भी इंस्पेक्टर के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई।

होना तो यह चाहिए कि कारखानों तथा फैक्ट्रियों की नियमित जांच हो कर वहां के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा के प्रबंधों पर निगरानी रखी जाए लेकिन ऐसा कहा जाता है कि उन पर निगरानी रखने का कार्य मात्र एक औपचारिकता बनकर रह गया है इसकी आड़ में सांठगांठ के आरोप भी लगते रहे हैं जब कोई बड़ी दुर्घटना होती है तो हल्ला मचता है और तब झूठ मुठ की कार्रवाई बताकर मामले को दबाने की कोशिश की जाती है बीते 1 वर्ष में जितनी भी दुर्घटनाएं हुई है तथा श्रमिकों की मौत हुई है उनका यदि कच्चा चिट्ठा निकाला जाए तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आएगी