अभिषेक मिश्रा
जनता पर आई आपदा को छोड़ खुद के राजनीतिक क्राइसिस की फ़िक्र करना कोई इंदौरी नेताओं से सीखें …ताज़ा उदाहरण शहर में वार्ड स्तर पर गठित की गई क्राइसिस मेनेजमेंट कमेटियों से जुड़ा है … कमेटी के बहाने नेताओं ने यहाँ पिछले साल से लेकर अब तक की गई अपनी सभी ग़लतियों पर पर्दा डालने के साथ ही, खुद की राजनीति चमकाने के अवसर एक बार फिर से तलाश लिए है गुरुवार को नगर निगम की तरफ़ से कमेटियों की सूची ज़ारी की गई …विवाद किया तो कुछ देर बाद ही कांग्रेस के नेताओं को भी सदस्य बनाकर उनका भी मुँह बंद करवा दिया गया…वो इसलिए भी क्योंकि इस हमाम में तो सभी नंगे है …फिर काहे की बैर….फ़िलहाल तो सभी का प्रयास कवर फ़ायर का है… वैसे भी जब खुद पर आती है,तो दिखावे के राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के बीच एक राय बनते देर नहीं लगती ।
ख़ैर सवाल यह है की आख़िर यह कमेटियाँ और इसके सदस्य करेंगे क्या …जब जनता को रेमडेसिविर इंजेक्शन की ज़रूरत थी…तब यही नेता पीठ दिखाए खड़े थे…जब जनता को अस्पतालों में बेड्स की ज़रूरत थी…तब अधिकांश नेता फ़ोन बंद कर बैठे थे…जब जनता को ऑक्सीजन की ज़रूरत थी…तब यही नेता अपने घरों दरवाज़ों को बंद किए हुए थे…नक़ली रेमडेसिविर इंजेक्शन धड़ल्ले से बेच दिए गए …न जाने कितनी मौतें?
इस कालाबाज़ारी से हुई होगी…तब किसी भी नेता ने जनता की मदद के लिए एक बार भी आवाज़ नहीं उठाई …निजी अस्पतालों लूट खसौट का धंधा आज भी बदस्तुर जारी है और हालात बता रहे है यह आगे भी जारी ही रहने वाला है ….जब इन सारी समस्याओं हल निकला ही नहीं बल्कि लोगों का तड़प तड़प कर दम निकल गया…तब इन सभी अवसरवादी नेताओं पर भरोसा आखिर किस आधार पर किया जाए … हालात यदि काग़ज़ों पर ही सही,लेकिन नियंत्रण में आते भी दिख रहे है तो इसमें इन नेताओं का क्या योगदान? ….आख़िर धंधा,पानी और मज़दूरी को छोड़कर तो घर में क़ैद एक आम आदमी ही है ….शहर को बंद कर के ही समस्याओं का निदान निकलना है,तो ऐसे नकारा नेताओं की ज़रूरत आख़िर किसे और किसलिए है ?
ध्यान रहें व्यक्तिगत महत्वकांक्षा के अवसर तलाशने में माहिर यह व्हाइट फ़ंगस पर्सनल डैमेज कंट्रोल लिए एक बार फिर से सक्रिय हो गया है …. जिसके लिए वार्ड स्तरीय क्राइसिस मेनेजमेंट कमेटियों के गठन का रास्ता चुना गया है …कमेटी के नाम पर यह गिरोह नाखून काटकर अपने आप को शहीद बताने के प्रयास में जुट जाएगा…झूठे वादों को आधार खुद को पोषित करने वाला यह फ़ंगस एक बार फिर दिमाग़ में घुसकर आपको जल्द ही भीड़ का हिस्सा बनाने की भी चेष्टा करेगा ….लेकिन इस बार राजनीतिक दलों के किसी भी नेता की बातों में आने से पहले एक या दो बार नहीं, बल्कि सौ बार सोचिएगा… तमाशा पसंद ऐसे नेताओं से अपनी और परिवारजनों की सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की ग्यारंटी ज़रूर ले लेना…. वरना अवसरवादिता और बौद्धिक महामारी से पीड़ित यह नेता हमें कभी स्वस्थ नहीं रहने देंगे…
व्हाइट फ़ंगस से दो गज की दूरी …जीवन के लिए है जरुरी