निरुक्त भार्गव। अजब-गजब प्रयोगों के कारण लगातार आलोचनाओं के केंद्र में बने हुए ‘श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रशासन’ ने एक नया बखेड़ा मोल ले लिया है, पत्रकारों यानी मीडियावालों की “प्रोटोकॉल” व्यवस्था कायम करके! प्रमुख वार-त्योहार, पर्व-उत्सव और सिंहस्थ महाकुंभ सहित अति-विशिष्ट लोगों के आगमन के समय वास्तविक पत्रकारों को प्राय: किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आती है, कवरेज के दौरान! यह भी सच्चाई है कि वास्तविक पत्रकारों के अत्यंत निकट के परिजनों और उनके नियोक्ता संस्थानों से आने वाले सीनियर्स को भस्मारती दर्शन और महाकालजी के दर्शन में कभी कोई खास अड़चन नहीं आती! इसके लिए कलेक्टर, जनसंपर्क विभाग, प्रशासक-सहायक प्रशासक और प्रोटोकॉल सेल का धन्यवाद ज्ञापित किया जाना चाहिए! मगर, हाल में अचानक ऐसा क्या घटित हो गया कि मीडियावालों के लिए प्रोटोकॉल व्यवस्था का ऐलान करना पड़ा? व्यवस्था दे दी गई कि उनके अमुक-अमुक रिश्तेदारों को मंदिर में ‘वीआईपी’ प्रवेश दिया जा सकेगा! ये भी साफ कर दिया गया है कि कोई भी व्यक्ति यदि कहीं से भी और किसी भी तरह खुद को “पत्रकार” सिद्ध कर दे, तो उसको प्रोटोकॉल से दर्शन व्यवस्था सुलभ करा दी जाएगी!
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अरे, प्रभुओं! उज्जैन शहर में कागज़ों पर 1000 से भी ज्यादा मीडियावाले हैं, हालांकि मीडिया संस्थानों के दफ्तरों और मैदानी हकीकत जांचने जाओगे तो बमुश्किल 100-200 वास्तविक पत्रकार दिखाई देंगे! राज्य शासन की नीति के अनुसार यदि उसके जनसंपर्क विभाग से पता करोगे, तो उज्जैन में 200 से ज्यादा मीडियावाले नहीं होंगे! बताइए, बहुत लिहाज रखकर भी गिनती करें, तो महाकाल महाराज की नगरी में वास्तविक पत्रकारों की संख्या 300 का आंकड़ा पार नहीं करती! अब यदि आप मीडियावाले के नाम पर या उनकी आड़ में 1000 लोगों को प्रोटोकॉल व्यवस्था देंगे और इतनी ही संख्या वाले लोग अपने-अपने रिश्तेदारों वगैरह को भी प्रोटोकॉल दिलवाएंगे, तो भद्द किसकी पिटेगी? जो आम श्रद्धालू देहात और देश-विदेश से प्रतिदिन आकर और लाईन में लगकर महाकालजी के दर्शन करना चाहते हैं, उनको आखिर क्या संदेश दिया जा रहा है?
तस्वीर का दूसरा पक्ष भी समझ लीजिए: 26 मई को मुख्यमंत्री का महाकाल क्षेत्र का दौरा कार्यक्रम है; 29 मई को महामहिम राष्ट्रपति महाकालेश्वर मंदिर में पूजन-अर्चन हेतु पधारेंगे और 12 जून को प्रधानमंत्री का महाकाल कॉरिडोर के लोकार्पण के निमित्त उज्जैन आगमन प्रस्तावित है. उक्त प्रोटोकॉल व्यवस्था के चलते यदि कुछ भी अवांछनीय होता है, तो किसे कसूरवार ठहराया जाएगा? यदि उज्जैन के मैदानी 50 पत्रकारों और बाहर से आने वाले 100 से भी अधिक मीडियाकर्मियों को उक्त भीड़ के कारण वीवीआईपी कवरेज में किसी भी किस्म की दुश्वारी पेश आती है, तो ज़िम्मेदार किसे माना जाएगा? यदि प्रोटोकॉल व्यवस्था के नाम पर किसी भी तरह का दुरुपयोग कारित किया जाता है, तो किसकी जवाबदेही रहेगी?
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आइए, ये जानने की कोशिश करते हैं कि उक्त प्रोटोकॉल व्यवस्था को क्यों लागू किया जा रहा है:
(1) क्या वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत मीडियावालों के नाम पर या उनकी आड़ में सुविधा का दुरूपयोग किया जा रहा था? (2) क्या वास्तविक पत्रकारों को कवरेज करने में कोई गंभीर समस्या आ रही थी?
(3) क्या वास्तविक पत्रकारों को उनके सीनियर्स और निकट परिजनों को मंदिर में प्रवेश दिलवाने में परेशानी आ रही थी? (4) क्या प्रोटोकॉल व्यवस्था व्यापक मीडिया हितों को ध्यान में रखकर लागू की गई है?
(5) कहीं अन्य ‘कैटेगरी’ (पॉलिटिकल/ज्यूडिशियल/एडमिनिस्ट्रेटिव) के सज्जनों और उनके घरवालों और चाहनेवालों को अधिक सुविधा मुहैया कराने के उद्देश्य से तो मीडिया प्रोटोकॉल का नया राग तो नहीं छेड़ा गया है?
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और, अंत में, निम्न बिंदुओं पर भी विचार किया जाना श्रेयस्कर रहेगा:
(1) महाकाल महाराज के दरबार में किसको प्रोटोकॉल मिलना चाहिए?
(2) दर्शन के लिए इनमें, मुझमें और उनमें भेदभाव क्यों?
(3) क्या पत्रकारों के संबंध में निर्णय लेने का विवेकाधिकार जनसंपर्क विभाग का नहीं होना चाहिए?
(4) आगंतुक पत्रकार यदि स्वयं के वास्तविक नियोक्ता का परिचय पत्र अथवा राज्य शासन से जारी किए गए अधिमान्यता कार्ड या फिर पीआईबी, दिल्ली से जारी अधिमान्यता कार्ड को प्रदर्शित करे, तो ही उसे मंदिर में प्रवेश दिया जाना चाहिए कि नहीं?
(5) प्रेस/मीडिया से संबंधित कोई भी व्यवस्था बनाए जाने से पूर्व प्रमुख, मैदानी और वास्तविक पत्रकारों को विश्वास में लिया जाना चाहिए कि नहीं?