प्रेम, प्रसन्नता, पुण्य, पवित्रता और परिणति ही प्रभु के आधार-ज्ञानबोधि सूरीश्वरजी मसा, श्रावक-श्राविकाओं ने लिया प्रवचनों का लाभ

Shivani Rathore
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इन्दौर। जीवन में अगर हमें प्रभु का बनना है तो हमें जीवन जीने के प्रभु के बताए मार्ग को अपनाना होगा तभी हमें प्रभु स्वीकार करेंगे। संसार दावानल है तो प्रभु उपवन हैं। आँख का आकार भले ही छोटा हो लेकिन उसमें हिमालय को समाने की क्षमता होती है। अगर हमें परमात्मा का होना है तो प्रेम, प्रसन्नता, पुण्य के साथ ही पवित्रता और परिणति के साथ अपने जीवन में सामन्जसता स्थापित करनी होगी।

उक्त विचार रेसकोर्स रोड़ स्थित श्री श्वेताम्बर जैन तपागच्छ उपाश्रय श्रीसंघ में पांच दिवसीय प्रवचनों की अमृत श्रृंखला के द्वितीय दिवस पर आचार्य विजय कुलबोधि सुरीश्वर जी मसा के अज्ञानुवर्ती शिष्य ज्ञानबोधि जी मसा ने सभी श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने अपने प्रवचनों में आगे कहा कि प्रेम में वह ताकत होती है कि प्रेमवश मनुष्य संसार की सबसे प्रिय वस्तु भी त्याग देता। राग हमें अधोगति में लें जाता है और प्रेम उर्धगति में। शरीर की स्वस्थता होती है और मन की प्रसन्नता। भोजन से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है लेकिन मन तो प्रसन्नता से ठीक रहेगा। सांसारिक जीवन में जिसके साथ पुण्य है उसी के साथ भगवान हैं।

श्री नीलवर्णा पाश्र्वनाथ मूर्तिपूजक ट्रस्ट एवं चातुर्मास समिति संयोजक कल्पक गांधी एवं अध्यक्ष विजय मेहता ने बताया कि रेसकोर्स रोड़ स्थित श्री श्वेताम्बर जैन तपागच्छ उपाश्रय श्रीसंघ ट्रस्ट द्वारा आयोजित 5 दिवसीय प्रवचनों की श्रृंखला का दौर चलेगा। जिसमें आचार्यश्री 24 से 28 जून तक नई दिशा व नई दृष्टि विषय पर प्रात: 9.15 से 10.15 बजे तक प्रवचनों की वर्षा करेंगे।