नितिनमोहन शर्मा
अदभुत…अलौकिक…अप्रतिम नज़ारा। जहा तक नजर दौड़ाओ..बस श्रद्धा में झुके मस्तक ही मस्तक। हर तरफ अपने इष्ट के जयकारों की गूंज। लहराती भगवा पताकाएं और गूंजती ढोल नगाड़ों की थाप। झाँझ, मंजीरों और झालर की झंकार। भजनों की स्वर लहरियां और उस पर थिरकते-झूमते-आनंदित होते श्रद्धालुओ के समूह के समूह। बैंड बाजों की धुन और जय सियाराम का जयघोष। आसमान में आतिशबाजी के रंग और धरती पर पुष्पों की बौछार। आस्था के इस उल्लास का कोई ओर छोर नही। बस एक ही शोर..जय रणजीत-जय रणजीत।
ये दृश्य ये उस भक्तिमय उत्सव का जिसे रणजीत अष्टमी नाम दिया गया है। वो अष्टमी जिस दिन देवी अहिल्या नगरी के बलवीर बाबा रणजीत भक्तों का हाल जानने देवालय से निकल प्रजा के बीच आते है। चांदी के रथ पर जैसे ही बाबा नगर भृमण के लिए सवार हुए…ब्रह्ममहुर्त में जय रणजीत का गगनभेदी जयघोष गूंज उठा। भगवान सूर्यनारायण के नील गगन पर आने के पहले ही जैसे पश्चिमी इन्दौर में उजाला हो गया। ‘भुनसारे’ में जैसे भोर हो गई। साक्षात सूर्य के सामान आभा उल्लास बिखेरते रणजीत सरकार का दीप्त ओर दिव्य स्वरूप। जिसने देखा…पलक झपकाना भूल गया। हजारों लाखों नयन इस सुंदर दृश्य को अपलक निहारते रह गए।
ऐसा उत्सव, ऐसा उल्लास, ऐसा उत्साह कि महू नाका से मन्दिर और मन्दिर से अन्नपूर्णा मन्दिर, उषा नगर, द्रविड़ नगर, नरेंद्र तिवारी मार्ग, सुदामा नगर, गुमाश्ता नगर, स्कीम नम्बर 71, फूटी कोठी आदि इलाको ने जैसे रतजगा ही किया हो। सुबह 3 बजे से ये इलाके रोशन हो गए। 4 बजते बजते तो भक्तों के रेले के रेले सब तरफ से आने लगे। अलसुबह 5 बजने के पहले ही श्रद्धालुओं का ऐसा सैलाब उमड़ा की बाबा का आँगन ही नही, सड़के तक छोटी पड़ गई। ओटले, अटारी से लेकर छतों तक बस भक्त ही भक्त। बस एक ही ललक। एक ही चाहत। एक ही आस। बस रथ पर सवार बाबा का दीदार हो जाये। सेकड़ो हाथ उस रथ को खिंचते चल रहे थे, जिस पर हनुमंत सरकार रणजीत बाबा विराजमान थे।
शहर की राजनीति भी शरणागत
जय बलवीर…जय जय रणजीत का गुणगान करती हई शहर की पूरी राजनीति बाबा के श्री चरणों मे शरणागत थी। नतमस्तक थी। महापौर पुष्यमित्र भार्गव इसके अगुवाकर बने। नियमित भक्त गौरव रणदिवे भी सबसे पहले पहुचने वालो में से एक थे। फिर तो मंत्री, विधायक से लेकर दर्जनों पार्षदो ने भी रथ को हाथ से खींचा।
सेकड़ो स्वागत मंच, बरसे फूल
बाबा की अगवानी में पूरा इलाका दुल्हन जैसा सजा था। सेकड़ो स्वागत मंच लगे थे। इन मंचो से इतने फूल बरसे की जमीन पर फूलों का बिछोना बिछ गया। स्वागत मंचो से अलग अलग प्रकार की स्वादिष्ट प्रसाद सामग्री भी वितरित की गई।