जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 99 साल की उम्र में हुआ निधन, नरसिंहपुर में ली अंतिम सांस

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जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 99 साल की उम्र में रविवार को निधन हो गया। जानकारी के अनुसार उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में आखिरी सांस ली। बता दें कि स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे।

स्वामी स्वरूपानंद ने हाल ही में 3 सितंबर को अपना 99वां जन्मदिन मनाया था। वह द्वारका की शारदा पीठ और ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य थे। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। साथ ही आजादी के आंदोलन में भी भाग लिया था व कई बार जेल भी गए थे। स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था। अंतिम समय में शंकराचार्य के अनुयायी और शिष्य उनके समीप थे। उनके बृह्मलीन होने की सूचना के बाद आसपास के क्षेत्रों से भक्तों की भीड़ आश्रम की ओर पहुंचने लगी।

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बाल उम्र में ही चुन लिया था सन्यास का मार्ग

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। महज नौ साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। इस दौरान वो उत्तरप्रदेश के काशी भी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। साल 1942 के इस दौर में वो महज 19 साल की उम्र में क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए थे, क्योंकि उस समय देश में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई चल रही थी।