नितिनमोहन शर्मा
सोचिए जरा। पलभर के लिए कि जब देश ने वो दृश्य देखा होगा जिसमें चलती कार में चीखती युवती, अधनंगे बदन के साथ जैसे तैसे जान छुड़ाकर कार से बाहर आती है। कपड़े संभालती हुई। लोग आ चुके है। फिर भी कार चलाने वाला बाहर जाती लड़की को खींच रहा है वापस कार में। अंतर्वस्त्र पकड़कर। वीडियो बनाने वाले कार का नम्बर भी जोर जोर से बोलते है।
ये दृश्य इंदौर, जी हाँ आपके इंदौर का है। जिस पर आप हम सब फ़ख़्र करते है। इस नजारे में समूचे देश मे अहिल्या नगरी की क्या दुर्गति करवाई होगी? इसका रत्तीभर भी अंदेशा है आप हमको? जिस शहर के विषय में हम पुरखो के समय से ये दम्भोक्ति सुनते आ रहे है कि इंदौर ऐसा शहर है कि आधी रात को भी महिला अकेले आ जा सकती है। मजाल है कोई हाथ लगा ले…!!
आज उस शहर में हम ही नही, हमारे पुरखे भी शर्मिंदा हुए होंगे। बेगैरतों को छोड़कर, हर वो शख्स शर्मिन्दा हुआ होगा जो इस शहर से ओर उसकी तासीर से अटाटूट प्रेम करता है। घटना किसी दिल्ली मुम्बई चेन्नई जैसे महानगर की नही। न बिहार, धनबाद, झरिया, झारखंड की।
न दूर देश के शहर फुकेट की। बल्कि जबरिया महानगर बनाये जा रहे इंदौर की है। नही चाहिए हमे ऐसा महानगर। कामकाजी लोगो के नाम से खड़ी की गई ऐसी नाईट लाइफ नही चाहिए जिसके मायने पब, बार, शराबखोरी, ड्रग, नशा ओर नंगाई हो। सरेराह युवती को दबोचने की हिमाकत वाली रंगीन ओर रोशन राते नही चाहिए हमे। पटिया संस्कृति को सामने लाकर हमने इस नाईट लाइफ का स्वागत किया था। सोचा था आगे बढ़ना है तो कुछ नयापन जरूरी है।
रात में काम करने वालो की दिक्कतों को सामने रखकर तो जिम्मेदारों में इस शहर के एक हिस्से में नाईट लाइफ परोसी थी। धंधे व्यापार का भी सब्जबाग सामने रखा था। हुआ क्या? भंवरकुआं ओर एमआईजी की खाने पीने और धुंआ उड़ाने की दुकानों के अलावा कौन सी दुकान बाज़ार माल रात में खुल रहा है? इन दो हिस्सों को छोड़कर नाईट लाइफ वाली 15 – 17 km की सड़क पर सब कुछ सन्नाटे में है। पहले ही की तरह। शटर डाउन है। बत्ती गुल है।
बस रोशनी वही है, जहा ऐसी नंगाई के शर्मसार करते नज़ारे आये दिन पैदा हो रहे है। नाईट लाइफ के नाम पर न कोई दुकानें खुल रही है न कोई बड़ा माल या बाज़ार। जिस खानपान की दुकानों पर जोर दिया गया था उनमें भी अधिकांश ये सोचकर ही समय पर बन्द हो जाती है कि कौन रात को हुड़दंगियों का सामना करेगा? …और एक आप है कि इतना सब होने के बाद भी नाईट लाइफ को बन्द करने की बजाय उसका झुनझुना बजाये जा रहे है।
…क्या किसी बड़ी घटना का इंतजार है? या किसी गैंग रेप या इससे भी विभत्स? उसके बाद बन्द करेंगे नाईट लाइफ के नाम पर चल रही शहर के एक हिस्से में नंगाई? बन्द कीजिये ऐसी नाईट लाइफ जो पूरे देश मे इंदौर का सिर शर्म से झुका दे। चंद धन्नासेठों की औलादों और उनके शोक मौज के लिए पूरा शहर क्यो बदनाम हो? औसत इंदौरी की संताने रात होते ही घर मे होती है।
पैसे की गर्मी से गरमाई हुई बिगड़ी औलादों के लिए क्या ये नाईट लाइफ जैसा तमाशा खड़ा किया है? या कि उन लोगो के लिए जो रात में काम करते है? ऐसे कितने संस्थान ओर लोग है जो वाकई रात में काम करते है और जिन्हें इस नाईट लाइफ की जरूरत है? इसका आंकड़ा शहर के सामने रखे बगेर अब इस शहर में नाईट लाइफ एक दिन के लिए भी नाकाबिल ए बर्दाश्त है।
देश-प्रदेश-शहर में तो वो सरकारे है न जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के वैचारिक अनुष्ठान पर खड़ी है। तो फिर कहा है इस अनुष्ठान से जुड़े लोग और जनप्रतिनिधि? वो प्रहरी भी कहा है जो ढके टुपे कपड़े पहनकर बनाये वीडियो पर बवाल कर देते है कि सँस्कृति धूलधूसरित हो रही है? यहां तो सरेराह कपडे उतारे जा रहे है। फिर भी घटना के 36 घण्टे बीतने के बाद भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की घुट्टी पिये नेता, संगठन मौन है..!! उलटे इस दल के तीन बड़े नेताओं की संतानें इस गंदगी में लथपथ सनी हुई उजागर हुई है उनकी हरकतें कल ख़ुलासा में सबने पड़ी। इसमे दो तो विधायक रह चुके है और तीसरे को बनना है।
..स्त्री शक्ति की प्रतीक देवी अहिल्या और स्वर कोकिला स्व लता दी की नगरी में ऐसी घटना? ये शहर सुमित्रा महाजन, डॉ उमाशशि शर्मा, मालिनी गौड़, उषा ठाकुर, कविता पाटीदार, स्व पेरिन दाजी, पेठनकर दीदी, शोभा ओझा, अर्चना जायसवाल आदि इत्यादि नारी शक्ति का प्रतीक भी तो है। फिर भी ऐसी अनेकानेक नंगाई पर सबकी चुप्पी हैरत में डालती है..!! और हतप्रभ करती है नेताओ की संतानों की इसमे लिप्तता।
ख़ुलासा फर्स्ट ने इस नूतन प्रयोग को शहर की उस पटिया संस्कृति से जोड़ा था जो किसी जमाने मे इस शहर के शांत-शालीन ओर शानदार रतजगे से जुड़ी थी। आगाह भी उसी दिन किया था कि होश में रहना, अन्यथा फिर इस हिस्से में रात 11 30 बजते ही सीटियां बजने लग जाएगी। वक्त आ गया है प्रशासनिक मुखिया जी, शहर के इस हिस्से में भी साढे ग्यारह बजते ही सब मुकम्मल बन्द हो।
सरकार की मंशा पर समन्वय बनाकर आप ही इस लाइफ के अगुवाकर बने थे।अच्छाई की वाहवाही नेता लूट जाएंगे। बुरा आपके माथे मढ़ देंगे।नतीजतन आपसे ही उम्मीद है। मेरे शहर के जनप्रतिनिधियों को अब इतनी फ़ुर्सत नही कि वे जनता और शहर से जुड़े इस ज्वलंत मूददे पर मुंह खोले…!!