भारत के केंद्रीय बैंक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) को नया गवर्नर मिल गया है। संजय मल्होत्रा ने आरबीआई के 26वें गवर्नर के रूप में कार्यभार संभाल लिया है। वह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के पूर्व छात्र हैं। मल्होत्रा ने ऐसे समय पर पदभार ग्रहण किया है, जब देश की अर्थव्यवस्था कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है।
उनसे पहले शक्तिकांत दास ने छह साल तक आरबीआई का नेतृत्व किया और कोविड-19 जैसी महामारी के कठिन दौर में बैंकिंग क्षेत्र में सुधार किए। अब संजय मल्होत्रा को महंगाई, धीमी आर्थिक विकास दर और गिरते हुए रुपए के स्तर जैसी समस्याओं से निपटने का जिम्मा मिला है।
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देश की जीडीपी बढ़ाने की चुनौती
देश की अर्थव्यवस्था इस समय सुस्ती के दौर से गुजर रही है। दूसरी तिमाही में जीडीपी दर घटकर 5.4% हो गई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 8% थी। आरबीआई ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए ग्रोथ का अनुमान 7.2% से घटाकर 6.6% कर दिया है। यह साफ संकेत देता है कि अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है।
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संजय मल्होत्रा के सामने सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक वृद्धि को 7% या उससे अधिक तक वापस लाने की होगी। इसके लिए उन्हें नीतिगत बदलाव और अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के उपाय करने होंगे।
महंगाई पर नियंत्रण का दबाव
महंगाई भी आरबीआई के लिए एक बड़ी समस्या है। अक्टूबर में महंगाई दर 6.2% रही, जो आरबीआई के सहनीय स्तर से ऊपर है। हालांकि, विशेषज्ञों का अनुमान है कि नवंबर में यह दर 5.5% तक आ सकती है। फिर भी यह आदर्श स्तर (4%) से काफी अधिक है।
महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने मई 2022 से फरवरी 2023 तक पॉलिसी रेट में 2.5% की वृद्धि की थी। अब यह दर 6.5% है। लेकिन उच्च ब्याज दरों के चलते आर्थिक विकास दर प्रभावित हो रही है। ऐसे में पॉलिसी रेट में कटौती की चुनौती भी संजय मल्होत्रा के सामने है।
रुपए को स्थिर बनाए रखना
डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। हाल ही में यह 84.86 के स्तर पर पहुंचा और इसके साल के अंत तक 85.50 तक गिरने की संभावना है। डॉलर इंडेक्स के मजबूत होने और वैश्विक बाजार में अनिश्चितता के कारण रुपया लगातार दबाव में है। नए आरबीआई गवर्नर को रुपए को स्थिर रखने और विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे।
नीतिगत दर में कटौती का दबाव
पिछले कुछ समय में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने ब्याज दरों में कटौती की वकालत की है। उनका कहना है कि उच्च ब्याज दरें अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही हैं। ऐसे में आरबीआई पर नीतिगत दरों को घटाने का दबाव है।
संजय मल्होत्रा टीम वर्क में विश्वास रखते हैं और उनका मानना है कि केवल केंद्रीय बैंक के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। सरकारी सहयोग के साथ मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों को संतुलित करने में उनकी भूमिका अहम होगी।
शक्तिकांत दास के कार्यकाल की चुनौतियां और उपलब्धियां
मल्होत्रा से पहले शक्तिकांत दास ने छह साल तक आरबीआई का नेतृत्व किया। उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौर में न केवल आरबीआई को स्थिर रखा, बल्कि बैंकिंग क्षेत्र में सुधार भी किए। दास ने सरकार और आरबीआई के बीच बेहतर तालमेल स्थापित किया, जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली। अब मल्होत्रा के सामने महंगाई, ग्रोथ रेट और गिरते रुपए जैसी चुनौतियां हैं। उनके नेतृत्व में आरबीआई को इन समस्याओं से निपटने के लिए मजबूत नीतियों की जरूरत होगी।