बिहार के नालंदा में दर्दनाक हादसा, एक ही परिवार के छह लोगों ने खाया जहर

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By Dileep MishraPublished On: July 19, 2025
नालंदा में एक ही परिवार ने खाया जहर

बिहार के नालंदा जिले के पावापुरी में शुक्रवार की शाम एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जिसने पूरे इलाके को शोक में डुबो दिया। एक ही परिवार के छह सदस्यों ने सामूहिक रूप से ज़हर खा लिया, जिसमें दो किशोरी बेटियों की मौत हो गई है जबकि अन्य चार की हालत नाजुक बनी हुई है। यह घटना पावापुरी जलमंदिर के पास किराए के मकान में हुई, जहां परिवार पिछले छह महीनों से रह रहा था। मृतकों में शामिल हैं 16 वर्षीय दीपा कुमारी और 17 वर्षीय एरिका कुमारी। इनके अलावा परिवार के मुखिया धर्मेंद्र कुमार (45), उनकी पत्नी सोनी कुमारी (39), बेटा शिवम् कुमार (15) और भोला कुमार (15) भी ज़हर खाने वालों में शामिल हैं। सभी को गंभीर हालत में पावापुरी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है।

पांच लाख रुपये के कर्ज ने तोड़ा हौसला

प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि यह पूरा परिवार शेखपुरा जिले के पुरनकामा सिक्करपुर गांव का निवासी है। ये लोग पावापुरी में रहकर कपड़ों का छोटा-मोटा कारोबार कर रहे थे। जानकारी के अनुसार परिवार पर करीब पांच लाख रुपये का कर्ज था, जिसे लेकर उन्हें लगातार दबाव में रखा जा रहा था। स्थानीय सूत्रों के अनुसार कर्जदाताओं द्वारा लगातार वसूली के लिए दबाव बनाए जाने और अपमानित किए जाने के कारण पूरा परिवार मानसिक तनाव में था। इसी दबाव ने उन्हें सामूहिक आत्महत्या जैसा खौफनाक कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया। हालांकि, अभी तक पुलिस की ओर से इस बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है कि कर्ज ही आत्महत्या की मुख्य वजह है।

सन्नाटा और शोक में डूबा मोहल्ला

घटना की सूचना मिलते ही पूरे इलाके में मातम पसर गया। पड़ोसियों और स्थानीय लोगों ने बताया कि यह परिवार बेहद सरल, शांत और मेहनती था। किसी को अंदेशा भी नहीं था कि परिवार इस कदर आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान है। स्थानीय लोगों के अनुसार, मृतक बच्चियों की मां सोनी कुमारी पिछले कुछ दिनों से अत्यधिक तनाव में थीं। वहीं, बच्चियों के चेहरे पर भी एक तरह की बेचैनी झलकती थी, जिसे पड़ोसियों ने हल्के में लिया। अब इस दुखद घटना ने पूरे समाज के सामने यह सवाल खड़ा कर दिया है। क्या हम वाकई अपने आस-पास के लोगों की समस्याओं को समझ पा रहे हैं?
बच्चियों की मौत की खबर से आस-पास के स्कूलों और युवाओं में गहरा दुख है। इन दोनों बेटियों को पढ़ाई में रुचि थी और उनका सपना था कि वे परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारें। उनकी असमय मौत ने कई दिलों को तोड़ दिया है।

सामाजिक दबाव बन रहा जानलेवा

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस और प्रशासन की टीम मौके पर पहुंच गई। शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। फिलहाल चारों घायलों का इलाज पावापुरी मेडिकल कॉलेज में चल रहा है, जहां उनकी हालत नाजुक बनी हुई है। पुलिस ने अब तक इस मामले में कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार हर पहलू से जांच की जा रही है। जिसमें कर्ज का मामला, किसी तरह की धमकी या उत्पीड़न, पारिवारिक कलह और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी स्थितियां शामिल हैं। प्रशासन ने लोगों से अफवाह फैलाने से बचने की अपील की है। बिहार में पहले भी कर्ज, घरेलू हिंसा, सामाजिक अपमान और आर्थिक अस्थिरता जैसे कारणों से आत्महत्या के कई मामले सामने आए हैं। यह ताजा मामला फिर से इस गंभीर सामाजिक चुनौती की ओर इशारा करता है, जिससे निपटने के लिए सिर्फ सरकारी नहीं बल्कि सामाजिक जागरूकता और सामूहिक संवेदनशीलता की भी आवश्यकता है।

दर्द का सबक और जिम्मेदारी का सवाल

नालंदा की यह घटना केवल एक पारिवारिक त्रासदी नहीं है, बल्कि एक गहरी सामाजिक और आर्थिक विफलता का संकेत है। यह एक ऐसा हादसा है जो बताता है कि किसी को कर्जदार बनाकर, अपमानित कर देना कभी-कभी मौत के मुंह में ढकेल सकता है। अब यह समय है कि समाज, सरकार, और समुदाय एक साथ मिलकर उन लोगों तक पहुंचे जो मौन पीड़ा में जी रहे हैं। सरकारी कर्ज राहत योजनाएं, मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता और पड़ोसियों की सजगता, यह सब मिलकर ही ऐसी त्रासदियों को रोका जा सकता है। नालंदा की दो बेटियों की असमय मौत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी संवेदनशीलता और सहायता की पहल समय पर पहुंच रही है?