मध्यप्रदेश के चिकित्सा क्षेत्र में एक के बाद एक चौंकाने वाले फर्जीवाड़े सामने आ रहे हैं। दमोह के मिशन अस्पताल में फर्जी डॉक्टर की पोल खुलने के बाद अब सागर जिले में भी एक ऐसा ही हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां बेरोजगार युवाओं को डॉक्टर बनाने का सपना दिखाकर न केवल मोटी रकम वसूली जा रही थी, बल्कि उन्हें फर्जी सर्टिफिकेट भी थमाए जा रहे थे।
इस पूरे मामले का भंडाफोड़ तब हुआ जब बाल अधिकार संरक्षण आयोग को इस संस्थान के खिलाफ शिकायत प्राप्त हुई। शिकायत में बताया गया कि सागर के कालीचरण चौराहे पर स्थित एलआईसी बिल्डिंग में ‘राधारमण इंस्टीट्यूट’ नामक संस्था द्वारा कौशल विकास की आड़ में फर्जी डॉक्टर तैयार किए जा रहे हैं। इस सूचना पर संज्ञान लेते हुए बाल आयोग की टीम ने जिला प्रशासन के साथ मिलकर संयुक्त कार्रवाई करते हुए शुक्रवार को संस्थान पर दबिश दी।

युवाओं को दिखाते थे झूठे सपने, थमाते थे नकली सर्टिफिकेट
जांच में सामने आया कि यह संस्थान लंबे समय से बेरोजगार युवाओं को डॉक्टर बनने का लालच देकर ठग रहा था। गांव-देहात के 10वीं और 12वीं पास युवाओं को कॉल सेंटर के माध्यम से संपर्क कर उन्हें क्लीनिक खोलने और पैरामेडिकल कोर्स करवाने का झांसा दिया जाता था। एक सर्टिफिकेट के बदले युवाओं से 32 हजार से 45 हजार रुपये तक वसूले जाते थे।
नाम था ‘कौशल विकास केंद्र’, असल में चल रहा था गोरखधंधा
राधारमण इंस्टीट्यूट कभी प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्र के नाम से शुरू किया गया था, लेकिन यह दो साल बाद ही बंद हो गया। इसके बाद संस्थान ने पूरी तरह से फर्जीवाड़े का रास्ता अपनाया और खुद को किसी भी यूनिवर्सिटी या अधिकृत संस्था से संबद्ध न होने के बावजूद ‘डॉक्टर बनाने’ का खेल खेलना शुरू कर दिया। प्रारंभिक जांच में इसकी मान्यता या वैधता का कोई प्रमाण नहीं मिला है।
शराब की बोतलें, कैश काउंटर मशीन और लड़कियां
संस्थान की तलाशी के दौरान वहां कई चौंकाने वाली चीज़ें भी बरामद हुईं। शराब की बोतलें, रुपये गिनने वाली मशीन और 12 युवतियां वहां पाई गईं, जो कॉल सेंटर में काम कर रही थीं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह संस्थान महज कोर्स देने का नाटक नहीं कर रहा था, बल्कि एक बड़े और सुनियोजित रैकेट के रूप में काम कर रहा था।
सैकड़ों फर्जी डॉक्टर तैयार कर चुका है संस्थान
संस्थान का संचालक सुनील नेमा, जो मोती नगर थाना क्षेत्र का निवासी है, मौके पर मौजूद नहीं मिला और सूचना के बावजूद भी वह सामने नहीं आया। जानकारी मिली है कि बीते 8 से 10 सालों में यह संस्थान सैकड़ों युवाओं को फर्जी सर्टिफिकेट थमा चुका है, और ये सभी अब प्रदेश के विभिन्न ग्रामीण इलाकों में इलाज कर रहे होंगे। यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि लोगों की जान के साथ भी गंभीर खिलवाड़ है।
कलेक्टर को दिए गए कार्रवाई के निर्देश
बाल आयोग की इस कार्रवाई के बाद जिला प्रशासन को कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। आने वाले दिनों में फर्जी सर्टिफिकेट धारकों की जांच भी की जा सकती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी फर्जी डॉक्टर जनता की सेहत से खिलवाड़ न कर सके।