कोविड की दूसरी लहर ने आखिर इस खुशमिजाज़, यारबाज इंसान को भी लील लिया

केसवानी वह पत्रकार थे, जिन्होंने यह भांप कर कि यूनियन कारबाइड का भोपाल स्थित कीटनाशक कारखाना किसी रोज़ शहर को तबाही में ढकेल सकता है। स्थानीय अखबारों में बारम्बार आगाह करते हुए उनके लेख छपते थे।
उनका डर 2-3 दिसम्बर 1984 को घटित भोपाल गैस त्रासदी के रुप में सच साबित हुआ। उनकी उसी खोजी और सरोकारपूर्ण पत्रकारिता से वे राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचाने गये। उन्हें अनेक सम्मान-पुरस्कार भी मिले।

केसवानी न केवल सचेत, सक्रिय और सफल पत्रकार थे बल्कि सिनेमा और संगीत के गहरे जानकार भी थे। वे एनडीटीवी के प्रदेश संवाददाता ,दैनिक भास्कर और कुछ अन्य अखबारों के संपादक तो रहे ही, हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘पहल’ को दोबारा शुरू करने में भी उनका योगदान याद रखा जाएगा। जिसका वे ज्ञानरंजन जी के साथ संपादन करते रहे। हिंदी, इंग्लिश पर उनका समान अधिकार था।

सिनेमा और संगीत पर लिखे जाने वाले उनके साप्ताहिक स्तम्भ का बेसब्री से इंतज़ार किया जाता था। संगीत और सिनेमा का उनका संकलन भी किसी खजाने से कम नहीं। वे यारों के यार की तरह थे और मेहमाननवाज़ी के लिए मशहूर भी। पिछले कई दिनों से वे अस्पताल में भर्ती रह कर जीवन के लिए संघर्षरत थे, जो आज शाम ठहर गया। जनवादी लेखक संघ मध्य प्रदेश इस अलहदा दिवंगत साथी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।