देश की राजधानी स्थित ऐतिहासिक लाल किले से आज उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ‘विक्रमोत्सव 2025’ का विधिवत उद्घाटन किया। यह आयोजन मध्यप्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक उपलब्धियों को राष्ट्रीय पहचान दिलाने के उद्देश्य से किया गया।
इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य सम्राट विक्रमादित्य की गौरवशाली ऐतिहासिक विरासत और मध्यप्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को जनसामान्य तक पहुँचाना है। “महानाट्य सम्राट विक्रमादित्य” में उनके जन्म से सम्राट बनने तक की प्रेरणादायक यात्रा को 125 कलाकारों और 50 से अधिक सहायक सदस्यों की भागीदारी से मंचित किया गया। इस भव्य प्रस्तुति में रथ, अश्व, पालकी, ऊंट के साथ आधुनिक एलईडी ग्राफिक्स और तीन मंचों का प्रयोग कर दर्शकों को एक भव्य दृश्य अनुभव प्रदान किया गया।

हमारी संस्कृति अमर है, इसे कोई मिटा नहीं सकता – CM मोहन यादव
इस अवसर पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि लाल किले का यह ऐतिहासिक प्रांगण और आज का यह शुभ संयोग अत्यंत गौरवपूर्ण रहा। इस किले की एक-एक ईंट भारत के स्वर्णिम अतीत की साक्षी है और उसके सम्मान में गर्व से खड़ी है।
उन्होंने कहा कि यह वही भारत है जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठित है, और आज हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि ऐसे यशस्वी भारत की राजधानी में, लोकतंत्र के प्रतीक एवं देश के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ जी की उपस्थिति में यह आयोजन हो रहा है। इसके लिए मैं उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि भारत की संस्कृति को हर युग में आक्रांताओं द्वारा चुनौती दी गई, उसे विभाजित करने और कमजोर करने के प्रयास हुए। लेकिन हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे वीरों और महान आत्माओं ने हर युग में इस सांस्कृतिक पहचान की रक्षा की और दुनिया के सामने भारत की गरिमा को अडिग रखा। इसलिए मैं विश्वासपूर्वक कहता हूं कि – इस संस्कृति का अंत कभी नहीं हो सकता।
एक मंच पर जुटीं राजनीति और संस्कृति की नामचीन हस्तियां
कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता तथा केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की गरिमामयी उपस्थिति रही। इस आयोजन का आयोजन “विशाल सांस्कृतिक एवं लोकहित समिति” द्वारा मुख्यमंत्री डॉ. यादव के मार्गदर्शन में किया गया।
हमारी सभ्यता की जड़ें इतिहास से भी गहरी हैं – उपराष्ट्रपति धनखड़
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि उनका मन प्रफुल्लित है, क्योंकि लंबे अंतराल के बाद भारत ने एक नए युग में प्रवेश किया है। आज देश आर्थिक रूप से सशक्त बन रहा है, वैश्विक संस्थाएं भारत की प्रशंसा कर रही हैं और संस्थागत ढांचे में अभूतपूर्व विकास देखने को मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि जब भारत इतनी तीव्र गति से प्रगति कर रहा है और वैश्विक मंच पर महाशक्ति के रूप में उभर रहा है, तब स्वाभाविक रूप से सांस्कृतिक मूल्यों और कार्यक्रमों के प्रति हमारी आस्था और जुड़ाव भी बढ़ना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने इस बात पर ज़ोर दिया कि विश्व में कोई भी ऐसा देश नहीं है जिसकी सांस्कृतिक विरासत भारत जैसी—पांच हजार वर्ष पुरानी—हो। ऐसे समय में भारत को ‘द कल्चरल सेंट्रल ऑफ द वर्ल्ड’ के रूप में देखा जाना एक सुखद संकेत है, जो बीते कुछ वर्षों की प्रगति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का परिणाम है।
उन्होंने कहा कि महान सम्राट विक्रमादित्य, जो न्याय और उत्कृष्ट शासन व्यवस्था के प्रतीक रहे हैं, उनके आदर्श आज वास्तविकता का स्वरूप ले चुके हैं। यह देखकर हर्ष और गर्व की अनुभूति होती है।