Indore: सितम्बर माह में Prostate Awareness Month मना रहा मेदांता हॉस्पिटल

इंदौर। प्रोस्टेट ग्लैंड को पौरूष ग्रंथि कहते है, 50 साल की उम्र के बाद पुरुषों में प्रोस्टेट एनलार्जमेंट होने लगता है जिसकी वजह से लगभग 50-80% व्यक्ति प्रोस्टेट की समस्याओ या उनके लक्षणों से ग्रसित हो सकते है। यह मूत्राशय और मूत्रमार्ग पर दबाव डाल सकता है जिसके कारण रात में एक से अधिक बार यूरिन आना, अचानक से यूरिन आना व कंट्रोल ना कर पाना, यूरिन होने के बाद भी संतुष्टि ना हो पाना, यूरिन के प्रवाह में कमी आना व जोर लगाना पड़ना, रुक रुक कर यूरिन होना, यूरिन करने में जलन होना आदि प्रोस्टेट के लक्षण दिखने लगते हैं। प्रोस्टेट के लक्षण होने पर सोनोग्राफी द्वारा ग्रंथि का आकर, युरोफ्लोमिट्री टेस्ट द्वारा यूरिन का फ्लो, पीएसए एवं अन्य टेस्ट करवाए जाते है।

 

Indore: सितम्बर माह में Prostate Awareness Month मना रहा मेदांता हॉस्पिटल

Indore: सितम्बर माह में Prostate Awareness Month मना रहा मेदांता हॉस्पिटल

मेदांता इंस्टिट्यूट ऑफ़ किडनी एंड यूरोलॉजी के एसोसिएट डायरेक्टर एवं यूरोलॉजीस्ट डॉ. रवि नागर का कहना है कि प्रोस्टेट बढ़ने की समस्या को नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका असर किडनी और अन्य अंगो पर भी हो सकता है। सामान्य तौर पर, मैं 50 वर्ष के बाद हर दुसरे साल में प्रोस्टेट की जांच पीएसए और सोनोग्राफी कराने की सलाह देता हूँ। पीएसए एक प्रोटीन है जो केवल प्रोस्टेट ग्रंथि द्वारा बनाया जाता है। पीएसए की जांच एक प्रकार की खून की जांच है जो प्रोस्टेट कैंसर को बहुत जल्दी पता करने में सहायक होता है। यह प्रोस्टेट कैंसर का स्क्रीनिंग टेस्ट है। हम इस बार हम मेदांता हॉस्पिटल में पूरा महीना प्रोस्टेट अवेयरनेस मंथ के रूप में मना रहे है और इसका इलाज भी लो कास्ट में किया जा रहा है।

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प्रोस्टेट के बढ़ने की समस्या से पीड़ित मरीज को ऑपरेशन कराना जरूरी नहीं है, अगर- माइल्ड से मॉडरेट लक्षण या यूरिन की गंभीरता होती है तो उसे दवाइयों द्वारा ट्रीट किया जाता है। सीवियर लक्षण या दवाईयो से निदान न मिल पाना, यूरिन में ब्लड जाना, स्टोन होना, बार बार इन्फेक्शन होना, या किडनी पर असर होने की अवस्था में ऑपरेशन की सलाह दी जाती है। ये दूरबीन का लेजर ऑपरेशन होता है, जिसमे कोई कट-चीरा नहीं लगता है और मरीज को बिना दर्द के, बिना खून प्रवाह के लेजर द्वारा प्रोस्टेट की रुकावट वाला भाग निकाला जाता है। ऑपरेशन के बाद एक या दो दिन के लिए कैथेटर रहता है. यह अत्यंत ही सुरक्षित व अच्छे परिणाम देने वाला ऑपरेशन है।