माननीय महोदय,
हम ‘मौलिक भारत’ संगठन के सदस्य हैं और चुनाव सुधार, सुशासन, पारदर्शिता एवं हिंदुस्तान के विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों की जनता के प्रति जवाबदेही के लिए 8 सालों से कार्यरत हैं।
महोदय, देश आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश की ख़ुशी में अमृत महोत्सव मना रहा है। अमृत महोत्सव इस लोकतंत्र को और ज्यादा प्रभावशाली और ताकतवर बनाने का पर्व है। 75 सालों के अनुभव से हमने जो सीखा है उसे कार्यान्वित करके बेहतर बनाने का समय आ गया है। लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने भी आह्वान किया है “यही समय है सही समय है” अतः लोकतंत्र को बेहतर बनाने के लिए क्या कुछ किए जाने की संभावना पर हमारी संस्था के कुछ महत्वपूर्ण सुझाव हैं। लोकतंत्र में चुनाव के माध्यम से यह तय किया जाता है हम देश में किस विचारधारा का राज्य चाहते है और वह किन लोगों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाएगा।
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इसलिए चुनाव प्रक्रिया ठीक हो और इसके लिए जिन नीतियों का पालन किया जाए वह सबके लिए समान अवसर उपलब्ध करवाए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है । यदि कुछ लोग या लोगों का समूह इसमें बाधा उत्पन्न करे तो ऐसे लोगों के लिए उचित सजा का प्रावधान भी हो और सजा भी मिले, कहीं ऐसा न हो की मामला अनावश्यक कानूनी प्रक्रियाओं में उलझ कर समय की बर्बादी हो और दोषी को सजा लंबे उलझाऊ प्रक्रिया के कारण न मिल पाए ।
![मौलिक भारत द्वारा लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए चुनाव सुधार हेतु महत्वपूर्ण सुझाव](https://ghamasan.com/wp-content/uploads/2025/02/GIS_5-scaled-e1738950369545.jpg)
अतः चुनावी प्रक्रिया को बेहतर और प्रभावी बनाने में क्या कुछ किया जा सकता है इसकी चर्चा आवश्यक है।चुनाव जीतने के लिए सभी पार्टियां और उम्मीदवार दोनों ही बेतहाशा पैसा खर्च करते है । हालाँकि इसको काबू रखने के लिए नियम बनाए गए है लेकिन इनका ईमानदारी से पालन न पार्टी और न उम्मीदवार कोई भी नहीं करता है। चुनावों में पार्टी और उम्मीदवारों के लिए धन की व्यवस्था उद्योगपतियों द्वारा की जाती है ।
स्वाभाविक है जीतने के बाद चुनाव जिताने में सहायक उद्योगपति जल्दी से जल्दी घाटे की भरपाई करके मुनाफा कमाना चाहते है। सरकारों को उनके हित देखते हुए नीतियां तय करने की मजबूरी के कारण समाज और देश को नुकसान पहुंचता है। इसलिए चुनावी खर्च पर प्रभावी नियंत्रण बहुत आवश्यक है । अभी बने हुए नियम और इन पर नियंत्रण रखने की प्रक्रिया अप्रभावी है। इन नियमों को प्रभावी बनाने के लिए निम्न सुझावों पर विचार करना ठीक रहेगा:
राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे को कर मुक्त करने के बजाय इसे पार्टी की कर योग्य आय माना जाये और उस पर आयकर नियमों के अनुसार टैक्स लगना चाहिए। अब राजनीति करने वाले लोग पेशेवर है और पार्टिया कंपनी की तरह तनख्वाह और अतिरिक्त सुविधाएं भी इन्हे देती है , इसलिए इन्हें कर मुक्त करना न तो तर्क संगत है न न्याय संगत।
जो कॉरपोरेट घराने पार्टियों को चंदा देते है वह वास्तव में कंपनी के खातों से होता है,जिसकी असल मालिक शेयर होल्डर जनता है न की कुछ शेयर ज्यादा होने की वजह से बने हुए मालिक, इसलिए इन्हें अपनी मर्जी से उन उद्देश्यों के लिए पैसे खर्च करने का अधिकार नहीं है जो कंपनी के मूल उद्देश्यों से मेल नहीं खाते है। इतना ही नहीं उनकी पहली जिम्मेदारी नियमानुसार कानून के मुताबिक टैक्स भरने की है न की राजनीतिक पार्टियों को चंदा देकर उस से किसी तरह बचने की।
इसलिए जिन कंपनियों ने सरकार के करोड़ों रुपये आयकर, जी एस टी इत्यादि न चुकाए हो उन्हें चंदा देने के पहले टैक्स चुकाना चाहिए तथा चंदा देने वाली कंपनियों को अनापत्ति प्रमाण पत्र चंदे के साथ देना चाहिए अन्यथा इनके द्वारा दिया जाने वाला पैसा टैक्स बचाने की नियत का हिस्सा बन जाता है और इस खर्चे को आयकर विभाग खारिज कर ,कर योग्य आय माने। इतना ही नहीं इस खर्चे को करने की पूर्व स्वीकृत शेयरधारकों से भी ली जानी चाहिए।
सरकार हर क्षेत्र में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दे रही है अतः कोई भीनकदी पैसा किसी भी राजनैतिक दल द्वारा स्वीकार न किया जाए।इस कानून को सख्ती से लागू किया जाए। राजनैतिक दलों को बीस हजार तक केश पेमेंट की छूट का कानून वास्तव में काले धन को बढ़ावा दे रहा है । इसकी आड़ में काले धन का इस्तेमाल हो रहा है अतः इसे तुरंत रोकना आवश्यक है । सरकारी खर्च पर चुनाव कराने के प्रावधान पर भी धीरे धीरे बढ़ना चाहिए।
सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले सभी व्यक्तियों की सालाना आय व्यय जानकारी भी सार्वजनिक हो और इस से सम्बंधित जानकारी सूचना के अधिकार के तहत दी जानी चाहिए. सूचना गलत दिए जाने पर कड़े दंड का प्रावधान हो। उदहारण के लिए जिन विधायक, सांसदों अथवा सरकारी पदों पर बैठे लोगों की संपत्ति में 200 से 1000 प्रतिशत की वृद्धि पाँच सालो में हुई है वह यह बताये की इस आय का स्रोत क्या है और क्या इस पर नियम अनुसार टैक्स दिया गया है तथा इसमें कुछ भी अवैधानिक नहीं है। अपने कमाये के धन पर आम आदमी को ऐसा ही करना पड़ता है तो सांसदों और मंत्रियों को इस से छूट देने का कोई कारण नजर नहीं आता है ।
राइट टू रिकॉल लागू हो और उसको प्रभावी एवं इकोनॉमिक बनाने के लिए मतदान में एक के बजाय दो उम्मीदवारों को वरीयता के क्रम से विजयी घोषित किया जाये ,यानि किसी क्षेत्र के सांसद या विधायक को यदि उस इलाके की जनता वापस बुला ले तो दूसरी वरीयता प्राप्त विजेता को पहले के स्थान पर नियुक्ति मिले ,ताकि तुरंत दुबारा चुनाव करवाने के खर्च एवंप्रशासनिक कार्यो की जरुरत न पड़े ।
जब कोई पार्टी अपने चुनाव घोषणा पत्र में अर्थ सम्बन्धी घोषणाऐ करती है तो उसे भी यह बताना आवश्यक हो की खर्च का उपयोग कैसे होगा और धन कैसे आयेगा।जैसे किसान का कर्ज माफ़ किया जायेगा तो इस पैसे की व्यवस्था कैसे होगी।हम बैंकों में जमा धन इस तरह के कार्यों में उपयोग कर बैंकों का घाटा करने की नीति कैसे बना सकते है। और फिर उसको पूरा करने लिए आम जनता पर नए टैक्स लगाये या पेट्रोल और अन्य वस्तुवों के दाम बढ़ा कर उस घाटे की भरपाई करे यह उचित नहीं। भाजपा के अध्यक्ष जे पी नड़ड़ा ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा भी है कि नेता सरकारी धन का कस्टोडियन है मालिक नहीं।
अतः सरकार के पास जमा धन के खर्च की जवाबदेही तय हो और अपने अथवा पार्टी के हित साधने के लिए किये खर्च पर सजा का प्रावधान हो।6. यदि कोई उम्मीदवार चुनाव में अपनी हार की संभावना के कारण एक से ज्यादा जगह से चुनाव लड़ता है तो उसे अतरिक्त सीटो पर उपचुनाव करवाने का खर्च चुनाव आयोग के पास अग्रिम जमा करवाना चाहिए। ताकि उम्मीदवार के एक से अधिक स्थान से जीतने के कारण छोड़े जाने वाली सीट पर उपचुनाव का खर्च की भरपाई उम्मीदवार से लिए अग्रिम धन से हो न की सरकारी खजाने से।
पिछले लोकसभा चुनाव में करीब 50,000 करोड़ रुपये लोकसभा की 540-542 सीटो पर खर्च हुए थे। जिसके अनुसार करीब 100 करोड़ रुपये एक सीट का खर्च होता है .यदि यही चुनाव एक साथ न होकर अलग अलग होता है तो खर्च लगभग डेढ़ गुना अर्थात उपचुनाव में 100-150 करोड़ होता है। इतना पैसा अग्रिम जमा करवा कर ही एक से ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाये। किसी उम्मीदवार को चुनाव में विजयी होने की सुरक्षा जनता के पैसे से नहीं दी जा सकती ।
सभी राजनीतिक पार्टियों द्वारा लिए जाने वाला पैसा व खर्च का ब्यौरा इनकी बैलेंस शीट में हो और वह वेबसाइट पर आम आदमी के लिए उपलब्ध हो ताकि।बीस हजार से ज्यादा दान देने वाले का नाम और पता उसी तरह जांचा जा सके जैसे समाजसेवी संस्थाओं को दिया जाने वाला धन जांचा जाता है। दिए जाने वाले धन पर 20-25% टैक्स वसूलना भी ठीक रहेगा।ताकि काले धन को चुनाव के माध्यम से सफ़ेद करने के काम पर रोक लग सके।
चुनाव के नियमों के तहत उम्मीदवारों के द्वारा दी जाने वाली जानकारी यदि गलत पाई जाए तो केवल सदस्यता जाने के नियम के बजाय उस उम्मीदवार से ही चुनावीखर्च भी वसूल किया जाए । किसी भी उम्मीदवार के ऊपर चल रहे मुकदमे को सरकार अपनी मर्जी से वापस न कर सके । यह अधिकार निर्धारित कोर्ट के पास ही होना चाहिये । सरकार किन्ही कारणों से अगर ऐसा करना चाहती है तो कोर्ट को बताए की मुकदमा वापस लेने का क्या आधार है और कोर्ट उसपर अपना निर्णय केस की योग्यता और नियमों के तहत प्रदान करे ।
चुने हुए उम्मीदवारों की यह जिम्मेदारी है और समाज की अपेक्षा भी की वह अपना कार्य निर्धारित नियमों के अनुसार करे । इसके लिए उन्हे नियमनुसार पैसे दिएजाते है । यदि कोई मेम्बर 90 प्रतिशत से कम समय सदन में उपस्थित होता है तो इसका सीधा मतलब है कि वह अपने कार्य को ठीक से नहीं कर रहा है । अतः अनुपस्थित रहने पर उसकी देय राशि में कटौती हो, और 80 प्रतिशत से कम उपस्थिति पर सदस्यता खत्म कर द्वितीय वरीयता के उम्मीदवार को मौका दिया जाना चाहिए ।सदस्यता खत्म होने पर पेंशन यात्रा भत्ता इत्यादि की सुविधा भी खत्म हो जानी चाहिये।
11. आर्थिक भ्रष्टाचार के अतिरिक्त जिन बिंदुओं की ओर ध्यानाकर्षण आवश्यक है उसमे प्रमुख है चुनाव में वोटिंग को टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कर इंटरनेट के प्रयोग से वोटिंग करवाना । चुनाव बूथ पर जाए बिना यदि इंटरनेट के माध्यम से वोटिंग करने की शुरुआत हो तो वोटिंग प्रतिशत 80-90 तक पहुच सकेगा और जनता के सही प्रतिनिधि का चुनावबहुमत के आधार पर संभव हो जाएगा । वर्तमान में २०-२५% वोट पाने वाला उम्मीदवार भी विजयी हो जाता है जो की सही में पूरी जनता का सही प्रतिनिधि नहीं हो सकता है।
डरा धमका कर चुनाव बूथ को लूटना, जाली वोटिंग इत्यादि पर ब्लॉकचैन टेक्नॉलजी की मदद से कंट्रोल अब संभव है। दुनिया के कुछ देशों ने इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है । पूर्व चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने अपने एक बयान में बताया की आइआइ टी मद्रास में इसपर काम हो रहा है। इस प्रयोग से इलेक्शन करवाने का बजट कम से कम 50% कम होगा । वोटिंग मशीन पर उठने वाले सवाल खत्म होंगे और सौ प्रतिशत पारदर्शिता आएगी तो आम जनता का व्यवस्था पर विश्वास बढ़ेगा। अतः इसे जल्दी से जल्दी लागू करवाने की व्यवस्था की जानी चाहिये।
सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए यह अनिवार्य हो की कम से कम छह महीने पहले अपने उम्मीदवारों की सूची चुनाव कार्यालय में दाखिल करे ताकि चुनाव से पहले उम्मीदवारों की जांच भली भांति हो सके और कोई भी अपने हलफनामे में झूठ न लिख सके। एक बार झूठा हलफ़नामा देकर चुनाव जीतने के बाद उम्मीदवार तिकड़म में लग जाते है और फिर अपराध पर कार्यवाही होने के बजाय राजनीतिक दल केस वापस लेने या अन्य तरीकों से केस को कमजोर करके अपराधी को बचाते है।
साथ ही चुनाव के तुरंत पहले पैसे के दम पर खरीद फरोख्त और दल बदल का सिलसिला शुरू हो जाता है,जिसकी अंतिम परिणति भ्रष्टाचार है, पर रोक लगेगी ।अखबार और टेलीविजन इत्यादि संचार माध्यमों को पैसे देकर समाचार चलवाने का प्रचलन जोरों पर है इस के लिए समाज के लोगों के समूह को अधिकार मिले की इस पर पैनी नजर रखे और तुरंत कार्यवाही के लिए संबंधित विभागों से संपर्क करके उन टीवी चैनल और अखबारों के लाइसेंस को निलंबित करवा सके। देश में चुनाव में सक्रिय पार्टियां क्षेत्रीय दलों को मिलाकर सौ से ज्यादा नहीं है ,अतः 600-700 पार्टियां जो काले धन को सफेद करने का काम करती है के निलंबन का अधिकार चुनाव आयोग को दिया जाना चाहिए ।
13.राजनीतिक दलों की चुनावी रैलियों पर नियंत्रण चुनाव में होने वाले खर्चों पर रोक लगाने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है । सभी दल अपनी बातें टी वी, रेडियो और अखबारों के माध्यम से तथा सोशल मीडिया तक सीमित रखे। यह भी चुनाव में धन के अपव्यय को नियंत्रित करेगा । ओपिनियन पोल्स के नाम पर चुनाव प्रभावित करने के चलन पर भी नियंत्रण आवश्यक है।
14.एक देश एक चुनाव के लिए सभी दलों से बात करके यदि संविधान संशोधन किया जाना समय की मांग है। प्रधान मंत्री स्वयं अनेक अवसरों पर इसकी चर्चा कर चुके है।इतने बड़े देश में हर समय चुनावों का माहोल रहता है । इससे समय और धन दोनों का दुरुपयोग होता है । अतः इस विषय पर जल्दी से जल्दी विचार करने की आवश्यकता है।
15.एक और महत्वपूर्ण विषय सदस्यों को मिलने वाली सुविधाओं के बारे में है । हमने देखा है बात बात पर लड़ाई करने वाले माननीय जब सुविधाये बढ़ाने की बात आती है तो एक सुर में अपनी सुविधाये बढ़ाने की बात तय कर लेते है । हमारा सुझाव है कि जैसे वेतन आयोग देश के अन्य सरकारी कर्मचारियों का वेतन तय करता है वैसे ही इन सदस्यों की वेतन और अन्य प्राप्त होने वाली सुविधाओं को तय करने के लिए आयोग में समाज के प्रमुख लोगों को शामिल किया जाए। यह हास्यास्पद है की माननीय सदस्य अपने लाभ खुद ही तय कर लेते है और इसपर बहस इत्यादि भी नहीं होती है ।
16.दुनिया के अनेक देशों में शैडो पार्लियामेंट के प्रावधान है। खास तौर पर ब्रिटेन में, जहाँ के संविधान की अनेक बातें हमने अपने देश के संविधान में शामिल की हुई है। शैडो पार्लियामेंट में विपक्षी दलों द्वारा सत्ता पक्ष के कार्यों पर निगाह रखी जाती है। यह किसी भी प्रकार के बड़े नुकसान होने के पहले उसे रोकने में मदद करती है ।
इनको अधिकार होता है की यह सत्ता पक्ष के द्वारा होने वाले निर्णयों पर कड़ी नजर रखे । हालांकि यह प्रावधान अच्छा है और भ्रष्ट व्यवहार को रोकने में मदद भी करेंगा । लेकिन यह दो धारी तलवार है देश हित से इतर सोचने वाले इसको हथियार बना कर सभी कामों में रुकावट डालना शुरू न कर दे इसका डर भी बना रहेगा । अतः इस पर समाज में खुली बहस हो और फिर समुचित निर्णय लेने से बात बनेगी ।
17. भारतीय जनप्रतिनिधित्व कानून 1950व 1951में दी गयी Ordinary Resident (सामान्य नागरिक) की परिभाषा स्पष्ट नहीं है जिसका फायदा AERO (असिस्टेंट इलेक्शन रिटर्निंग ऑफिसर)व ERO ( इलेक्शन रिटर्निंग ऑफिसर ) DEO ( डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर )स्तर के अधिकारी उठाते हैं और धन/बल व दबाव में अवैध रूप से लोगों के नाम मतदाता सूची में डालते रहते हैं .
AERO व ERO स्तर पर दी गयी अर्द्ध न्यायिक शक्तियों का लगातार गलत इस्तेमाल किया जा रहा है और यह लोग केन्द्रीय चुनाव आयोग व राज्य चुनाव आयोग के आदेशों व सुझावों को गंभीरता से नहीं लेते तथा राजजीतिक दलों में साथ फर्जीवाड़ों में शामिल रहते हैं। मतदाता सूची में नाम डालने की बूथ लेवल ऑफिसर के माध्यम से वेरिफिकेशन पूर्णतः संदिग्ध, अविश्वसनीय व अपारदर्शी है।
इन तथ्यों के मद्देनजर मैं और मेरी संस्था आपसे यह मांग करती है-
1 . देश में सभी प्रकार के निर्वाचनों में शपथ पत्र की अनिवार्यता के साथ ही उसकी समयबद्ध जांच का स्थायी तंत्र बनाने का सरकार को निर्देश दे।
Ordinary Resident (सामान्य नागरिक) की परिभाषा पूर्णतः स्पष्ट करें, साथ ही भारत में संघवाद को व्यवहार में उतारने के जो संवैधानिक प्रावधान हैं उसमें राज्य विशेष में अन्य राज्य के मतदाता के उपरोक्त प्रकार के हस्तक्षेप से पड़ने वाले असर को स्पष्ट किया जाय।
AERO, ERO व DEO को मिली अर्द्ध न्यायिक शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने का तंत्र विकसित करने हेतु सरकार को यथोचित दिशा निर्देश दें।
मतदाता सूची को वीएलओ सत्यापन के साथ ही आधर कार्ड के नंबर से जोड़ा जाये जिससे गलत व्यक्ति मतदाता न बन सके, मतदाता सूची में दोहराव न हो पाय व विदेशी लोगों को मतदाता सूची में स्थान न मिल पाये।
18) मतदाता सूची के दोहरीकरण ( केंद्रीय व राज्य निर्वाचन आयोगों द्वारा अलग अलग सूची प्रकाशित करना) पर भी रोक लगनी आवश्यक है। यह संसाधनों की बर्बादी मात्र है।
इन सुझावों पर अमल करने का सबसे उपयुक्त समय अभी है। अमृत महोत्सव मनाने के साथ व्यवस्था में सुधार हो और पूरी दुनिया के लिए भारत देश उदाहरण बने तो हमारे प्रयास सार्थक हो सकेंगे। और 75 वर्षों की लोकतान्त्रिक परिपक्वता सभी लोग अनुभव कर सकेंगे। इन्ही अपेक्षाओं के साथ –
भवदीय
अनुज अग्रवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष, मौलिक भारत
डॉ कमल टावरी, कार्यकारी अध्यक्ष ,मौलिक भारत (पूर्व सचिव भारत सरकार)
अजय सिंह “एकल”, संयोजक , मौलिक भारत चुनाव सुधार समिति
डॉ सारिका अग्रवाल, राष्ट्रीय महासचिव, मौलिक भारत
नीरज सक्सेना, सदस्य, केंद्रीय कार्यकारिणी, मौलिक भारत
मौलिक भारत (ट्रस्ट)
मुख्य कार्यालय: मौलिक भारत, 306/A,37-39,
अंसल बिल्डिंग,कमर्शियल कॉम्प्लेक्स,
( सफल डेयरी के पीछे), मुखर्जी नगर, दिल्ली- 9