रेस्टोरेंट बिल में उलझे ग्राहक, लंच-डिनर पर 5% और आइसक्रीम पर 18% टैक्स, क्या GST दरों में होगा बदलाव?

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By Abhishek SinghPublished On: March 27, 2025

अगर आप रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं, तो आपको 5% जीएसटी देना होगा, लेकिन यदि खाने के बाद आइसक्रीम ऑर्डर करते हैं, तो यह दर बढ़कर 18% हो जाएगी। रोटी और पराठे पर भी अलग-अलग टैक्स लागू होता है, जिससे दुकानदार बिलिंग के दौरान उलझन में पड़ सकता है और ग्राहक को भी बिल देखकर हैरानी हो सकती है। चाहे रेस्टोरेंट में एसी चल रहा हो या नहीं, अगर उसे एसी रेस्टोरेंट का दर्जा प्राप्त है, तो हर फूड आइटम पर 18% जीएसटी लगेगा।

अगर आप कपड़े खरीदने जाते हैं, तो ₹1000 से कम की खरीदारी पर एक GST दर लागू होगी, जबकि इससे अधिक कीमत वाले कपड़ों पर अलग टैक्स लगेगा। यही स्थिति फुटवियर पर भी लागू होती है। खुले में बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थों पर कोई टैक्स नहीं है, लेकिन अगर वही आइटम पैक करके बेचा जाए, तो उस पर GST लग जाएगा। ऐसी कई विसंगतियां जीएसटी प्रणाली में मौजूद हैं, जिससे व्यापारी भ्रमित होकर गलतियां कर बैठते हैं और उन्हें पेनाल्टी या अन्य नुकसान उठाना पड़ता है। वहीं, ग्राहक भी खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।

रेस्टोरेंट बिल में उलझे ग्राहक, लंच-डिनर पर 5% और आइसक्रीम पर 18% टैक्स, क्या GST दरों में होगा बदलाव?

विशेषज्ञों का मानना है कि अब GST की इन असमानताओं को समाप्त करने के साथ-साथ टैक्स दरों को भी कम करने की आवश्यकता है।

राजनीतिक कारणों से अटके फैसले

विशेषज्ञों के अनुसार, जीएसटी काउंसिल की कई बैठकों में इन विसंगतियों को दूर करने पर चर्चा हुई, लेकिन जीएसटी संग्रह और राजनीतिक कारणों के चलते कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका। इसी तरह, पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने पर कई बार विचार हुआ, लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया।

राजस्व पर पड़ेगा असर या बढ़ेगी उपभोक्ता सहूलियत?

अप्रत्यक्ष कर विशेषज्ञ और डेलॉयट के पार्टनर एम.एस. मनी के अनुसार, यह धारणा गलत है कि जीएसटी दरों में कटौती से राजस्व घटेगा। दरें कम होने से वस्तुएं सस्ती होंगी, जिससे उपभोक्ता मांग बढ़ेगी। बढ़ती मांग के चलते विनिर्माण और रोजगार में वृद्धि होगी, जिससे स्वाभाविक रूप से राजस्व संग्रह भी बढ़ेगा।

कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के पूर्व डिप्टी सीएम एवं बिक्री कर मंत्री टी.एस. सिंह देव का भी मानना है कि उपभोक्ताओं के हित में जीएसटी दरों में कमी आवश्यक है। उनका कहना है कि चूंकि राज्य अपने राजस्व में कटौती को स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए जीएसटी दरों को संतुलित करने या स्लैब में बदलाव के दौरान ऐसा समाधान तलाशना होगा, जिससे राजस्व और उपभोक्ताओं—दोनों के बीच संतुलन बना रहे।

विशेषज्ञों का मानना है कि राजस्व वृद्धि की स्थिति में राज्यों को कोई वित्तीय नुकसान नहीं होगा, क्योंकि उन्हें एसजीएसटी के अलावा केंद्र सरकार के जीएसटी से भी हिस्सा प्राप्त होता है।

क्या तीन स्लैब प्रणाली होगी अधिक प्रभावी?

सीबीआईसी के पूर्व चेयरमैन विवेक जोहरी का कहना है कि जीएसटी प्रणाली में सुधार के लिए सभी खाद्य पदार्थों पर एक समान कर दर लागू होनी चाहिए और अन्य दरों को भी तर्कसंगत बनाया जाना चाहिए। वर्तमान में मौजूद चार स्लैब (5, 12, 18 और 28) के बजाय, तीन स्लैब का प्रावधान होना अधिक उपयुक्त रहेगा।

डेलॉइट के अप्रत्यक्ष कर विशेषज्ञ और पार्टनर हरप्रीत सिंह का मानना है कि जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने से कानूनी विवादों में उल्लेखनीय कमी आएगी। स्लैब की संख्या घटाने से भारत कर प्रणाली के लिहाज से विकसित देशों की श्रेणी में आ सकेगा। इसके अलावा, जीएसटी की रिटर्न प्रणाली और इनपुट टैक्स क्रेडिट नीति में भी सुधार आवश्यक है।

जीएसटी काउंसिल की आगामी बैठक में कर दरों को तर्कसंगत बनाने और कुछ वस्तुओं पर जीएसटी दरों में कटौती पर चर्चा होने की संभावना है। हालांकि, ऐसा माना जा रहा है कि राज्य सरकारें संभावित राजस्व नुकसान के कारण दरों में कमी को लेकर सहमत नहीं होंगी।

क्या है विशेषज्ञों की राय ?

विशेषज्ञों का मानना है कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के तहत लाने के लिए केंद्र सरकार को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। यदि इसे राज्यों के निर्णय पर छोड़ दिया गया, तो पेट्रोलियम जीएसटी के दायरे में शामिल नहीं हो सकेगा। आगामी महीनों में जीएसटी दरों में संशोधन को लेकर चर्चा शुरू होने की संभावना है।

बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के अनुसार, जीएसटी स्लैब में संशोधन पर गठित मंत्रियों के समूह (जीओएम) ने अब तक अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्री को प्रस्तुत नहीं की है। जीओएम के अध्यक्ष के रूप में चौधरी का कहना है कि रिपोर्ट जल्द ही वित्त मंत्री को सौंप दी जाएगी।