Birsa Munda Jayanti : अंग्रेजों ने रखा था जिसपर पूरे 500 रुपए का इनाम, उस वीर आदिवासी का बिरसा मुंडा था नाम

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By Shivani RathorePublished On: November 15, 2022

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में देश के लाखों करोड़ों लोगों ने हिस्सा लिया और असंख्य वीरों ने इस दौरान अपने प्राणों का बलिदान अपनी मातृभूमि की रक्षा और स्वतंत्रता के लिए दिया। आजादी के इस बलिदानी आंदोलन में सभी जाति, धर्म और समस्त वर्गों के महान लोगों ने अपना योगदान प्रदान किया था। ऐसा ही एक बलिदानी वीर क्रन्तिकारी वर्ष 15 नवंबर, 1875 को झारखंड राज्य के छोटानागपुर पठार क्षेत्र में मुंडा जनजाति में जन्म, जिसका नाम बिरसा मुंडा रखा गया। कम उम्र में ही इस वीर आदिवासी जननायक ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था।Birsa Munda Jayanti : अंग्रेजों ने रखा था जिसपर पूरे 500 रुपए का इनाम, उस वीर आदिवासी का बिरसा मुंडा था नाम


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अंग्रेजों ने रखा था जिसपर पूरे 500 रुपए का इनामBirsa Munda Jayanti : अंग्रेजों ने रखा था जिसपर पूरे 500 रुपए का इनाम, उस वीर आदिवासी का बिरसा मुंडा था नाम

अपने परिजनों के साथ आदिवासी घुम्मकड़ जीवन जीते बिरसा मुंडा अपने बचपन में कई गाँवों में रहे। ग्राम सलगा में अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने शिक्षक जयपाल नाग से प्राप्त करने के बाद उन्ही के कहने पर बिरसा ईसाई धर्म अपना कर जर्मन मिशन स्कूल में दाखिल हो गए, हालांकि जल्द ही उन्होंने इस स्कुल और ईसाई धर्म का त्याग कर दिया और ईसाई धर्मांतरण के विरोध में खड़े हो गए। बिरसा मुंडा ने झारखंड के चाईबासा में अपना काफी समय गुजारा और ईसाई धर्मांतरण विरोध के आंदोलन को सक्रियता प्रदान करी। 22 वर्ष जैसी कम उम्र में अंग्रेजों की आँखों का काँटा बनने के कारण बिरसा मुंडा पर अंग्रेजी हुकूमत ने पूरे 500 रुपए का इनाम रखा था, जोकि उस समय एक बहुत ही बड़ी रकम मानी जाती थी।

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25 वर्ष की अल्प आयु में रांची जेल में ली अंतिम साँसBirsa Munda Jayanti : अंग्रेजों ने रखा था जिसपर पूरे 500 रुपए का इनाम, उस वीर आदिवासी का बिरसा मुंडा था नाम

1890 में चाईबासा छोड़ने के बाद बिरसा की आंदोलन में सक्रियता और भी तेज और प्रभावी हो गई, उधर अंग्रेज भी बिरसा मुंडा की धरपकड़ के लिए बैचेन होने लगे और आखिरकार 03 मार्च, 1900 को, बिरसा मुंडा को चक्रधरपुर के जामकोपाई जंगल से अपने आदिवासी क्रन्तिकारी साथियों के साथ अंग्रेजी पुलिस ने उस वक्त गिरफ्तार कर लिया जब वे सो रहे थे। उसी वर्ष 09 जून, 1900 को 25 वर्ष की अल्प आयु में रांची जेल में उन्होंने अंतिम साँस ली, माना जाता है की अंग्रेजों ने उन्हें खाने में जहर दिया था । देश के आदिवासी इलाकों सहित पूरे देश के विभिन्न इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता है और उनके शौर्य और बलिदान की गाथा आज भी बच्चे बच्चे की जुबान पर है।