भारत इस साल अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। देशभर में भव्य कार्यक्रमों और परेड का आयोजन किया जाएगा। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस की मुख्य परेड का आयोजन किया जाएगा, जिसमें देश की शक्ति, संस्कृति और प्रगति का प्रदर्शन होगा। इस परेड में मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति शामिल होंगे, जबकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू परेड की सलामी लेंगी। तिरंगा फहराने और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ देश का गौरव और ताकत दिखाने का यह अनूठा पर्व हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण होता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहला गणतंत्र दिवस समारोह और परेड कैसी थी? 26 जनवरी 1950 का वह ऐतिहासिक दिन, जब भारत का संविधान लागू हुआ और देश गणराज्य बना, वह हर भारतीय के लिए अविस्मरणीय था।
आइए उस पहले गणतंत्र दिवस परेड की रोमांचक कहानी पर नज़र डालते हैं….
संविधान लागू होने का ऐतिहासिक क्षण
15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिलने के बाद भी भारत का अपना संविधान नहीं था। लगभग 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों के कठोर परिश्रम के बाद संविधान का मसौदा तैयार किया गया। 26 नवंबर 1949 को इसे अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू करने का फैसला हुआ।
सुबह 10:18 बजे तत्कालीन गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने संविधान लागू करने की औपचारिक घोषणा की और भारत को गणराज्य घोषित किया। ठीक छह मिनट बाद, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और गवर्नर जनरल की व्यवस्था समाप्त हो गई।
पहले गणतंत्र दिवस परेड का आयोजन
गणतंत्र भारत की पहली परेड दिल्ली के पुराने किले के सामने बने ब्रिटिश स्टेडियम में हुई थी, जिसे अब नेशनल स्टेडियम के नाम से जाना जाता है।
दोपहर 2:30 बजे, राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद बग्घी में सवार होकर राष्ट्रपति भवन (तब गवर्नमेंट हाउस) से निकले। उनकी बग्घी में छह ऑस्ट्रेलियाई घोड़े जुड़े हुए थे। यह बग्घी नई दिल्ली के कनॉट प्लेस और अन्य प्रमुख इलाकों से गुजरते हुए 3:45 बजे नेशनल स्टेडियम पहुंची। वहां उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया और 31 तोपों की सलामी के साथ परेड का शुभारंभ हुआ।
तीन हजार जवानों ने किया था हिस्सा
पहली परेड आज जितनी भव्य नहीं थी, लेकिन इसका महत्व असीमित था। पहली बार भारतीय सशस्त्र बलों ने अपने कौशल का प्रदर्शन किया। थल सेना, वायु सेना और जल सेना की टुकड़ियों ने इसमें हिस्सा लिया, जिनमें कुल 3,000 जवान शामिल थे। परेड की अगुवाई ब्रिगेडियर जे.एस. ढिल्लन ने की थी।
इस परेड में झांकियां शामिल नहीं थीं, लेकिन सैनिकों का अनुशासन और समर्पण हर किसी को गौरवान्वित कर गया। मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो शामिल हुए थे।
वायु सेना का अद्भुत प्रदर्शन
पहली परेड में आज के आधुनिक जेट विमानों की जगह डकोटा और स्पिटफायर जैसे छोटे विमानों का जलवा था। भारतीय वायु सेना के सौ विमान इस परेड का हिस्सा बने।
राष्ट्रपति के झंडारोहण के साथ ही चार बमवर्षक लिबरेटर विमानों ने आकाश में उड़ान भरते हुए सलामी दी। इन विमानों की उड़ान को स्टेडियम में तैनात विशेष दृश्य-नियंत्रण कार की मदद से समन्वित किया गया था। इस ऐतिहासिक प्रदर्शन ने हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।
परेड का रूट और स्थान
पहले गणतंत्र दिवस परेड का रूट तय नहीं था। 1950 से 1954 तक परेड इरविन स्टेडियम, किंग्सवे (अब राजपथ), लाल किला और रामलीला मैदान पर आयोजित हुई। 1955 में राजपथ को इसका स्थायी स्थान तय किया गया, जहां से परेड लाल किले तक जाती है।
पहला गणतंत्र दिवस
26 जनवरी 1950 का दिन भारत के इतिहास में एक मील का पत्थर है। पहली गणतंत्र दिवस परेड ने देशवासियों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी। आज जब भारत अपने 76वें गणतंत्र दिवस का जश्न मना रहा है, तब यह जानना हमारे लिए गर्व की बात है कि हमारे पूर्वजों ने इस दिन को कितनी शान और भावनाओं के साथ मनाया था।