कोरोना से कितने मरे ?

Share on:

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना से मरनेवाले भारतीयों की जो संख्या जताई है, यदि वह ठीक हो तो वह भारत के लिए बहुत ही चिंता और लज्जा का विषय है। उसके आंकड़े अगर प्रामाणिक हों तो भारत सरकार कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेगी। भारत सरकार का कहना है कि कोरोना के दो वर्षों में भारत में मौतों की संख्या 4 लाख 81 हजार रही है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट कहती है कि यह संख्या 40 लाख 74 हजार है। याने सरकार ने जितनी बताई है, उससे लगभग दस गुना है।

यह एक और दस का अंतर क्या बताता है? क्या यह नहीं कि या तो वह विश्व संस्था झूठ बोल रही है या भारत सरकार ने झूठ बोला है? यह तो ठीक है कि जब ऐसी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं तो दुनिया की सभी सरकारें उन्हें कम करके दिखाना चाहती हैं ताकि लोगों पर उनकी यह छवि बने कि उन्होंने जनहित के खातिर कितना जबर्दस्त काम कर दिखाया है लेकिन क्या कोई सरकार इतनी बड़ी धांधली कर सकती है कि वह 10 को 1 में बदल दे? भारत-जैसे खुले देश में ऐसा करना संभव नहीं है। भारत को रूस, चीन या उत्तर कोरिया जैसा देश नहीं है, जहां खबरपालिका प्रायः लकवाग्रस्त होती है। भारत में संसद है, विपक्ष है और हमारे नौकरशाह भी इतने मरियल नहीं है कि कोई सरकार इतनी बड़ी धांधली करे और वे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें।

Must Read : world mart network कंपनी की एजेंसी दिलवाने और Ayurvedic दवाओं पर हुई ठगी, 21 आरोपी गिरफ्तार

इसके अलावा भारत की जनता हालांकि उद्दंड नहीं है लेकिन वह इतनी साहसी जरुर है कि वह किसी भी सरकार का निकम्मापन बर्दाश्त नहीं करेगी। वास्तव में विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रपट का मुख्य उद्देश्य यही सिद्ध करना है कि भारत में कोरोना की वजह से लोग मरते रहे और सरकार खर्राटे खींचती रही। यह ठीक है कि शुरु के कुछ दिनों में सरकार ने काफी लापरवाही दिखाई। 2020 में लगभग 40 लाख लोगों ने समुचित चिकित्सा के अभाव में प्राण त्यागे लेकिन वे सब क्या कोरोना के रोगी थे? क्या यह सत्य नहीं हैं कि भारत के डाक्टरों, नर्सों और अन्य कर्मचारियों ने अपनी जान पर खेलकर करोड़ों लोगों को जीवन-दान दिया है?

तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्द्धन ने उस जानलेवा माहौल में जिस कर्मठता का परिचय दिया है, वह विलक्षण थी। इसके अलावा हमारे आयुर्वेदिक काढ़े के करोड़ों पेकेटों और भारत के घरेलू मसालों ने कोरोना-युद्ध में कमाल कर दिखाया था। भारत के मुकाबले अमेरिका, यूरोप और चीन में जितने लोग मरे हैं, यदि जनसंख्या के अनुपात के हिसाब लगाएं तो वे कई गुना ज्यादा हैं। उन राष्ट्रों के शारीरिक स्वास्थ्य और श्रेय चिकित्सा-पद्धति के दांवों को इस महामारी ने चूर-चूर कर दिया है। विश्व-स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों का भारत सरकार ने कई आधारों पर कड़ा प्रतिवाद किया है।

भारत में हताहतों की संख्या के आंकड़े प्रतिदिन प्रचारित किए जाते थे। उन्हें छिपाने का प्रश्न ही नहीं उठता। विश्व स्वास्थ्य संगठन की उप-महानिदेशक समीरा अस्मा ने, जो इस तरह के आंकड़े जारी करती हैं, कहा है कि भारत सरकार के विरोध पर वे जरुर ध्यान देंगी और अपने आंकड़ों की जांच करवाएंगी। भारत सरकार का विरोध अपनी जगह सही है लेकिन सच्चाई क्या है, यह सिद्ध करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार के बीच दो-टूक संवाद जरुरी है।