इंदौर यह परमपूजनीय श्री नाना महाराज तराणेकर इनकी कर्मभूमी होने के कारण देशविदेश में स्थित नानाभक्तों को इस भूमी का अतीव आकर्षण है। दत्तावतारी संत परमहंस परिव्राजकाचार्य श्री टेंबे स्वामी तथा वासुदेवानंद सरस्वती नाना महाराज के सद्गुरू थे। नाना महाराजजी का जन्म इंदौर के निकट तराणा ग्राम में श्रावण शुद्ध पंचमी दि. 13 ऑगस्ट 1896 को हुआ। उनके पिताश्री वेदमूर्ती शंकरशास्त्री यह गुरुकृपांकित श्रेष्ठ उपासक, उत्तम वैदिक और याज्ञिक थे। उनकी मातोश्री लक्ष्मीबाई अत्यंत शिस्तप्रिय, सात्विक साधिका थी। नाना महाराज को केवल आठ साल की आयु में परमहंस परिव्राजकाचार्य टेंबे स्वामी द्वारा अनुग्रह प्राप्त हुआ तथा स्वामीजीने उन्हे चैतन्यानंद सरस्वती यह उपाधी प्रदान की। श्री दत्त उपासना तथा दत्त संप्रदाय के कार्यप्रसार के बारे मे संबोधित भी किया। तराणा में नाना महाराज ने दत्त उपासना की। दत्त मंदिर की पूजाअर्चा करनेका दायित्व उन्ही को था।
वेदपाठशाला का संचालन भी वह करते थे। कर्मठ साधक और उपासक होने के कारण नाना महाराज का जीवन दत्तसंकीर्तन में लीन था। नियत काल में विवाह होकर उन्हे पुत्र शंकर और कन्या कुसुम की प्राप्ती हुई। किंतु घर गृहस्थी यह उनके जीवित का केवल उद्देश नही था। धर्मपत्नी कालवश होने के पश्चात दोनो बच्चों का पोषण, शिक्षण उन्होने स्वयं किया।
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सद्गुरु के आशीर्वाद से नाना महाराज को योग दीक्षा प्राप्त हुई। उन्हीं के कहनेपर नाना महाराज ने अनेक पवित्र तीर्थक्षेत्रों की यात्रायें की। इन यात्राओंमें प्राप्त दिव्य अनुभूतीओंसे उनका जीवन अधिक तेजोमय और ज्ञानसमृद्ध हुआ। प्रत्यक्ष श्री अनसूया माता, श्री दत्तात्रेय, श्रीराम- लक्ष्मण- जानकी, श्री गोपालकृष्ण, श्री नर्मदामैया, श्रीकृष्णसखा उद्धवजी इन के साक्षात दर्शन का लाभ यह इन्ही तीर्थयात्राओंमें नाना महाराज को हुआ। उन्होने अनेक यग्योंके आयोजन मे योगदान देकर स्वयम उन यग्योंके आचार्य पद का यशस्वी निर्वाहन किया। इंदोर के महाराजा श्रीमंत तुकोजीराव महाराज होलकर इन्हे नाना महाराज ने अपनी श्रद्धा और सेवा से व्याधीमुक्त किया। होलकर परिवार को नाना महाराज के प्रती बहुत आत्मीयता थी। यह राजपरिवार उनका सदैव सन्मान करता था।
“अन्न हे पूर्णब्रह्म” इस वचनपर नाना महाराज की दृढ श्रद्धा थी और तराणा तथा इंदौर में उन्होने कई औचित्यपूर्ण अवसरों पर अन्नदान किया। नाना महाराज को मराठी, हिंदी, संस्कृत, अर्धमागधी इतनी भाषाएं अवगत थी। संस्कृत में वे उत्तम संभाषण करते थे। नाना महाराज भक्ताधीन थे। अपनी वाणी तथा आचरण वे शुद्ध रखते थे। किसी को भी अपने वाणी या आचरण से ठेंस ना पहुंचे इसकी ओर वे हमेशा ध्यान देते थे। क्रोध उनके पास था ही नहीं। उनकी हास्यमुद्रा, स्नेहभाव भक्तों को कायम आश्वस्त करते थे। उन्होंने कभी भी स्त्री-पुरुष भेद नही किया। सभी को एकसमान प्रेमपूर्ण साहचर्य दिया। अनेक उत्सवों के आयोजनों में युवा पिढी को वे साथ लेकर भव्य आध्यात्मिक कार्य का निर्माण करते थे। उनकी सकारात्मक भावना आशीर्वाद और प्रसाद रूप से अनेक भक्तों को प्राप्त हुई। भक्तों को कृपादान करते समय नाना महाराज ने कभी भी रिश्तेदारी या जाती के उच्च नीचता का क्षुद्र विचार नहीं किया। सभी के प्रति समभाव यह आज भी तराणेकर परिवार की विशेषता रही हैं। पुरुषों के साथ साथ महिलाओं को भी नाना महाराज ने यज्ञविधी संस्कार के अधिकार बहाल किये। भजन, कीर्तन में महिलाओं का सहभाग बढाया। अनेक स्त्री संतों का उचित सम्मान किया। उन्होंने स्वयम कई महिलाओं को संस्कृत की शिक्षा दी। अपनी स्नुषा प्रेमलताताई को उन्होने नर्सिंग का कोर्स करनेकी प्रेरणा देकर नोकरी करने की अनुमती दी। श्री सूक्त, महिम्न, अथर्वशीर्ष, पुरुषसूक्त, गीताभागवत यह सब महिलाओं द्वारा कराने का कार्य किया। नाना महाराज प्रेमावतारी संत थे। हजारों की संख्या मे मौजूद उनका शिष्य परिवार इसी प्रेम के बंधन से जुडा है। गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में दत्त संप्रदाय का प्रसार यह नाना महाराज का प्रमुख कार्य रहा। कारंजा, नृसिंहवाडी, गरुडेश्वर, गाणगापूर आदी स्थानोंपर आजभी नाना महाराज द्वारा किये गये दत्तप्रसार का प्रेरक स्मरण किया जाता हैं। दि. 16 अप्रैल 1993 चैत्र वैद्य दशमी सुबह सात बजकर पंधरह मिनट पर पूजनीय नाना महाराज नागपूर में ब्रह्मलीन हुए। चैतन्यपीठ के मूर्त स्वरूप में प्रेरकज्योत वहां भक्तों को चिरंतन प्रेरणाप्रवाह का साक्षात्कार प्रदान कर रही हैं।
ब्रह्मलीन होने के बाद श्री नाना महाराज ने दृष्टांत द्वारा अपनी आध्यात्मिक परंपरा अपने पोते डॉ. प्रदीप तथा बाबा महाराज तराणेकर इन्हें दी। डॉ. प्रदीप तराणेकर यह ख्यातिप्राप्त भूगर्भशास्त्रज्ञ, पर्यावरण वैज्ञानिक, संगीत तथा संगीतोपचार के ज्ञानी, वास्तुविद तथा ज्योतिष के विद्वान है। हिंदी, मराठी, इंग्रजी में लेखन संशोधन तथा देशविदेशों में व्याख्यानों का उनका दीर्घ अनुभव है। 1992 मे डॉ. प्रदीप तराणेकर इन्होने अखिल भारतीय त्रिपदी परिवार की स्थापना की। इस त्रिपदी परिवार द्वारा उन्होने नाना महाराज के भक्तों को संघटित करने के साथसाथ उन्हें अनेक सामाजिक उपक्रमोंका हिस्सा बनाया। आरोग्य संजीवनी सेवा प्रकल्प, वैदिक विज्ञान तथा पर्यावरण शोध परिषद पुणे, शांतिपुरुष प्रतिष्ठान नागपुर, श्री नाना महाराज प्रासादिक पारमार्थिक ट्रस्ट गाणगापुर इन संस्थाओंके साथसाथ नागपुर में शांतिपुरुष मासिक का प्रकाशन, अकोला में वाचनालय, जलगाव में सहकारी पतपेढी का कार्य भी शुरू हैं। डॉ. प्रदीप तराणेकर आज आध्यात्मिक विरासत को आधुनिक विज्ञान की मदद से आगे ले जा रहे हैं। खासकर नई पिढी को इस कार्य से जोडने हेतू वह संबोधित और प्रेरित करते हैं। उनकी सुविद्य सहचारिणी जयश्री तराणेकर गणमान्य लेखिका, संपादिका हैं। नाना महाराज के चरित्र तथा जीवनीपर आधारित विभिन्न भाषाओं मे ग्रंथ प्रकाशित करने का दायित्व वह भलिभांती पुरा कर रही हैं। इंदौर तथा नागपुर में भव्य उत्सवों के आयोजन उनकेही कुशल मार्गदर्शन में यशस्वी होते हैं। अपनी शिस्तप्रियता और स्नेहपूर्णतासे वे त्रिपदी परिवार में लोकमान्य हैं। नाना महाराज की 125 वी जन्मतिथी के अवसरपर दि. 1 तथा 2 अगस्त 2022 को इंदौर के बास्केटबॉल स्टेडियममें भव्यतम कार्यक्रमों का आयोजन किया गया हैं। दत्त संप्रदायके प्रसार का तथा सामाजिक सद्भाव का दर्शन इस उत्सव मे निश्चित रूप से होगा। इंदौरवासियों के लिए यह एक शुभ पर्वणी हैं।
स्नेहा शिनखेडे