इंदौर : देश को यूं ही आजादी नहीं मिली, इसको पाने के लिए खुदीराम बोस, सावरकर, सरदार भगतसिंह जैसे आजादी के मतवाले ने अपना सर्वस्व दिया। इसकी जानकारी हमारी आज की नई पीढ़ी को बहुत ही कम है कि कैसे देश मे फिरंगियों ने जलियांवाला बाग हत्याकांड(Jallianwala Bagh Massacre) किया और कैसे हम भारतीयों पर जुल्म किये।
आजादी के इस अमृत महोत्सव( Azadi Ka Amrit Mahotsav) पर हमारे कवियों, साहित्यकारों का भी दायित्व है कि वे अपनी लेखनी से इसको उजागर करें। नई पीढ़ी के बच्चे जरा सी तकलीफ में या परीक्षा में कम नंबर आने पर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेते है। ऐसे बच्चों को उन संघर्ष व्यक्तियों से प्रेरणा लेनी चाहिये जिन्होंने ताउम्र संघर्ष किया, कठिनाईयां झेली और मजबूती के साथ खड़े रहे। गांधी उस महान व्यक्तित्व का नाम है जिसका नाम लेने से हमारे मन को शांति मिलती है।ये विचार राज्यपाल मंगूभाई पटेल के है, जो उन्होंने समिति शताब्दी सम्मान, साहित्य उत्सव एवं साहित्यिक संस्थाओं का सम्मेलन में वरिष्ठ साहित्यकार दामोदर खड़से (पुणे) एवं सुप्रसिद्ध कवि राजकुमार कुंभज को शताब्दी सम्मान से अलंकृत करते हुए मुख्य अतिथि के रुप में व्यक्त किये। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन सांसद शंकर लालवानी, साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे एवं समिति के प्रधानमंत्री प्रो. सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी भी मंच पर उपस्थित थे। इस मौके पर समिति की ओर से राज्यपाल मंगूभाई पटेल को भी हिंदीसेवी सम्मान प्रदान किया गया।
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अपने उद्बोधन में सुमित्रा महाजन ने दोनों मंगलमूर्तियों (खड़से और कुंभज) को कोटिश शुभकामनाएं देते हुए कहा कि एक साहित्यकार भी समाज में परिवर्तन ला सकता है। अतः मैं आप दोनों से आग्रह करती हूँ कि कुछ ऐसा लिखें जो समाज में क्रांति लाये।सांसद शंकर लालवानी ने कहा कि मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति का गौरव पूरे देश भर में है। यह एक ऐसी स्थली है, जहां राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी दो बार आये एवं यहां वर्ष भर साहित्यिक गतिविधियाँ होती रहती है। स्वागत उद्बोधन में प्रो. सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी ने कहा कि मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति सौ वर्ष से अधिक पुरानी साहित्यिक संस्था है एवं महात्मा गांधी यहां दो बार आये, उन्होंने पूरे देश में हिंदी को प्रचारित किया। आज इस भवन में राज्यपाल मंगूभाई पटेलजी का आना बहुत ही शुभ है। अपने सम्मान के प्रत्युत्तर में कुंभज ने कहा कि हम सब को तमाम तरह की आवाजों से घिरे हुए है, ऐसे में सही आवाज को पहचानना बड़ा मुश्किल है। यह आवाजें कई तरह के हमले की सूचक है। अतः हम सच की आवाज को पहचानें, जिससे मनुष्य और मनुष्यता बची रहे।
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अपने सम्मान के प्रति उत्तर में खड़से ने कहा कि इंदौर से मेरा बहुत ही गहरा और आत्मीय रिश्ता है। मेरा बचपन यहीं के नंदानगर मे गुजरा। इंदौर का भले ही भूगोल बदल गया हो, लेकिन यहां का इतिहास आज भी मेरे साथ है। मुझे सबसे अधिक प्रभावित शिवाजी सावंत की प्रसिद्ध कृति मृत्युंजय ने किया। कई बार अच्छा साहित्य हमको संबल भी देता है, इसका प्रमाण मृत्युंजय है। मासिक पत्रिका वीणा के संपादक राकेश शर्मा ने सभी अतिथियों को वीणा की प्रतियां भेंट की। अतिथियों का स्वागत म.प्र. साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे एवं प्रो. सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी ने किया। सम्मान पत्र का वाचन सूर्यकांत नागर एवं हरेराम वाजपेयी ने किया। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन संजय पटेल ने माना। कार्यक्रम में वीरेन्द्रदत्त ज्ञानी, कृष्णकुमार अष्ठाना, श्यामसुंदर दुबे, प्रेम जनमेजय, अनिल त्रिवेदी, प्रो. सरोज कुमार, विजय लोकपल्ली, प्रवीण जोशी, अशोक कुमट सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, कवि एवं गणमान्य मौजूद थे।