आदिवासी युवती की मौत पर बैकफुट पर ‘सरकार’ कांग्रेस के लिए बिल्ली के भाग्य से छिका टूटने की घटना, दौड़ पड़े नेता

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नितिनमोहन शर्मा

टंट्या मामा। बिरसा मुंडा। द्रौपदी मुर्मू। सुमेरसिंह सोलंकी। पैसा एक्ट। क्रिप्टो क्रिश्चियन। वन अधिकार। वनवासी हलमा। आदि आदि। बीते दो तीन सालों से आदिवासी समुदाय के बीच पसीना बहा रही शिवराज सरकार और आरएसएस के लिए महू की घटना कही सब किये धरे पर पानी न फेर दे?

ये सवाल घटना के तुरंत बाद कांग्रेस, जयस की दौड़भाग से सामने आया हैं। किस तरह से इन दोनों ने इस मूददे पर सक्रियता दिखाई है, उसने सरकार की सांसे ऊपर नीचे जरूर कर दी। मिशन 2023 और 2024 के तहत सरकार और संघ एक सुनियोजित रणनीति के तहत आदिवासी वर्ग में तेजी से काम करते हुए पैठ बना रहे थे।

मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ और झारखंड तक संघ और सरकार का ज़ोरदार मूवमेंट्स इस वर्ग के बीच चल रहा हैं। इसमे क्रिप्टो क्रिश्चियन जैसा ब्रम्हास्त्र भी है जिसके तहत जो आदिवासी धर्मांतरित हो गए है, वे आदिवासी समुदाय की सूची से बाहर किये जायें। इस मूवमेंट्स से मूल आदिवासी गोलबंद होने लगे हैं। ऐसा हुआ तो कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जाएगी।

नतीज़तन, कांग्रेस का कोर वोट बैंक रहा आदिवासी समाज इस बार भाजपा के निशाने पर है और पार्टी ने तेजी से इस वर्ग में अपनी पैठ बढ़ाकर कांग्रेस को बैकफुट पर ला भी दिया था। देश का पहला आदिवासी राष्ट्रपति और वो भी महिला इसी रणनीति का हिस्सा है जिसमे राष्ट्रीय फलक पर भाजपा की वनवासी क्षेत्र की सम्भावनाओ को चमकीला बना दिया था। फिर जबलपुर और निमाड़ से इसी वर्ग के लो प्रोफ़ाइल नेताओ को राज्यसभा भेजकर जमीन और मजबूत की गई।

बीते डेढ़ दो साल से वनवासी समुदाय के लिए पलक पाँवडे बिछा रही सरकार ने न केवल वनवासी अंचल बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी अनेक आयोजन कर स्वयम को इस समुदाय का असली हितचिंतक करार देने की कोशिशें की। इंदौर जैसे शहर में टंट्या मामा के नाम का शोर और महू स्थित जन्मस्थली पर आयोजन ने सरकार और संघ दोनो को मुफ़ीद स्थिति में ला दिया था। अब उसी महू से निकली एक हल्की चिंगारी ने समूची सरकार और संगठन को झकझोर दिया है।

मुद्दा एक आदिवासी युवती की संदिग्ध मौत से जुड़ा है। इस घटना को लेकर आक्रोश और प्रदर्शन तेज थे। ये आग अभी बुझी भी नही थी कि इसी समुदाय का एक निर्दोष युवक पुलिस की गोली का शिकार हो गया। ये घटना भी उस वक्त हुई जब युवती की मौत को लेकर थाने पर प्रदर्शन चल रहा था। उस दौरान चली गोली ने काम से लौट रहे युवक की जान ले ली। आरोप है कि गोली पुलिस ने चलाई। वही टीआई सहित करीब आधा दर्जन पुलिसकर्मी भी घायल है।

घटना से सरकार तो सकते में आई ही, आरएसएस भी दुःखी हो गया। कारण था घटना का राजनीतिक गुणाभाग। हुआ भी वही। कांग्रेस ने जिस तेजी से महू के डोंगरगांव की राह पकड़ी, उससे साफ हो गया कि कांग्रेस ऐसे ही किसी मौके की तलाश में बैठी थी। वनवासी समुदाय के प्रतीक क्रांतिकारी टंट्या मामा की जन्मस्थली क्षेत्र में घटी घटना ने जहा सरकार के होश उड़ा दिए वही विपक्ष की बांछे खिला दी। कांग्रेस के साथ साथ जयस ने भी मैदान पकड़ लिया। वैसे भी जयस का महू तहसील में खासा जनाधार हैं।

घटना से घबराई और विपक्ष से घिराई सरकार के लिए आरएसएस तारणहार बनकर सामने आया। जिस तरह कल सुबह से विपक्ष का इस मूददे पर मूवमेंट शुरू हुआ था, उससे लग रहा था कि शिवराज सरकार इस मूददे पर पुरो तरह बैकफुट पर आ गई है। लेकिन जैसे जैसे दिन चढ़ा, वैसे वैसे विपक्ष की शुरुआती बढ़त उतरती गई। ये काम आरएसएस ने किया।

संघ बरसो बरस से आदिवासी समाज के लिए वनवासी अंचल में पसीना बहा रहा है। नई रणनीति के तहत संघ ने शहरी क्षेत्र और वनवासी अंचल के बीच समन्वय बनाने की एक बड़ी कवायद भी चला रखी है। डॉ निशांत खरे को इसकी जिम्मेदारी दी रखी हैं। खरे की अगुवाई में वनवासी अंचल के युवाओं के बीच तेजी से संघ की नीति-रीति पर काम चल रहा है। महू की घटना में ये तालमेल काम कर गया।

सरकार ने संघ के कहने पर सबसे पहले तो पार्टी नेताओं को इस मसले से दूर किया। संघ आगे आया। डॉ खरे अगुवाकार बने। दोनो पीड़ित परिवार से सीधे सम्पर्क कर विश्वास बनाया गया। 10 लाख की मदद, पीएम आवास, एक सरकारी नोकरी के वादे ओर मदद तुरत फुरत की गई। पीड़ित पक्ष को अपने पाले में लेने की विपक्ष की तमाम कोशिशें रात गहराते गहराते जमीदोंज हो गई।

जबकि कांग्रेस ने कोई कसर नही छोड़ी थी। कांतिलाल भूरिया से लेकर कमलनाथ तक सक्रिय रहे लेकिन संघ के डॉ खरे के नेतृत्व में डेमेज कंट्रोल ने विपक्ष के हाथ इस मसले ओर कोई बड़ा मुद्दा हाथ नही लगने दिया। सिवाय इसके की “मौत की कीमत लगा रही सरकार” जैसे बयानों के। आरएसएस ने तो अपना काम कर दिया। लेकिन सरकार के लिए ये घटना और इससे उपजे आक्रोश से निपटना चुनोती है।

चुनावी साल में सरकार को चौकन्ना रहना होगा। क्योकि इस बार भाजपा का पूरा दारोमदार आदिवासी बेल्ट पर है। 2018 में इसी वर्ग की नाराजगी के चलते भाजपा सत्ता से दूर हो गई थी। इस बार पूरा फोकस इसी वर्ग और रखकर सरकार दिन रात आदिवासी समुदाय की माला जप रही है। ऐसे में महू की घटना का होना, सरकार के लिए चिन्ता का विषय हो गई है। सरकार के रणनीतिकार भी मानते है कि अगर समय रहते इस मामले को ठीक से नहीं संभाला तो बीते दो तीन साल की मेहनत पर पानी फिरते देर नही लगेगी।