सरकार कर रही कोविड मरीजों के आँकड़ों की बाजीगरी : पुष्पेन्द्र वैद्य

Rishabh
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सरकार कोविड मरीजों के आँकड़ों की बाजीगरी कर रही है। यह बात मैं दावे से इसलिए कह सकता हूँ कि मेरा परिवार ख़ुद ही इस बात का जीता जागता सबूत है। मैंने अपनी माँ को देवास के अमलतास अस्पताल में भर्ती कराया। सीआरपी रिपोर्ट में 112 मिलीग्राम लंग्स इंफेक्शन पाया गया। डॉक्टर ने कोविड लाइन पर ही ट्रीटमेंट शुरु किया। दुर्भाग्य से उन्हें नहीं बचाया जा सका। लेकिन उनके निधन के तुरंत बाद जो रिपोर्ट आती है उसमें उन्हें नेगेटिव बताया जाता है। हम चाहते तो सामान्य रुप से अंतिम संस्कार कर सकते थे लेकिन
इसमें कई लोगों के संक्रमित होने का खतरा हो सकता था। लिहाजा हमने कोविड गाइड लाइन से ही उनका अंतिम संस्कार करने का फैसला किया। इस बारे में एक जिम्मेदार से बात करने पर पता चला कि मृत्युदर घटाने और मरीजों की तादात घटाने के लिए ऐसा ही किया जा रहा है।
घर में भाभी भी संक्रमित पाई गई हैं। होम आइसोलेशन में इलाज चल रहा है। सरकार के आँकडों में यह दोनों ही केस दर्ज नहीं है। यह तो महज एक मौत और एक मरीज का आँकडा है। ऐसे न जाने कितने लोग हैं जो घर-घर बीमार पड़े हैं या उनकी मौत के बाद उन्हें नेगेटिव करार दिया जा रहा है। इससे संक्रमण का खतरा तेजी से बढ़ रहे हैं।
सरकार का न अस्पतालों पर कोई अंकुश है और न ही इलाज पर। न जरूरी दवाओं की कालाबाजारी पर न उनकी बेतहाशा बढ़ती दरों पर। रैमडेक या रेमडिसिवर इंजेक्शन मनमाने दाम पर बिक रहा है। उसकी कालाबाजारी हो रही है। परेशान परिजन अपनों की जान बचाने के लिए दया की भीख माँग रहे हैं या अनाप-शनाप पैसा भर रहे हैं। अस्पतालों में बेड खाली नहीं है। डॉक्टर्स के पास कोई एक समान लाइन ऑफ ट्रीटमेंट नहीं है। मरीज की बगैर तासीर और उम्र देखे उसे टोसी जैसे 40-40 हजार रुपए की कीमत वाले हैवी इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं। कई मरीजों की हालत तो इस इंजेक्शन के बाद इतनी ज्यादा बिगड़ रही है कि वे ठीक होने के बजाय सीधे स्वर्ग सिधार जाते हैं। एंबुलेंस उपलब्ध नहीं है। कोविड के नाम पर एंबुलेंस वाले सिरे से नकार रहे हैं। यह घोर अमानवीयता है।
शिवराज जी, आप वीसी में कलेक्टर्स की इसलिए तारीफ़ कर रहे हैं कि मास्क लगाने का अभियान अच्छा चलाया। राजस्व के रुप में 68 लाख रुपए वसूल लिए। अच्छी बात है, मास्क लगाने की मुहिम जागरुकता का अच्छा तरीका है। आप भी इन दिनों मास्क लगवाने के लिए ज़मीन पर उतर रहे हैं। अच्छी बात है। लेकिन अस्पतालों में जो भयावहता, चीख-पुकार, बेबस, टूटते परिजनों और मरीजों का हाल भी तो जान लीजिए। कैसे इलाज के नाम पर लाखों रुपए की लूट मची हुई है। दवा माफिया कैसे मौत का सौदा कर रहे हैं। क्या सरकार इतनी कंगाल हो गई है कि जनता को कोई राहत नहीं दे पा रही। जनता को अपने हाल पर मरने को छोड़ दिया है क्या शिवराज जी। प्रधानमंत्री के सपनों की आयुष्यमान योजना भी निजी अस्पतालों में कमाई का गौरखधंधा बन चुकी है। कार्डधारियों को पकड़-पकड़ कर तलाशा जा रहा है। पूरी रकम चट की जा रही है। कोरोना के इस त्रासद वक्त में अंधेर नगरी-चौपट राजा जैसी कहावत साबित हो रही है।
आँकडों का यही तमाशा चलता रहा तो वह वक्त दूर नहीं जब लाशों का ढ़ेर लग जाएगा और फिर प्रेस को जो आँकडे परोसे जाएँगे, यकीनन उनकी बुनियाद झूठ पर ही टिकी होगी।
शिवराज जी, आप अपनी बॉडी लेंग्वेज और मुख-मुद्रा से संवेदनशील मुख्यमंत्री लगते हैं। कई मोर्चों पर आपकी संवेदनशीलता दिखाई भी देते हैं। लेकिन इस बार कोविड महामारी की ताज़ा लहर में आपकी वो धार दिखाई नहीं दे रही। बीते कुछ महीनों से आप एक्शन मोड वाली भूमिका में दिखाई जरुर दे रहे हैं लेकिन उसका असर आपकी नौकरशाही में दिखाई नहीं दे रहा है। भले ही अफसर अपने नंबर बढा रहे हों लेकिन हकीकत कहीं अलग है। एक गोपनीय टीम लगाइये और पता कराइये दवाओं की कैसे कालाबाजारी हो रही है, अस्पतालों में क्या मारा-मारी चल रही है, डॉक्टर्स क्यों महंगे-मंहगे इंजेक्शन लगा रहे हैं, ऑक्सीजन है या नहीं, अपने कलेजे के टूकडों का इलाज कराने के नाम पर लोग कंगाल हो रहे हैं। अपने प्रदेश का हाल कलेक्टर्स से नहीं आम जनता से जानिए। हकीकत पता चल जाएगी। बाहर आईये शिवराज जी………

पुष्पेन्द्र वैद्य