तिब्बत के पठारी ग्लेशियर लगातार पिघल रहें हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु में अप्राकृतिक परिवर्तन से इस प्रकार की स्थिति निर्मित हुई है। इसके अलावा तिब्बत के ग्लेशियरों में 986 प्रजातियों के ख़तरनाक बैक्टीरिया वैज्ञानिकों को मिले हैं। तिब्बत के ग्लेशियरों में मिले इन सभी बैक्टीरियाओं में से लगभग 80 प्रतिशत से अधिक बैक्टीरिया नई प्रजाति के बताए गए हैं, जिनके बारे में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है।
भारत और चीन की नदियों में मिलने की आशंका
वैज्ञानिकों की तरफ से यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि यदि तिब्बत के ये पठारी ग्लेशियर अधिक मात्रा में पिघलते हैं तो , बैक्टेरिया की यह नई प्रजातियां भारत और चीन में बहने वाली नदियों में मिल जाएंगी, जोकि दोनों देशों के नागरिकों के लिए बहुत ही खतरे का विषय हो सकता है।
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विभिन्न संक्रमण व कई प्रकार की शारीरिक व्याधियां भी इन बैक्टीरिया के माध्यम से भारत और चीन में पनप सकते हैं। तिब्बत को ‘वाटर टॉवर ऑफ एशिया’ कहा जाता है। तिब्बत से भारत और नेपाल की कई बड़ी और जीवनदायी नदियों का उद्गम होता है। इन नदियों के पानी से दोनों देशों की अधिकतम जनसंख्या अपनी प्यास बुझाती है।