इन्दौर। पानी को बांधना आसान हो सकता है लेकिन मन को बांधना कठिन है। मन की तीन अवस्थाएं होती हैं संकुचित, असंवेदनशीनता और चंचलता। एक बार मन में अभय मिल जाए तो मन में सुरुचि उत्पन्न होती है। शुभ रुचि होने से ही शुभ काम, शुभ नाम और शुभ भाव की प्राप्ति होती है। हमें जो प्राप्त है और जो हम करते है उसका परिणाम तो परलोक में मिलता है।
उक्त विचार रेसकोर्स रोड़ स्थित श्री श्वेताम्बर जैन तपागच्छ उपाश्रय श्रीसंघ में पांच दिवसीय प्रवचनों की अमृत श्रृंखला के चतुर्थ दिवस पर आचार्य विजय कुलबोधि सुरीश्वर जी मसा ने सभी श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने अपने प्रवचनों में आगे कहा कि मन को बांधे बिना प्रभु को पाया जा सकता। जीवन में दु:ख को श्राप नहीं वरदान मानना चाहिए।
श्री नीलवर्णा पाश्र्वनाथ मूर्तिपूजक ट्रस्ट एवं चातुर्मास समिति संयोजक कल्पक गांधी एवं अध्यक्ष विजय मेहता ने बताया कि रेसकोर्स रोड़ स्थित श्री श्वेताम्बर जैन तपागच्छ उपाश्रय श्रीसंघ ट्रस्ट द्वारा आयोजित 5 दिवसीय प्रवचनों की श्रृंखला का अंतिम दिन है। आचार्यश्री नई दिशा व नई दृष्टि विषय पर प्रात: 9.15 से 10.15 बजे तक प्रवचनों की वर्षा करेंगे।